सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर जताई चिंता, दोषी नेताओं की संसद वापसी पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर जताई चिंता, दोषी नेताओं की संसद वापसी पर उठाए सवाल

“अगर कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए दोषी पाया जाता है, तो उसे सेवा के लिए अयोग्य माना जाता है। लेकिन वही व्यक्ति मंत्री बन सकता है, ऐसा कैसे संभव है?”

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 10 फरवरी, 2025 को राजनीति के अपराधीकरण को गंभीर मुद्दा बताते हुए सवाल किया कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद कोई व्यक्ति संसद में कैसे लौट सकता है।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने इस संवेदनशील विषय पर भारत के अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी।

दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग

पीठ एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे और दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।

केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग से तीन सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा, “एक बार दोषसिद्धि हो जाने के बाद, व्यक्ति संसद या विधानमंडल में कैसे लौट सकता है? इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए। यहां हितों का टकराव भी स्पष्ट है, क्योंकि ऐसे लोग स्वयं कानून बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा बन जाते हैं।”

दोषी सरकारी कर्मचारी सेवा के अयोग्य, तो मंत्री कैसे बन सकता है?

पीठ ने आगे सवाल किया कि “अगर कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के लिए दोषी पाया जाता है, तो उसे सेवा के लिए अयोग्य माना जाता है। लेकिन वही व्यक्ति मंत्री बन सकता है, ऐसा कैसे संभव है?”

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मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे पहले तीन न्यायाधीशों की पीठ सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों के शीघ्र निपटारे पर निर्णय दे चुकी है। इसलिए, इस दो-न्यायाधीशीय पीठ के लिए मामले को फिर से खोलना उचित नहीं होगा।

अदालत ने इस विषय को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखते हुए इसे बड़ी पीठ के विचारार्थ भेजने का निर्देश दिया।

हजारों मामले अब भी लंबित— न्याय मित्र की रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की न्याय मित्र के रूप में सहायता कर रहे सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के आदेशों के बावजूद, देशभर में सांसदों और विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में आपराधिक मामले लंबित हैं।

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