हाई कोर्ट ने मनुस्मृति का दृष्टांश देते हुए कहा कि प्रथम देवता अगर हैं तो माता पिता-

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कर्नाटक हाई कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए मंगलवार को ‘मनुस्मृति’ का हवाला दिया।

पीठ ने मनुस्मृति का दृष्टांश देते हुए कहा कि माता-पिता से पहले कोई देवता नहीं हैं और कोई उन्हें वापस नहीं कर सकता।

उच्च न्यायालय पीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने आगे कहा कि ऐसे माता-पिता हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए सब कुछ बलिदान कर दिया और ऐसे बच्चे हैं, जिन्होंने अपने माता-पिता के लिए सब कुछ छोड़ दिया है।

19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा के पिता ने अपनी बेटी के लापता होने की बात बताते हुए याचिका दायर की थी। पिता ने हाईकोर्ट से अपनी बेटी की कस्टडी उन्हें सौंपने की गुहार भी लगाई। इंजीनियरिंग की छात्रा (बेटी) ने एक ड्राइवर से शादी की है।

न्यायमूर्ति बी. वीरप्पा और न्यायमूर्ति के.एस. हेमलेखा ने कहा कि प्यार अंधा होता है और उन्हें माता-पिता का प्यार नजर नहीं आता।

पीठ ने कहा कि माता-पिता के साथ जो किया गया, वह कल बच्चों के साथ भी हो सकता है। जब आपस में प्यार की कमी होती है, तब ऐसी परिस्थितियां सामने आती हैं।

कोर्ट ने यह टिप्पणी करने के बाद पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को यह रेखांकित करते हुए खारिज कर दिया कि बेटी नाबालिग नहीं है और उसे अपनी पसंद के युवक से शादी करने का अधिकार है।

अदालत ने कहा कि लड़की ने अदालत के समक्ष कहा है कि वह वयस्क है और जिस युवक से वह प्यार करती है, उससे शादी कर ली है। उसके पति ने भी अदालत को आश्वासन दिया कि वह पत्नी की ठीक से देखभाल करेगा।

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