Supreme Court of INDIA उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि डाकघर धोखाधड़ी के कारण हुए नुकसान के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का हकदार है।
यह उल्लेख करते हुए कि किसी डाकघर या बैंक को उनके कर्मचारियों द्वारा की गई धोखाधड़ी या गलतियों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का मई 2015 का फैसला रद्द कर दिया।उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने ‘किसान विकास पत्र’ (Kisan Vikas Patra) से संबंधित मामले में उत्तर प्रदेश अंचल के पोस्ट मास्टर जनरल एवं विभाग के कुछ अन्य अधिकारियों के खिलाफ दायर एक शिकायत को खारिज कर दिया था।
शिकायत 25.54 लाख रुपये की कुछ केवीपी के नकदीकरण से संबंधित थी, जिन्हें उत्तर प्रदेश के विभिन्न डाकघरों से 1995 और 1996 में दो व्यक्तियों ने संयुक्त नामों से में खरीदा था।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने निर्देश दिया कि अधिकारी संयुक्त रूप से ‘किसान विकास पत्र’ (Kisan Vikas Patra) के परिपक्वता मूल्य का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे, क्योंकि केवीपी को नकदीकरण के लिए डाकघर में प्रस्तुत किया गया था।
पीठ ने कहा, ‘इस प्रकार, डाकघर, एक बैंक की तरह, धोखाधड़ी, आदि के कारण हुए नुकसान के लिए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का हकदार है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि फरवरी 2000 में शिकायतकर्ताओं ने केवीपी को दूसरे डाकघर में स्थानांतरित करने के अनुरोध के साथ लखनऊ के प्रधान डाकघर के पोस्टमास्टर से संपर्क किया था।
उन्होंने आरोप लगाया था कि पोस्टमास्टर ने सिफारिश की थी कि वे उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा नियुक्त और डाकघर से जुड़े एक एजेंट की सेवाएं लें।
शिकायतकर्ताओं ने कहा था कि उन्हें यह विश्वास करने के लिए गुमराह किया गया था कि एजेंट की मदद के बिना स्थानांतरण संभव नहीं होगा और एजेंट उनके आवास पर आया और उसने हस्ताक्षरित मूल केवीपी ले लिए।
उन्होंने कहा कि जून 2000 में, उन्हें पता चला कि एजेंट ने कई निवेशकों को धोखा दिया था और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।
शिकायतकर्ता ने कहा था कि उन्होंने पाया कि याहियागंज और लाल बाग डाकघरों से केवीपी को भुनाया गया था और एजेंट को 25,54,000 रुपये नकद में दिए गए थे जो पूरी राशि को हड़प गया।
उन्होंने दावा किया था कि पूछताछ में एक उप-पोस्टमास्टर की संलिप्तता का पता चला, जिसने नियमों के विपरीत, परिपक्वता राशि का भुगतान नकद में किया था न कि उनके नाम पर चेक से।
एनसीडीआरसी ने अपने फैसले में यह स्वीकार करते हुए कि भुगतान करने में अधिकारी को कुछ लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, विभाग के अधिकारियों के खिलाफ शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन्होंने किसान विकास पत्र नियमों के अनुसार काम किया था।
एनसीडीआरसी ने एजेंट को डाकघर से राशि जारी करने की तारीख से शिकायतकर्ताओं द्वारा वसूली की तारीख तक नौ प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज के साथ 25,54,000 रुपये का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया था।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एजेंट, जो न तो याचिका का विरोध करने के लिए उसके सामने पेश हुआ है और न ही एनसीडीआरसी के फैसले को चुनौती दी है, उस पर धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात सहित आरोपों पर मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया।
