सुप्रीम कोर्ट का आदेश: उच्च न्यायालय का पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र ट्रायल कोर्ट के आदेश से संबंधित होगा

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: उच्च न्यायालय का पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र ट्रायल कोर्ट के आदेश से संबंधित होगा

 

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: धारा 319 CrPC के तहत पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार पर महत्वपूर्ण व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: उच्च न्यायालय का पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र ट्रायल कोर्ट के आदेश से संबंधित होगा

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने एक महत्वपूर्ण अपील पर विचार किया। इस अपील में प्रश्न था कि क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उचित रूप से अपने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार (Revisional Jurisdiction) का प्रयोग किया, जब उसने ट्रायल कोर्ट द्वारा धारा 319 CrPC के तहत दायर दूसरी अर्जी को खारिज करने के आदेश को निरस्त कर दिया था।

न्यायालय का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को सही ठहराया और स्पष्ट किया कि यदि कोई उच्च न्यायालय किसी अधीनस्थ न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करता है, तो धारा 401 एवं 397 CrPC के तहत पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करने से संबंधित कोई भी सुधार उसी प्रकार मान्य होगा, जैसा कि किसी अपीलीय न्यायालय द्वारा किया गया सुधार। इसके परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय के आदेश का प्रभाव उस तिथि से माना जाएगा, जब ट्रायल कोर्ट ने मूल आदेश पारित किया था

कोर्ट ने कहा कि यदि पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके हाईकोर्ट किसी आदेश को रद्द करता है, तो उसके आदेश का प्रभाव मूल आदेश की तिथि से ही प्रभावी होगा और ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किए गए नए आदेश भी उसी तिथि से लागू माने जाएंगे।

मामले की पृष्ठभूमि

  • 14 अप्रैल 2009: मामले के उत्तरदाता (Respondent 2) ने IPC की धारा 147, 148, 149 और 302 के तहत पांच लोगों के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करवाई।
  • 27 अक्टूबर 2009: ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर आरोप तय किए, और उन्होंने खुद को निर्दोष बताया।
  • ट्रायल के दौरान, उत्तरदाता ने CrPC की धारा 319 के तहत तीन अन्य व्यक्तियों को मुकदमे में शामिल करने की अर्जी दायर की।
  • 19 जुलाई 2010: ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि जब तक ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य नहीं मिलते, किसी व्यक्ति को धारा 319 CrPC के तहत मुकदमे में शामिल नहीं किया जा सकता।
  • हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की गई, लेकिन इस दौरान मूल आरोपियों के खिलाफ ट्रायल पूरा हुआ और उन्हें दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा दी गई।
  • 2021: हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और धारा 319 CrPC के तहत अर्जी पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
  • 21 फरवरी 2024: अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने उत्तरदाता की अर्जी को स्वीकार करते हुए तीन अन्य व्यक्तियों को मुकदमे में सम्मन जारी कर दिया।
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मुख्य कानूनी प्रश्न और सुप्रीम कोर्ट का आकलन

  1. क्या ट्रायल समाप्त होने के बाद धारा 319 CrPC के तहत आरोपी को बुलाया जा सकता है?
    • कोर्ट ने कहा कि यदि ट्रायल के दौरान धारा 319 CrPC के तहत किसी व्यक्ति को सम्मन करने की अर्जी गलत तरीके से खारिज की गई थी, और हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके उसे स्वीकार किया, तो उस आदेश का प्रभाव मूल आदेश की तिथि से होगा
    • इसका अर्थ यह हुआ कि नए आरोपी के खिलाफ ट्रायल एक अलग मुकदमे के रूप में संचालित होगा।
  2. क्या हाईकोर्ट का पुनरीक्षण आदेश ट्रायल कोर्ट के मूल आदेश की तिथि से प्रभावी होगा?
    • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि हाईकोर्ट धारा 401 और 397 CrPC के तहत पुनरीक्षण आदेश जारी करता है, तो वह आदेश ट्रायल कोर्ट के मूल आदेश की तिथि से प्रभावी माना जाएगा।
    • इस प्रकार, धारा 319 CrPC के तहत सम्मन आदेश को ट्रायल समाप्त होने के बाद भी लागू किया जा सकता है।
  3. क्या यह मामला पूर्व में निर्धारित विधि-सिद्धांतों के अंतर्गत आता है?
    • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले के विशेष तथ्य परिस्थितियाँ Sukhpal Singh Khaira बनाम पंजाब राज्य (2023) 1 SCC 289 और Hardeep Singh बनाम पंजाब राज्य (2014) 3 SCC 92 में दिए गए दिशा-निर्देशों के पूर्ण रूप से अनुरूप नहीं हैं।
    • इसलिए, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एक नई व्याख्या की आवश्यकता है, क्योंकि यह पहली बार हो रहा है कि पुनरीक्षण आदेश के प्रभाव को ट्रायल कोर्ट के मूल आदेश की तिथि से जोड़कर देखा जा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष

  • हाईकोर्ट का आदेश वैध है, और पुनरीक्षण आदेश का प्रभाव ट्रायल कोर्ट के आदेश की तिथि से लागू होगा।
  • धारा 319 CrPC का मुख्य उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, और इस धारा का प्रयोग मुकदमे के किसी भी चरण में किया जा सकता है, बशर्ते कि सम्मन आदेश ट्रायल समाप्त होने से पहले पारित हुआ हो।
  • ट्रायल कोर्ट द्वारा गलत तरीके से खारिज की गई अर्जी को हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में सही किया, इसलिए उसका प्रभाव पिछली तिथि से माना जाएगा।
  • भविष्य में ऐसे मामलों में विलंब से बचने के लिए, हाईकोर्ट को यह निर्देश देना चाहिए कि जब धारा 319 CrPC से संबंधित पुनरीक्षण याचिका लंबित हो, तो ट्रायल कोर्ट अपनी कार्यवाही रोक दे।

निष्कर्ष

यह फैसला धारा 319 CrPC की व्याख्या और हाईकोर्ट के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि उच्च न्यायालय किसी आदेश को सुधारता है, तो वह आदेश उस तिथि से प्रभावी होगा, जब अधीनस्थ न्यायालय ने मूल आदेश पारित किया था। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी दोषी व्यक्ति केवल तकनीकी आधारों पर बच न सके और न्याय की प्रभावशीलता बनी रहे।

📌वाद शीर्षक – जामिन  बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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