सुप्रीम कोर्ट में पति की पुकार कहा, मेरी पत्नी औरत नहीं- मर्द है, कैसे निभाऊं वैवाहिक जीवन, जानिए अजीबोगरीब मामला विस्तार से-

Estimated read time 1 min read

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट में एक अजीबोगरीब मामला पहुंचा है जिसमें पति ने अदालत से गुहार लगाते हुए बताया है कि मेरी पत्नी औरत नहीं, मर्द है. मैं उसके साथ कैसे रह सकता हूं. उसे ये बात पता थी कि उसके पास पुरुष जननांग हैं. उसने मुझे धोखा दिया है. उस पर और उसके पिता पर धोखाधड़ी की करवाई की जाए, उसे सजा दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक अजीबोगरीब याचिका दायर की गई, जिसमें एक पति ने अपनी पत्नी पर धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि वह औरत नहीं, मर्द है. उसके पास पुरुष जननांग हैं, ऐसे में मैं उसके साथ कैसे रहूं. कैसे निभाऊं वैवाहिक जीवन.

पति ने अपनी याचिका में ये भी कहा है कि पत्नी और उसके पिता को ये बात पता थी, लेकिन उसके पिता ने जान बूझकर उसकी मुझसे शादी कराई. पति ने पत्नी का Medical Report मेडिकल रिपोर्ट भी कोर्ट के सामने पेश किया है. जांच रिपोर्ट भी कहती है कि उक्त महिला में पुरुष जननांग मौजूद हैं, जिसकी वजह से वह रिश्ता नहीं बना सकती. ऐसे में पति ने आरोप लगयाया है कि वह उसके साथ कैसे रह सकता है. उसकी पत्नी और उसके ससुर के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट पति की इस याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया है.

शुरुआत में प्रस्तुत याचिका पर सुनवाई करने से हिचकिचाते हुए, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने पत्नी से जवाब मांगा, जब उस व्यक्ति ने एक मेडिकल रिपोर्ट पेश की जिसमें खुलासा हुआ कि उसकी पत्नी के पास एक लिंग और एक अपूर्ण हाइमन है. एक जन्मजात विकार जिसमें बिना उद्घाटन के एक हाइमन योनि को पूरी तरह से बाधित करता है, एक अपूर्ण हाइमन के रूप में जाना जाता है.

ALSO READ -  इलाहाबाद HC ने ओम राउत, मनोज मुंतशिर को 'आदिपुरुष' से आपत्तिजनक सामग्री हटाने की मांग वाली PIL में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया

कोर्ट में पति की गुहार-मेरी पत्नी औरत नहीं, मर्द है, कैसे निभाऊं वैवाहिक जीवन

पति की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एनके मोदी ने कोर्ट को बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत यह एक आपराधिक मामला है क्योंकि जांच रिपोर्ट के मुताबिक पत्नी एक “पुरुष” निकली है.”वह एक पुरुष है, ये बात उसे पता थी. ऐसे में यह निश्चित रूप से धोखा देने का मामला है. अधिवक्ता मोदी ने कहा है कि कृपया, इस बारे में मेडिकल रिकॉर्ड देखें. यह किसी जन्मजात विकार का मामला नहीं है. यह एक ऐसा मामला है जहां मेरे मुवक्किल को एक पुरुष से शादी करके धोखा दिया गया है. वह निश्चित रूप से इसके बारे में जानती थी कि उसके गुप्तांग पुरुष के हैं.”

वरिष्ठ वकील जून 2021 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बहस कर रहे थे, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट के एक आदेश को रद्द कर दिया गया था, जिसने धोखाधड़ी के आरोप का संज्ञान लेने के बाद पत्नी को सम्मन जारी किया था. मोदी ने शिकायत की कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त चिकित्सा साक्ष्य हैं कि एक अपूर्ण हाइमन के कारण पत्नी को महिला नहीं कहा जा सकता है.

