POCSO मामले में सजा से अधिक समय जेल में बिताने वाले दोषी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, अनुच्छेद 142 के तहत सजा मूल स्थिति में बहाल कर की गई रिहाई

POCSO मामले में सजा से अधिक समय जेल में बिताने वाले दोषी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, अनुच्छेद 142 के तहत सजा मूल स्थिति में बहाल कर की गई रिहाई

POCSO मामले में सजा से अधिक समय जेल में बिताने वाले दोषी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, अनुच्छेद 142 के तहत सजा मूल स्थिति में बहाल कर की गई रिहाई

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO अधिनियम से संबंधित एक आपराधिक अपील में दोषी द्वारा असली सजा से अधिक समय जेल में बिताए जाने को देखते हुए उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए दोषी की मूल 7 साल की कठोर कारावास की सजा बहाल कर दी, जबकि उसने 11 साल 8 महीने की वास्तविक सजा पहले ही भुगत ली थी।


मामले की पृष्ठभूमि:

विशेष POCSO अदालत ने दोषी को सात वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, बाद में उसे आजीवन कारावास और ₹5,000 जुर्माना (और डिफ़ॉल्ट में छह महीने की अतिरिक्त सजा) दी गई। दोषी ने अपनी सजा के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की, जो लंबित थी। इस बीच, दोषी लगभग 12 वर्षों तक जेल में बंद रहा।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने पाया कि:

  • दोषी ने मूल सजा (7 साल) से कई साल अधिक, यानी 11 वर्ष 8 माह जेल में बिताए।
  • विशेष अदालत और हाई कोर्ट के आदेशों में त्रुटियाँ थीं।
  • न्याय के हित में यह उचित नहीं होगा कि मामला पुनः हाई कोर्ट को भेजा जाए।

अनुच्छेद 142 का प्रयोग:

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में “पूर्ण न्याय” के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत विशेष शक्ति का प्रयोग आवश्यक है। इसी के तहत:

  • विशेष अदालत द्वारा दिए गए मूल 7 वर्ष की कठोर कारावास की सजा को बहाल किया गया।
  • चूंकि दोषी इस अवधि से कहीं अधिक वास्तविक सजा पहले ही भुगत चुका है, अतः उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया।
ALSO READ -  मंत्री अपने ही सचिव के खिलाफ मामला दायर कर रहे हैं: दिल्ली के वित्त सचिव ने जल बोर्ड फंड जारी न करने का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की

आदेश और निष्कर्ष:

  • 26 फरवरी 2016 को पारित आपराधिक अपील का आदेश और उससे संबंधित 2 मार्च व 8 मार्च 2016 के आदेश रद्द कर दिए गए।
  • 28 अप्रैल 2016 को विशेष अदालत द्वारा दोषी को आजीवन कारावास की दी गई सजा भी रद्द कर दी गई।
  • बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित आपराधिक अपील अब निष्फल मानी गई और उसका निस्तारण कर दिया गया।

रिहाई का आदेश:

महाराष्ट्र सरकार और नागपुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक को निर्देशित किया गया है कि वे दोषी को तत्काल रिहा करें।


यह निर्णय न्याय की अनावश्यक देरी और प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की सजगता को दर्शाता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्याय केवल तकनीकीता में उलझ कर बाधित न हो, बल्कि व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण से पूर्ण रूप से हो।

Translate »