मकान मालिक अपने मकान में कैसे रहे ये कानून नहीं तय करेगा, वो अपने आवासीय आवश्यकताओं का अच्छा न्यायाधीश है: उच्च न्यायलय

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किरायेदार पर लगाया डैमेज भुगतान कर मकान खाली करने का आदेश-

Landlord Tenant Dispute – इलाहाबाद उच्च न्यायलय Allahabad High Court ने टिप्पणी की है कि किराये के विवादों Rent Dispute में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो यह तय करे कि एक मकान मालिक को अपने आवासीय मकान में कैसे रहना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि एक मकान मालिक आवासीय आवश्यकताओं का सबसे अच्छा न्यायाधीश है और ऐसा कोई कानून नहीं है जो एक मकान मालिक को उसकी संपत्ति का आनंद लेने से वंचित कर सके।

The Apex Court in Prativa Devi (Smt.) (Supra) has held that landlord is the best judge of his residential requirement. He has a complete freedom in the matter.

यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की खंडपीठ ने गोपाल कृष्णा शंखधर की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। मामले में मकान मालिक ने किरायेदार से अपनी संपत्ति को मुक्त करने के लिए उत्तर प्रदेश शहरी भवन (पट्टा, किराया और बेदखली का विनियमन) अधिनियम 1972 की धारा 21(1) ए के तहत एक मामला दायर किया था।

मकान मालिक Landlord का कहना था कि किरायेदार Tenant को आवास से हटा दिया जाए, क्योंकि उनका परिवार बढ़ रहा था और उन्हें जगह की जरूरत थी।

वहीं दूसरी ओर किरायेदार ने तर्क दिया कि मकान मालिक के पास शहर में अलग-अलग आवास हैं और उनके पास जमीन का वास्तविक कब्जा नहीं था। निचली अदालत ने मकान मालिक के आवेदन को खारिज कर दिया, लेकिन अपीलीय न्यायालय ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद किरायेदार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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In Balwant Singh (Supra), the Apex Court reiterated that a tenant cannot dictate how much space is admitted for the landlord.

हाईकोर्ट High Court ने पाया कि मकान मालिक के पास उनके विशेष कब्जे में कोई संपत्ति नहीं है। बेंच ने विभिन्न निर्णयों का उल्लेख किया और टिप्पणी की कि अदालत को मकान मालिक Land Lord की वास्तविक आवश्यकता का निर्धारण करना है और किरायेदारों और मकान मालिक के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना है।

इस संदर्भ में, बेंच ने देखा कि मकान मालिक के परिवार में नौ सदस्य हैं और विवादित संपत्ति के कब्जे के लिए मकान मालिक की आवश्यकता वास्तविक है।

कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और किरायेदार-अधिवक्ता को छह महीने के भीतर परिसर खाली करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल – गोपाल सिंध शंखधर बनाम श्री मनोज कुमार अग्रवाल और अन्य
केस नंबर – रिट नंबर: 2426/2022

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