पीठ ने इस पहलू को देखा कि क्या संबंधित उप-पोस्टमास्टर की गलतियों और कृत्यों के लिए विभाग उत्तरदायी होगा।
पीठ ने कहा कि एक डाकघर, एक अमूर्त इकाई के रूप में, अपने कर्मचारियों के माध्यम से कार्य करता है, जो व्यक्तिगत रूप से बेईमान होने और खुद या दूसरों के साथ मिलीभगत से धोखाधड़ी के कार्य करने में सक्षम हैं।
इसने कहा, ‘बैंक/डाकघर के कर्मचारियों के इस तरह के कृत्य, जब उनके रोजगार के दौरान किए जाते हैं, तो इससे अपीलकर्ताओं को नुकसान की भरपाई के लिए कानूनी रूप से आगे बढ़ने का अधिकार मिलता है क्योंकि डाकघर के खिलाफ उनके लिए एकमात्र यही उपाय है।’’
पीठ ने मामले के ब्योरे का हवाला देते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उप-पोस्टमास्टर ने अपनी नौकरी के दौरान यह धोखाधड़ी की थी।
इसने यह भी उल्लेख किया कि विभाग ने उप-पोस्टमास्टर के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में कार्रवाई की थी।
पीठ ने कहा, ‘उपरोक्त निष्कर्षों के मद्देनजर, हम इन अपील को स्वीकार करते हैं और अपीलकर्ताओं द्वारा दायर उपभोक्ता मामले को खारिज करने वाले एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द करते हैं।’
पीठ ने कहा कि एजेंट के खिलाफ एनसीडीआरसी द्वारा पारित निर्देश अबाधित रहेगा।
पीठ ने लापरवाही में सहायक केरल राज्य सहकारी विपणन संघ बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य का जिक्र करते हुए (204) 2 एससीसी 425 और केनरा बैंक बनाम केनरा सेल्स कॉर्पोरेशन और अन्य। (1987) 2 एससीसी 666, कोर्ट ने नोट किया कि जब कोई बैंक जाली चेक को भुनाता है, तो वह लापरवाही के बचाव के साथ ग्राहक के दावे का मुकाबला नहीं कर सकता है।
बैंक द्वारा लापरवाही की पैरवी तभी की जा सकती है जब वह ग्राहक की ओर से दत्तक ग्रहण, रोक या सुधार स्थापित करता है।
भारतीय स्टेट बैंक बनाम श्रीमती श्यामा देवी (1978) 3 SCC 399 का हवाला देते हुए कोर्ट ने माना कि जब किसी पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों द्वारा उनके रोजगार के दौरान धोखाधड़ी के कृत्य किए जाते हैं, तो पोस्ट ऑफिस वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी होगा और पीड़ित ग्राहक को इसके खिलाफ आगे बढ़ने का अधिकार होगा।
कोर्ट ने कहा-
“बैंक/पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों के इस तरह के कृत्य उनके रोजगार के दौरान होने के कारण अपीलकर्ताओं को कानूनी रूप से चोट के लिए आगे बढ़ने का अधिकार मिलेगा, क्योंकि पोस्ट ऑफिस के खिलाफ यह उनका एकमात्र उपाय है। इस प्रकार, पोस्ट ऑफिस, एक बैंक की तरह, धोखाधड़ी आदि के कारण हुए नुकसान के लिए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का हकदार है, लेकिन यह उन्हें उनके दायित्व से मुक्त नहीं करेगा यदि इसमें शामिल कर्मचारी अपने रोजगार और कर्तव्यों के दौरान कार्य कर रहा था।”
मामले के तथ्यों में न्यायालय ने पोस्ट ऑफिस के अधिकारियों को संयुक्त रूप से और गंभीर रूप से केवीपी के परिपक्वता मूल्य को ब्याज, मुआवजे और जुर्माने के साथ भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया। आठ सप्ताह के भीतर भुगतान करने में विफल रहने पर, इसने मुआवजे की राशि पर अतिरिक्त ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल – प्रदीप कुमार और अन्य बनाम पोस्ट मास्टर जनरल और अन्य
केस नंबर – सिविल अपील नंबर: 2016 का 8775-8776
कोरम – न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव न्यायमूर्ति संजीव खन्ना न्यायमूर्ति बीआर गवई