सुप्रीम कोर्ट ने पुनः कहा किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना या मिथ्या जानकारी देने की स्थिति में नियोक्ता के पास कर्मचारी/उम्मीदवार की सेवा समाप्त करना विकल्प हमेशा खुला रहता है-

सर्वोच्च अदालत

इस मामले में वर्ष 1994 में अपीलकर्ता का चयन कर दिल्ली पुलिस सेवा में सब-इंस्पेक्टर पद पर हुआ था। अपीलकर्ता की सेवाओं को इस आधार पर समाप्त कर दिया गया कि वह सेना से भगोड़ा घोषित किया गया था। यह नोट किया गया कि उसने सेना में अपनी पहली नौकरी के बारे में खुलासा नहीं किया था और उक्त जानकारी को छुपाया था।

अपीलकर्ता का तर्क यह था कि नियोक्ता को उसकी बर्खास्तगी से पहले उसे एक अवसर देकर जांच करनी चाहिए थी।

दूसरी ओर, नियोक्ता ने तर्क दिया कि चूंकि आक्षेपित आदेश एक सेवा समाप्त करने के मज़बूत आधार पर है, इसलिए जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि अपीलकर्ता की नौकरी स्थायी नहीं की गई थी।

न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ बिना कोई आरोप लगाए यह आदेश केवल एक सेवा समाप्ति का सरल आदेश है।

अदालत ने कहा, “प्रोबेशन की अवधि के दौरान नियोक्ता के पास यह हमेशा विकल्प होता है कि यदि उसे कोई शिकायत या अन्यथा कोई जानकारी प्राप्त होती है तो वह अस्थायी रूप से नियुक्त व्यक्ति के पिछ्ले रिकॉर्ड को सत्यापित करे। केवल इसलिए कि पिछले रिकॉर्ड की जांच के लिए एसएचओ इंद्रपुरी को एक पत्र लिखा गया था, यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादियों ने नियमित जांच की है, जिसके लिए अपीलकर्ता को एक मौका दिया जाना आवश्यक था।

पीठ ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ (2016) 8 एससीसी 471 में फैसले में की गई निम्नलिखित टिप्पणियों का उल्लेख किया-

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इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बार सत्यापन फॉर्म के लिए कुछ जानकारी प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, घोषणाकर्ता इसे सही ढंग से प्रस्तुत करने के लिए कर्तव्यबद्ध है और कोई भी भौतिक तथ्यों को छुपाने या झूठी जानकारी देने से उसकी सेवाओं को समाप्त किया जा सकता है या रद्द किया जा सकता है।

एक उपयुक्त मामले में उम्मीदवार पर कोई आपराधिक मामला विचाराधीन होने पर, नियोक्ता को इस तरह के उमीदवार की नियुक्ति नहीं करने या सेवा को समाप्त करने के लिए उचित ठहराया जा सकता है, क्योंकि अंततः उसे नौकरी और नियोक्ता के लिए अनुपयुक्त बना सकता है। नियोक्ता को आपराधिक मामले के परिणाम तक इंतजार नहीं करना चाहिए। ऐसे मामले में गैर-प्रकटीकरण या गलत जानकारी प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण कारक होगा और यह अपने आप में नियोक्ता के लिए उम्मीदवारी रद्द करने या सेवाओं को समाप्त करने का आधार हो सकता है। इस प्रकार उक्त की अपील खारिज कर दी गई।

केस टाइटल – राजेश कुमार बनाम भारत संघ
केस नंबर – 2009 का सीए 7353-7354
कोरम – न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय

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