पुणे स्थित पारिवारिक अदालत ने संयुक्त रूप से एक याचिका दायर करने और छह महीने की अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि की छूट हासिल करने के 14 दिन बाद एक इंजीनियर जोड़े को आपसी सहमति से तलाक दे दिया है।
आलोक्य-
पति, जो कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले का रहने वाला है, दुबई में एक कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में कार्यरत है, जबकि पत्नी, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, तालेगांव दाभाडे में रहती है।
उनकी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 12 दिसंबर, 2017 को हुई थी।
हालांकि, मतभेद और असंगति के कारण, युगल 26 अप्रैल, 2019 से अलग रहने लगे।
सुलह के सभी उपाय विफल होने के बाद, दंपति ने 14 दिन पहले अपने वकीलों, मयूर सालुंके और अजिंक्य सालुंके के माध्यम से आपसी सहमति से तलाक की मांग करते हुए एक संयुक्त और स्वैच्छिक याचिका प्रस्तुत की।
निर्णय-
पारिवारिक न्यायलय के न्यायाधीश एम आर काले ने 29 सितंबर 2021 को दिए गए अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्ष पहले ही 18 महीने से अधिक समय से अलग अलग रह रहे है । न्यायाधीश ने कहा उक्त वाद में विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत निर्धारित कूलिंग-ऑफ अवधि के लिए उन्हें छह महीने और इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है क्योकि ये दोनों ही अलग अलग रह रहे है ।
न्यायाधीश काले ने अपने निर्णय में आगे कहा कि पत्नी ने भरण-पोषण के अपने अधिकार को समाप्त कर दिया है और उसे अब कोई भरण पोषण देय नहीं होगा। निर्णय में आगे कहा गया है की पति और पत्नी दोनों का एक-दूसरे की चल और अचल संपत्ति पर कोई दावा शेष नहीं होगा।
न्यायाधीश ने कहा कि स्त्रीधन और अन्य कोई और किसी प्रकार का इस संबंध में विवाद नहीं था और एक दूसरे के खिलाफ कोई दावा लंबित नहीं था।
जज ने कहा कि मैरिज काउंसलर ने भी एक रिपोर्ट दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि जोड़े के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है।
न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा की आपसी सहमति से तलाक की डिक्री देने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है ।
न्यायाधीश ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया जिसमे छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि को माफ किया जा सकता है, अगर जोड़े के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं बचती है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कहा गया है कि विवाह को कानूनी रूप से केवल एक सप्ताह में समाप्त किया जा सकता है, खासकर उन मामलों में जहां युगल एक वर्ष से अधिक समय से अलग रह रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह भी कहा गया है, “कूलिंग ऑफ पीरियड का उद्देश्य जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बचाव करना था, अगर अन्यथा मतभेदों के सुलझने की संभावना थी।”