वकील अपने मुवक्किल के साथ अपनी पहचान नहीं बना सकता साथ ही जांच एजेंसियों से सीधे बातचीत नहीं कर सकता – इलाहाबाद हाईकोर्ट

वकील अपने मुवक्किल के साथ अपनी पहचान नहीं बना सकता साथ ही जांच एजेंसियों से सीधे बातचीत नहीं कर सकता – इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी वकील जांच अधिकारी व अन्य जांच एजेंसियों से सीधे बातचीत नहीं कर सकता है, जब तक कि अदालत ऐसा आदेश न दे।

न्यायमूर्ति समित गोपाल ने यह टिप्पणी कर SVOGL ऑयल गैस एंड एनर्जी लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक आरोपी पदम सिंघी को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी।

गाजियाबाद निवासी पदम सिंघी पर 26 मार्च 2021 को प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत मामला दर्ज किया था। आवेदक सात फरवरी 2024 से जेल में है। आरोपी ने जमानत के लिए हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी।

इस दौरान आरोपियों के वकील ने ईडी के जांच अधिकारी (IO) को दो ईमेल भेजे थे। इसमें उनसे जमानत मामले में जल्द जवाब दाखिल करने का अनुरोध किया था। इस पर न्यायालय ने अधिवक्ता के आचरण पर कड़ी आपत्ति जता कहा कि यदि जवाब दाखिल करने के आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है तो सही उपाय यही है कि पीठ को सूचित किया जाए।

अदालत ने कहा-

ई-मेल भेज अधिकारियों को अदालत के आदेश की याद दिलाना और उनसे इसका अनुपालन करने का अनुरोध करना वकीलों के कर्तव्यों के दायर में नहीं है। इस संबंध में न्यायालय ने अधिवक्ताओं के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के व्यावसायिक आचरण नियमों का भी उल्लेख किया।

इस संबंध में न्यायालय ने धारा III “प्रतिद्वंद्वी के प्रति कर्तव्य” के पैरा 34 में “वकीलों द्वारा पालन किए जाने वाले व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानकों” [एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 49(1) (सी) के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए] का भी उल्लेख किया, जिसमें इस प्रकार कहा गया है:

“34. एक वकील किसी भी तरह से विवाद के विषय पर किसी भी पक्ष के साथ संवाद या बातचीत नहीं करेगा, जिसका प्रतिनिधित्व वकील द्वारा किया जाता है, सिवाय उस वकील के माध्यम से।”

अदालत ने टिप्पणी की-

“वकील अपने मुवक्किल के साथ अपनी पहचान नहीं बना सकता। वह जांच अधिकारी आदि जैसी एजेंसियों से सीधे बातचीत नहीं कर सकता, जब तक कि अदालत द्वारा ऐसा आदेश न दिया जाए, खासकर विचाराधीन कार्यवाही के संबंध में। एजेंसियों, जांच अधिकारियों आदि से सीधे बातचीत करना किसी आरोपी द्वारा नियुक्त वकील का कर्तव्य नहीं है। उसे केवल अदालत में उसका प्रतिनिधित्व करना है। उसका काम अदालत की सहायता करना है। अदालत द्वारा पारित आदेश का पक्षों द्वारा पालन किए जाने की उम्मीद की जाती है और यदि किसी पक्ष को दूसरे के खिलाफ कोई शिकायत है तो उचित प्रक्रिया अदालत को इसके बारे में अवगत कराना है।”

अदालत ने ये टिप्पणियां दिल्ली स्थित तेल कंपनी के प्रमोटर पदम सिंघी को जमानत देते हुए कीं, जो धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 3/4 के तहत प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) का सामना कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा की नियमों में कहा गया है कि कोई भी वकील किसी भी तरह से विवाद के विषय पर किसी भी पक्ष के साथ संवाद या बातचीत नहीं करेगा, सिवाय उस वकील के माध्यम से। हाईकोर्ट ने आरोपी के वकीलों के खिलाफ टिप्पणी प्रवर्तन निदेशालय के वकीलों की आपत्ति पर की।

वाद शीर्षक – पदम सिंघी बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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