इस बिंदु पर, अदालत ने पूछा “क्या आप कह सकते हैं कि लिंग केवल इसलिए नहीं है क्योंकि एक अपूर्ण हाइमन है? मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके अंडाशय सामान्य हैं.”

वरिष्ठ अधिवक्ता एनके मोदी ने जवाब दिया देते हुए कहा कि “न केवल ‘पत्नी’ के पास महिला का लिंग है,बल्कि एक पुरुष लिंग भी है. अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कहती है. जब उसके पास पुरुष लिंग है, तो वह महिला कैसे हो सकती है?”

ALSO READ -  यदि दस्तावेज़ शुल्क के साथ चार्ज योग्य नहीं है तो बार यू/एस 35 स्टाम्प अधिनियम लागू नहीं होगा; अन्य कानूनी आवश्यकताएं पूरी होने पर प्रति को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने तब अधिवक्ता मोदी से पूछा, “आपका मुवक्किल वास्तव में क्या मांग रहा है?”

इस पर, वरिष्ठ अधिवक्ता एनके मोदी ने कहा कि आदमी चाहता है कि प्राथमिकी पर ठीक से मुकदमा चलाया जाए और पत्नी को उसके पिता के साथ उसे धोखा देने और उसका जीवन बर्बाद करने के लिए कानून में परिणाम भुगतने के लिए सजा दी जाए.

अदालत ने आगे कहा कि पत्नी द्वारा व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता) के तहत एक आपराधिक मामला भी दर्ज किया गया है. अब कोर्ट ने आरोपी पत्नी, उसके पिता और मध्य प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.

मई 2019 में, ग्वालियर के एक मजिस्ट्रेट ने व्यक्ति द्वारा दायर एक शिकायत पर पत्नी के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोप का संज्ञान लिया था. उन्होंने आरोप लगाया कि 2016 में उनकी शादी के बाद, उन्हें पता चला कि पत्नी के पास एक पुरुष जननांग है और वह शादी को पूरा करने में शारीरिक रूप से अक्षम थी. पत्नी और उसके पिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए व्यक्ति ने अगस्त 2017 में मजिस्ट्रेट से संपर्क किया था.

दूसरी तरफ, पत्नी ने दावा किया कि पुरुष ने अतिरिक्त दहेज के लिए उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया और परिवार परामर्श केंद्र में शिकायत दर्ज कराई, जहां पुरुष ने फिर से दावा किया कि वह एक महिला थी.

इसी दरमियान ग्वालियर के एक अस्पताल में पत्नी का चिकित्सकीय परीक्षण किया गया. न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आगे उस व्यक्ति और उसकी बहन के बयान दर्ज किए और आपराधिक आरोप का संज्ञान लेते हुए आरोपी पत्नी और उसके पिता को समन जारी किया.

ALSO READ -  न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने हिंदी में लिखवाया जमानत आदेश कहा कि मौलिक अधिकार केवल गोमांस खाने वालों का ही नहीं है, बल्कि गाय की पूजा करने वालों का भी है-

सम्मन से व्यथित, पत्नी और उसके पिता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने जून 2021 में उनकी अपील की अनुमति दी और मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया. उच्च न्यायालय ने माना कि चिकित्सा साक्ष्य पत्नी पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं थे और मजिस्ट्रेट ने आदमी के बयानों को बहुत अधिक विश्वसनीयता देने में गलती की थी.

लिंग विशेषज्ञ डेनिएला मेंडोंका ने कहा कि जहां एक अपूर्ण हाइमन को इंटरसेक्स भिन्नता माना जा सकता है, वहीं एक व्यक्ति की लिंग पहचान – पुरुष, महिला या ट्रांस – उनकी स्वयं की पहचान पर आधारित है, चाहे जननांग कुछ भी हो. इसे सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के भारत संघ बनाम राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NATIONAL LEGAL SERVICES AUTHORITY (NALSA) VS. UNION OF INDIA) के फैसले में बरकरार रखा है.

You May Also Like