सर्वोच्च न्यायलय SUPREME COURT ने शुक्रवार को कहा कि कमजोर गवाहों से संबंधित मुद्दा सीधे तौर पर महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा से जुड़ा है। इसके साथ ही न्यायालय ने कमजोर गवाह बयान केंद्रों (VWDC) के लिए एक समान राष्ट्रीय मॉडल तैयार करने से जुड़े मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पक्षकार बनाने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मंत्रालय अदालत द्वारा नियुक्त समिति के अध्यक्ष के परामर्श से सभी गतिविधियों का समन्वय करना जारी रखेगा।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को नोडल मंत्रालय होना चाहिए और वह चाहता है कि मंत्रालय इसकी निगरानी करे। पीठ ने कहा, ‘महिला और बाल विकास मंत्रालय को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए एक समन्वय मंत्रालय के रूप में नामित किया गया है कि कमजोर गवाहों से संबंधित मुद्दा सीधे तौर पर महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा से संबंधित है, जिनकी स्थिति आमतौर पर कमजोर गवाहों की होती है।’
न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार का महिला और बाल विकास मंत्रालय मामले में पक्षकार होगा। शीर्ष अदालत ने आठ अप्रैल को सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार किए गए मॉडल दिशानिर्देशों पर छह सप्ताह SIX WEEK के भीतर जवाब देने का अनुरोध किया था, ताकि वीडब्ल्यूडीसी के लिए राष्ट्रीय मॉडल तैयार करने में उनकी सिफारिशों को समाहित किया जा सके।
वहीं न्याय मित्र वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने दलील दी कि वीडब्ल्यूडीसी के लिए दिशानिर्देश तैयार करने वाली जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति के साथ बेहतर समन्वय के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजाय कानून मंत्रालय को नोडल एजेंसी बनाया जाए। इस पर पीठ ने कहा कि यदि इसके समन्वय की आवश्यकता है तो न्याय विभाग, कानून एवं न्याय मंत्रालय जरूरी सहायता प्रदान करेगा। Additional Solicitor General ऐश्वर्या भाटी ने अनुरोध किया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को प्रतिवादी के रूप में लाया जाए।
आज की सुनवाई के दौरान पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) ऐश्वर्या भाटी से कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय होना चाहिए। न्यायालय ने एएसजी से पूछा कि अब न्याय विभाग पर यह दायित्व थोपने का क्या मतलब है। पीठ ने पूछा, ‘अब, न्याय विभाग पर (यह) दायित्व थोपने का क्या मतलब है? न्याय विभाग आम तौर पर अदालत के बुनियादी ढांचों की देखभाल करता है। हम चाहते हैं कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय वास्तव में इसकी निगरानी करे।’
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि सुप्रीम कोर्ट एक आदेश पारित करने पर विचार कर सकती है और मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पक्षकार बना सकती है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भाटी ने कहा, ‘कृपया इस मंत्रालय को भी एक पक्ष के रूप में शामिल करें ताकि हम पेश हो सकें और सहायता कर सकें।’
पीठ ने कहा, “भारत सरकार का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पक्षकार होगा।”
पीठ ने कहा कि अगर न्याय विभाग के साथ किसी तरह के समन्वय की जरूरत है तो Additional Solicitor General यह सुनिश्चित करेंगी कि इस संबंध में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सहायता उपलब्ध कराई जाए। शीर्ष अदालत इस बाबत 2017 में जारी दिशानिर्देशों पर अमल से संबंधित मामले में सुनवाई कर रही है।