सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी बार काउंसिल अपने वकील को निर्देश न देकर “उदासीनता और असंवेदनशीलता” दिखा रही है, यह दुर्भाग्य है-

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी बार काउंसिल अपने वकील को निर्देश न देकर “उदासीनता और असंवेदनशीलता” दिखा रही है, यह दुर्भाग्य है-

यह राज्य की बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कर्तव्य है कि वह गरिमा बनाए रखे और कानूनी पेशे की महिमा को बहाल करे।

एसआईटी ने कहा 300,76,40,000/- की राशि का दावा करने वाली विभिन्न दावा याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है यह अत्यन ही गंभीर है-

सर्वोच्च न्यायलय ने दिनांक 05.10.2021 के एक आदेश में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण और कामगार मुआवजा अधिनियम के तहत फर्जी दावा याचिका दायर करने के लिए अधिवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए उत्तर प्रदेश बार काउंसिल की आलोचना की थी।

न्यायलय ने उत्तर प्रदेश सरकार/एसआईटी को उन अधिवक्ताओं के नाम अग्रसारित करने का निर्देश दिया, जिनके खिलाफ संज्ञेय अपराधों के मामलों का खुलासा 15 नवंबर, 2021 तक एक सीलबंद लिफाफे में किया जाता है, ताकि उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया (BCI) भेजा जा सके।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की बेंच ने 16.11.2021 के एक आदेश में कहा कि 05.10.2021 के पहले के आदेश में कड़ी टिप्पणियों के बावजूद बार काउंसिल ऑफ यूपी की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ है।

खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में जहां अधिवक्ताओं के खिलाफ फर्जी दावा याचिका दायर करने के आरोप हैं, सख्त टिप्पणियों के बावजूद बार काउंसिल ऑफ यूपी अपने वकील को निर्देश न देकर “उदासीनता और असंवेदनशीलता” दिखा रही है। 16 नवंबर 2021 को भी बार काउंसिल ऑफ यूपी की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ।

न्यायलय ने कहा, “फर्जी दावा याचिका दायर करना एक बहुत ही गंभीर मामला है। यह अंततः पूरी संस्था की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। कानूनी पेशे को हमेशा एक बहुत ही महान पेशा माना जाता है और अदालतों में फर्जी दावा याचिका दायर करने की ऐसी चीजें बर्दाश्त नहीं की जा सकती हैं।

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यह राज्य की बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कर्तव्य है कि वह गरिमा बनाए रखे और कानूनी पेशे की महिमा को बहाल करे।

वर्तमान मामले में, दुर्भाग्य से बार काउंसिल ऑफ यूपी बिल्कुल भी गंभीर नहीं है, जैसा कि ऊपर की असंवेदनशीलता का जिक्र किया गया है।”

पीठ ने यह भी कहा कि Special Investigating Team (एसआईटी) द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, “अब तक विभिन्न जिलों में दर्ज कुल 92 आपराधिक मामलों में से, 55 मामलों में 28 अधिवक्ताओं को आरोपी व्यक्तियों के रूप में नामित किया गया है, 32 मामलों में जांच पूरी हो चुकी है और आरोप पत्र दायर किये गये हैं। शेष में मामलों की जांच लंबित बताई जा रही है।”

A Status Report on affidavit has been filed by the SIT. It is reported that out of total 92 criminal cases in various districts registered till date, of which 28 advocates have been named as accused persons in 55 cases, the investigation has been concluded/completed in 32 cases and the change sheet has been filed. In rest of the cases, the investigation is stated to be pending. It is stated that consequent to the direction passed by the High Court of Allahabad, Lucknow Bench, Lucknow to the Special Investigating Team, U.P., Lucknow for investigation of the cases of suspicious claims, total 233 suspicious claims of various insurance companies have been dismissed or dismissed in default or not pressed due to of which various claim petitions claiming amount of Rs.300,76,40,000/- have been rejected by the Tribunals. It is very unfortunate that despite the fact that the FIRs have been filed as far as back in the year 2016-2017, still the investigation is reported to be pending.

शीर्ष अदालत द्वारा फर्जी दावा वाद दाखिला मामले में अधिवक्ताओं पर UP Bar Council को निर्देश, 15 नवंबर तक ऐसे सभी वकीलों की सूची सीलबंद लिफाफे में जमा करने का आदेश-

बेंच ने कहा कि यह बहुत “दुर्भाग्यपूर्ण” है कि इस तथ्य के बावजूद कि वर्ष 2016-2017 में प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, जांच अभी भी लंबित है और यहां तक कि उन मामलों में जहां आरोप पत्र दायर किया गया है, निचली अदालतों द्वारा कोई आरोप तय नहीं किया गया है।

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बेंच ने कहा, “एसआईटी ( Special Investigating Team ) का गठन हाईकोर्ट द्वारा फर्जी दावा याचिकाओं दाखिल करने की जांच के लिए और विशिष्ट उद्देश्य के साथ किया गया था। फिर भी अधिकांश मामलों/प्राथमिकी में जांच लंबित होने की सूचना है। हम 4-5 साल बाद भी जांच पूरी नहीं करने और प्राथमिकी दर्ज करने में एसआईटी की ओर से की गयी लापरवाही और देरी की निंदा करते हैं।

” बेंच ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के वकील के प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दिया कि चूंकि बार काउंसिल ऑफ यूपी फर्जी दावों को दाखिल करने की अवैध गतिविधियों में लिप्त अधिवक्ताओं के नाम भेजने में सहयोग नहीं कर रहा है, इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी। इस हद तक जाकर, बेंच ने निर्देश दिया है कि, “एसआईटी आज से तीन दिनों की अवधि के भीतर फर्जी दावों को दर्ज करने में शामिल अधिवक्ताओं की सूची बीसीआई के वकील को भेजेगी, ताकि बीसीआई द्वारा आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।”

इसने एसआईटी के जांच अधिकारी को झूठे / फर्जी दावा याचिका दायर करते समय अपनाए गए तौर-तरीकों पर 2-3 पेज का नोट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने एसआईटी के जांच अधिकारी और बार काउंसिल ऑफ यूपी के अध्यक्ष और सचिव को कोर्ट की मदद के लिए सुनवाई की अगली तारीख को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।

पीठ ने सुनवाई की अगली तिथि आठ दिसम्बर रखी है।

केस टाइटल – सफीक अहमद बनाम आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य
विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 1110/2017

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कोरम – न्यायमूर्ति एमआर शाह न्यायमूर्ति संजीव खन्ना

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