शीर्ष अदालत का देश के जजों को संदेश, बताया कैसे लिखा जाना चाहिए फैसला और फैसले में क्या-क्या होने चाहिए जरूरी तत्व-

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मा. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और मा. न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने उत्तर प्रदेश के बलिया के एक मामले में हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए स्वामीनाथ यादव, सुरेंद्र कुमार पांडेय, झींगुर भार, और विक्रम यादव की अपील पर जमानत देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद करते हुए यह फैसला सुनाया है-

शीर्ष अदालत ने देश के जजों को बताया है कि उन्हें फैसला कैसे लिखना चाहिए और फैसले में क्या-क्या जरूरी तत्व होने चाहिए। मंगलवार को एक मामले में दिए फैसले में जजों को फैसला लिखने का तरीका सिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक कला है। इसमें कुशलता के साथ कानून और तर्क शामिल होता है। फैसला तर्कसंगत, सटीक और स्पष्ट होना चाहिए। मुकदमा करने वाले पक्षकारों को जरूर मालूम होना चाहिए कि उन्हें अंतिम राहत के तौर पर क्या मिला है?

इलाहाबाद उच्च न्यायलय के आदेश को रद करते हुए दिया फैसला-

मा. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और मा. न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने उत्तर प्रदेश के बलिया के एक मामले में हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए स्वामीनाथ यादव, सुरेंद्र कुमार पांडेय, झींगुर भार, और विक्रम यादव की अपील पर जमानत देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद करते हुए यह फैसला सुनाया है। मृतक की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अभियुक्तों को जमानत दिए जाने को चुनौती दी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमानत देने में भारी भूल की है।

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शीर्ष अदालत ने सभी की जमानत रद करते हुए अभियुक्तों को आगे की सजा भुगतने के लिए तत्काल समर्पण करने का आदेश दिया है। अभियुक्तों के समर्पण नहीं करने पर चारों को गिरफ्तार करके जेल भेजा जाएगा।

हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल कहा कि इसमें जरा भी स्पष्टता नहीं-

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें जरा भी स्पष्टता नहीं है। यह पता नहीं चलता कि फैसले का कौन सा भाग निष्कर्ष है और कौन सा भाग दलीलों का है। हाई कोर्ट ने जिस तरह से अपील लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियां निपटाई हैं, उस तरीके को मंजूर नहीं किया जा सकता। चारों अभियुक्तों को आठ महीने सजा काटने के बाद ही जमानत दे दी गई थी। इस मामले में पुलिस अधिकारी ने जांच और डाक्टर ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गलत कारण दिए थे, जिसके कारण उन्हें भी सुबूत नष्ट करने में सजा सुनाई गई है।

कारणों पर आधारित होना चाहिए निष्कर्ष-

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले में दिए गए कारण तर्कसंगत और सुस्पष्ट होने चाहिए। लक्ष्य स्पष्टता और सटीकता होनी चाहिए। सभी निष्कर्ष दर्ज कारणों पर आधारित होने चाहिए। फैसले में निष्कर्ष और निर्देश सटीक होना चाहिए। जब भी फैसला लिखा जाए उसमें तथ्यों को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। मुकदमा लड़ रहे पक्षों की ओर से दी गई दलीलें हों। इसके बाद कानून के पहलू पर चर्चा हो और उसके बाद कारण दिया जाए। फिर अंतिम निष्कर्ष दिया जाना चाहिए और उसके बाद आदेश का आपरेटिव भाग (जो निर्देश हैं) दिया जाना चाहिए।

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कई बार समझना मुश्किल होता है कि जज कहना क्या चाहते हैं-

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने बहुत से ऐसे फैसले देखे हैं, जिनमें तथ्यों, कारण और निष्कर्ष को लेकर स्पष्टता नहीं होती। कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि जज फैसले के जरिये क्या कहना चाहते हैं। कोर्ट ने फैसले का मतलब समझाते हुए बताया कि इसका मतलब होता है -न्यायिक राय, जो केस की कहानी बताती है। केस किस बारे में है? कैसे कोर्ट ने केस को हल किया है? सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं है कि फैसला सही हो। यह आसानी से समझ में आने वाला भी होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा-

-फैसला लिखना एक कला है। इसमें कुशलता के साथ कानून और तर्क शामिल होता है।
-हमें पता है कि जजों के पास मुकदमों का बहुत बोझ है, लेकिन संख्या के लिए गुणवत्ता की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।
-अगर फैसला विधि पूर्ण तरीके से नहीं होगा तो उसका व्यापक प्रभाव नहीं होगा।

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