शीर्ष अदालत Supreme Court ने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक ऑस्कर वाइल्ड की एक पंक्ति का भी उल्लेख किया कि ‘एक संत और एक पापी के बीच केवल यही अंतर होता है कि हर संत का एक इतिहास होता है और हर पापी का एक भविष्य।’
चार साल की बच्ची से दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने वाले शख्स को सुनाए गए मृत्यु दंड को सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया है।
न्यायाधीश यूयू ललित, एस रविंद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने हत्या के मामले में दोषी को सुनाए गए मृत्युदंड को उम्र कैद में और दुष्कर्म के मामले में 20 साल के कारावास में बदल दिया।
पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अपराधी को सुनाई गई अधिकतम सजा उसके विकृत मानस को दुरुस्त करने के लिए हमेशा निर्णायक कारक नहीं हो सकती। 19 अप्रैल को दिए गए इस फैसले में पीठ ने यह भी कहा कि जेल से रिहा होने पर उसे सामाजिक रूप से उपयोगी व्यक्ति बनने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए।
सजा में बदलाव का यह फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक ऑस्कर वाइल्ड की एक पंक्ति का भी उल्लेख किया कि ‘एक संत और एक पापी के बीच केवल यही अंतर होता है कि हर संत का एक इतिहास होता है और हर पापी का एक भविष्य।’
मामला मध्यप्रदेश के सेओनी जिले के एक गांव का हैके जिले का है-
17 अप्रैल 2013 को सेओनी जिले के एक गांव में चार साल की एक बच्ची से दुष्कर्म किया गया था। इस बच्ची की बाद में महाराष्ट्र के एक अस्पताल में मौत हो गई थी। बच्ची के साथ इस घिनौनी हरकत को 35 साल के मोहम्मद फिरोज नामक शख्स ने घनसौर फार्म में अंजाम दिया था और बाद में बच्ची को एक खेत में फेंक दिया था।
बच्ची के माता-पिता ने उसे बेहोशी की हालत में पाया था और अगली सुबह उसे जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कॉलेज ले गए। हालांकि, यहां से बच्ची को एयर एंबुलेंस के माध्यम से नागपुर ले जाया गया और रामदासपेठ इलाके के केयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गई थी।
दुष्कर्म आरोपी को बिहार से किया गया था गिरफ्तार-
मध्यप्रदेश Madhya Pradesh के एक निजी पावर प्लांट में काम करने वाले फिरोज को बिहार में भागलपुर जिले के हुसैनाबाद इलाके से गिरफ्तार किया गया था। मामले में सुनवाई के दौरान निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप में मृत्यु दंड और दुष्कर्म के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
इसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन वहां उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट में निराशा हाथ लगने के बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में मृत्यु दंड की सजा के खिलाफ अपील की थी।
उच्चतम अदालत ने मामले में हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए उसके मृत्यु दंड को उम्र कैद में बदल दिया।