जो इस्लाम को नहीं मानते, उन्हें मस्जिदों के लाउडस्पीकरों के शोर सुनने को नहीं करें मजबूर, हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार से मांगा जवाब-

1gujarat high court

Gujrat High Court गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को एक नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एक जनहित याचिका के आधार पर जारी किया गया है जिसमें पूरे गुजरात के मस्जिदों में लाउडस्पीकरों के बजने पर रोक लगाने की मांग की गई है। इसके लिए कोर्ट ने सरकार से 10 मार्च 2022 तक जवाब भी मांगा है। दरअसल, हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका Public Interest Litigation दायर की गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।

गांधीनागर के डॉक्टर धर्मेंद्र प्रजापति द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि उनके इलाके में अलग-अलग समय पर मुस्लिम आजान के लिए लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती है।

याचिकाकर्ता की दलीलों और याचिका में शामिल मुद्दे को देखते हुए कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है।

याचिकाकर्ता ने क्या दी दलीलें-

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में कहा था कि वह गांधीनगर जिले के जिस सेक्टर 5सी में रहता है, वहां पर आजान को लेकर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल से लोगों को काफी दिक्कतें होती है। उसने कोर्ट में कहा, “मुस्लिम समुदाय के लोग अलग-अलग समय पर प्रार्थना के लिए आ रहे थे और वे लाउड स्पीकर का इस्तेमाल करते हैं, जिससे आसपास के निवासियों को बहुत असुविधा और परेशानी होती है।”

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला-

प्रस्तुत याचिका पर गुजरात उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजीपुर जिले में मुअज्जिन द्वारा एम्पलीफाइंग उपकरणों के इस्तेमाल कर आजान देने की अपील को खारिज कर दिया था। इसी फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अपना तर्क दिया है और इस के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

ALSO READ -  ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि पिता पुत्री भद्दी टिप्पणी सुने बिना सड़क पर नहीं चल सकते- केरल हाईकोर्ट का अग्रिम जमानत से इनकार

याचिकाकर्ता ने इस संबंध में गांधीनगर के मामलातदार कार्यालय में एक लिखत शिकायत देने के बात भी कही है, लेकिन इसमें गांधीनगर के सेक्टर 7 पुलिस स्टेशन से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं होने की बात सामने आई है। उन्होंने यह शिकायत जून 2020 में की थी।

लाउडस्पीकरों कितने डेसिबल का बजाना चाहिए-

आपको बता दें कि राज्य में ध्वनि प्रदूषण नियमों के अनुसार माइक्रोफोन के इस्तेमाल के लिए केवल 80 डेसिबल की ही इजाजत है। ऐसे में मस्जिदों में 200 से अधिक डेसिबल वाले लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल की बात सामने आई है। कोर्ट ने इस बात को भी नोट किया है।

लाउडस्पीकर पर आजान को सब पर थोपना सही नहीं है –

याचिकाकर्ता के वकील ने शादी में इस्तेमाल किए जाने वाले बैंड के बारे में बोला है कि इसके लिए मौजूदा मानदंड हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की शादी जीवन में एक बार होती है, लेकिन आजान दिन में कई बार होती है। वही याचिकाकर्ता को यह भी कहते हुए सुना गया है कि जो लोग इस्लाम में विश्वास नहीं करते हैं, उन्हें इन आजानों को सुनने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। इस पर याचिकाकर्ता ने आगे कहा, “गणपति उत्सव, नवरात्रि के लिए प्रतिबंध हैं, फिर मस्जिदों की प्रार्थना के लिए क्यों नहीं।” याचिकाकर्ताओं का यह भी दलील है कि इस तरीके से लाउडस्पीकरों के उपयोग से उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र हुआ है-

वर्ष 2000 के सुप्रीम कोर्ट Supreme Court के चर्च ऑफ गॉड बनाम केकेआर मैजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन और अन्य के मामले का भी इस याचिका में जिक्र हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण को लेकर एक निर्देश दिया था और इसे नियंत्रित में रखने की बात कही थी। इस पर याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि किसी भी धर्म या समुदाय में यह जरूरी नहीं है कि उसे पालन करने के लिए उन्हें लाउडस्पीकरों का बजाना जरूरी है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।

ALSO READ -  सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: NI Act, Sec 138 में किसी व्यक्ति को चेक बाउंसिंग के अपराध में केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वह उस फर्म का पार्टनर या गांरटर था-

भगवान के मामले में लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल करना नहीं है जरूरी-

सुप्रीम कोर्ट के चर्च ऑफ चर्च के फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि धर्म और भगवान के मामले में लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल करने का किसी को कोई हक नहीं है। उस फैसले का हवाला देते हुए यह भी कहा गया कि किसी भी भारतीय को ऐसा कुछ सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जिसके लिए वह तैयार या चाहता नहीं हो।

अंत में कोर्ट ने सभी मुद्दे को सुनते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और इस संबंध में गुजरात सरकार से 10 मार्च 2022 तक जवाब मांगा है।

Translate »