Supreme Court

छापा न पड़े इसलिए कलकत्ता की कंपनी ने दिया 40 करोड़ का चंदा ! सुप्रीम कोर्ट ‘चुनावी बांड’ पर शीघ्र सुनवाई को सहमत-

शीर्ष न्यायालय Supreme Court चुनावी बांड Electoral Bond से राजनीतिक दलों Political Parties को चंदा Donation दिए जाने के कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को शीघ्र सुनवाई के लिए सहमत हो गया।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के इस कथन व दावे पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस कृष्ण मुरारी व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने संज्ञान लिया। भूषण ने याचिकाकर्ता एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि यह गंभीर मामला है। इस पर अर्जेंट सुनवाई होना चाहिए। इस पर सीजेआई रमण ने कहा कि ‘यदि यह कोविड का मामला नहीं होता तो मैं यह सब सुनता।’ सीजेआई ने इसके साथ ही उनकी याचिका सुनवाई के लिए जल्दी सूचीबद्ध करने का भी आश्वासन दिया।

मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की शीघ्र सुनवाई की अर्जी स्वीकार कर ली। न्यायमूर्ति रमना ने शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिए सहमति व्यक्त करते हुए कहा,” हम इस मामले पर सुनवाई करेंगे।”
श्री भूषण ने ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान गुहार लगाते हुए कहा कि कोलकाता की एक कंपनी द्वारा 40 करोड़ रुपए का चंदा दिए जाने की खबर चौंकाने वाली है।

ज्ञात हो कि सर्वोच्च अदालत के तत्कालीन न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने 27 मार्च 2021 को स्वयंसेवी संस्था ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ की ओर से श्री भूषण द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया। स्वयंसेवी संस्थान ने कानून पर कई तरीके के सवाल उठाते हुए पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम अभी राज्यों में विधानसभा चुनावों के बीच एक अप्रैल से चुनावी बांड के नए सेट की बिक्री पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी।

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एनजीओ ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017-18 और 2018-19 की अपनी ऑडिट रिपोर्ट Audit Report में राजनीतिक दलों द्वारा घोषित चुनावी बॉन्ड Electoral Bond के आंकड़ों के अनुसार, सत्तारूढ़ दल को अब तक जारी किए गए कुल चुनावी बांड का 60 फीसदी से अधिक प्राप्त हुआ। यह भी दावा किया गया कि अब तक 6,500 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बांड बेचे जा चुके हैं। इमनें से अधिकांश चंदा सत्ताधारी दल को जाता है।

याचिका में कहा गया है कि चुनावी बांड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदे और भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा गुमनाम चंदे के द्वार खोल दिए हैं। इसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह भी दावा किया गया है कि चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक ने 2017 में चुनावी बांड जारी करने पर आपत्ति जताई थी। यह भी आरोप लगाया गया है कि 99 फीसदी बांड एक करोड़ से लेकर 10 लाख रुपये मूल्य के हैं। इससे साबित होता है कि ये नागरिकों द्वारा दिया गया चंदा नहीं है, बल्कि बड़ी कंपनियों द्वारा और बदले में सरकार से लाभ पाने की दृष्टि से दिया गया है।

गत वर्ष 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 की चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही योजना पर रोक के लिए एनजीओ के एक अंतरिम आवेदन पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बांड योजना शुरू की थी। इसके तहत चुनावी बांड देश का कोई भी व्यक्ति खरीद सकता है।

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जानकारी हो की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता की यह आशंका गलत थी कि विदेशी कॉरपोरेट घराने बांड खरीद सकते हैं तथा देश में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास कर सकते हैं। इलेक्टोरल बांड योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बांड एक व्यक्ति द्वारा खरीदा जा सकता है, जो भारत का नागरिक है। एक व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बांड खरीद सकता है।

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