शिवसेना उद्धव-बालासाहेब की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मांग की थी कि 2016 के नाबाम रेबिया फैसले की समीक्षा के लिए सात जजों की बेंच का गठन हो।
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने आज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह धारणा दी जा रही है कि यह लोकतंत्र की हत्या थी। कौल ने जोड़ा “हालांकि, जब नेता ने बहुमत खो दिया है, तो उन्हें (उद्धव ठाकरे) को एक दिन के लिए भी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है?”
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के दो धड़ों के बीच विभिन्न विवादों का जिक्र करते हुए महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही है।
संविधान पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता कौल ने आज प्रस्तुत किया, “हम शिवसेना हैं, हमारे पास भारी बहुमत है। हम मुक्त प्रवाह के बारे में बिल्कुल भी बात नहीं कर रहे हैं, हम एक आंतरिक असंतोष के बारे में बात कर रहे हैं। यह लोकतंत्र का सार है।”
नबाम रेबिया जजमेंट का जिक्र करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि महाराष्ट्र की स्थिति में, यह एक पार्टी से दूसरी पार्टी में मानव पूंजी के मुक्त प्रवाह की अनुमति देता है।
जिस पर कौल ने जवाब देते हुए कहा कि दल-बदल की राजनीति विधानसभा में तय नहीं की जा सकती और राजनीतिक दल में वापस जाना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश होकर कहा कि यह एक दलबदल विरोधी कानून का मुद्दा था, न कि असहमति विरोधी कानून का। साल्वे ने कहा कि ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करना था और बाद में सुनील प्रभु ने सत्र को रोकने के लिए अदालत का रुख किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया और स्थिति को देखते हुए ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र में शिवसेना के दो टुकड़े होने के बाद आए राजनीतिक संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले को सात जजों की पीठ के पास भेजने पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। नबाम राबिया के फैसले ने अयोग्यता याचिकाओं को तय करने के लिए स्पीकर की शक्ति को प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि उनके निष्कासन की मांग वाला प्रस्ताव लंबित था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने मामले पर दलीलें सुनीं। पीठ ने कहा, 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) को राजनीतिक प्रतिष्ठानों ने आत्मसात कर लिया है।
दी गईं ये दलीलें-
भाजपा विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी और मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि नबाम राबिया के फैसले की सत्यता पर पुनर्विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
ऐसे सवाल हमेशा खड़े होते रहेंगे – कपिल सिब्बल
वहीं महाविकास अघाड़ी के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, संविधान की 10वीं अनुसूची की इस तरह से व्याख्या की जाए कि सरकारों को गिराने के लिए इसका दुरुपयोग न किया जा सके। यह आज के नहीं, बल्कि कल के बारे में भी है। निर्वाचित सरकारों का गिरना तब तक जारी रहेगा जब तक कि अयोग्यता याचिकाओं का फैसला नहीं किया जाता। शिवसेना के उद्धव ठाकरे धड़े ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जून 2022 में उठाये गये महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के संवैधानिक मुद्दे केवल अकादमिक नहीं हैं। जब-जब चुनी हुई सरकारें गिरायी जायेंगी तब-तब ये सवाल खड़े होंगे। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं। दसवीं अनुसूची को एक चुनी हुई सरकार को गिराने की अनुमति न दें।
वहीं वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि न्यायालय को नबाम रेबिया के मामले को वर्तमान मामले से अलग नहीं करना चाहिए। यह किसी भी समस्या का हल नहीं, बल्कि भविष्य की मुकदमेबाजी उत्पन्न करेगा।
जानकारी हो कि शिवसेना उद्धव-बालासाहेब की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मांग की थी कि 2016 के नाबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधान सभा, (2016) 8 एससीसी 1″ (नबाम रेबिया मामला) फैसले की समीक्षा के लिए सात जजों की बेंच का गठन हो।
केस टाइटल – सुभाष देसाई बनाम राज्यपाल महाराष्ट्र