सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रोन्नति में उचित उम्मीदवार के चयन को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि समान श्रेणी के दावेदारों का वर्गीकरण करने के लिए शैक्षिक योग्यता एक वैध आधार है। साथ ही ऐसा करने पर संविधान के अनुच्छेद-14 या 16 का उल्लंघन नहीं होता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि शैक्षिक योग्यता का उपयोग एक निश्चित श्रेणी के दावेदारों के लिए प्रोन्नति में आरक्षण व्यवस्था शुरू करने के लिए किया जा सकता है या प्रोन्नति को पूरी तरह एक श्रेणी तक सीमित करने में भी इसका उपयोग हो सकता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि वर्गीकरण के मामलों में न्यायिक समीक्षा इस बात के निर्धारण तक सीमित है कि वर्गीकरण उचित है या नहीं और उससे संबंधित है या नहीं, जिसकी मांग की गई थी। अदालत वर्गीकरण के आधार के गणितीय मूल्यांकन में शामिल नहीं हो सकती।
जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है कि सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में विधायिका या प्रतिनिधि को विभिन्न पदों के मुकाबले व्यक्तियों की गुणवत्ता तय करने के लिए पर्याप्त जगह दी जानी चाहिए।
वर्गीकरण पर सिद्धांत-
जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम त्रिलोकीनाथ खोसा (1974) 1 SCC 19, मैसूर राज्य बनाम पी नरसिंह राव AIR 1968 SC 349, गंगा राम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1970) 1 SCC 377, यूनियन ऑफ इंडिया बनाम डॉ (श्रीमती) एसबी कोहली (1973) 3 SCC 592 और रोशन लाल टंडन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया AIR 1967 SC 1889; रूप चंद अदलखा बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य 1989 Supp (1) SCC 116; एम रथिनास्वामी बनाम तमिलनाडु राज्य (2009) 2 SCC (LS) 101; उत्तराखंड राज्य बनाम एसके सिंह (2019) 10 SCC 49 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने निम्न सिद्धांतों का उल्लेख किया-
(i) व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण से कृत्रिम असमानताएं उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। वर्गीकरण को उचित आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए और अनुच्छेद 14 और 16 के मस्टर को पास करने के लिए प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य और उद्देश्य में संबंध होना चाहिए;
(ii) वर्गीकरण के मामलों में न्यायिक समीक्षा यह निर्धारित करने तक सीमित है कि क्या वर्गीकरण उचित है और प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य से संबंधित है। न्यायालय वर्गीकरण के आधार के गणितीय मूल्यांकन में शामिल नहीं हो सकते हैं या विधायिका या उसके प्रतिनिधि के ज्ञान को अपने ज्ञान से प्रतिस्थापित नहीं कर सकते हैं;
(iii) सामान्यतया, शैक्षिक योग्यता पदोन्नति के मामलों में एक ही वर्ग के व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण के लिए एक वैध आधार है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं है;
(iv) विभिन्न स्रोतों से निकाले गए और एक सामान्य वर्ग में एकीकृत व्यक्तियों को पदोन्नति के उद्देश्य के लिए शैक्षिक योग्यता के आधार पर विभेदित किया जा सकता है, जहां यह उन्नति के पद में आवश्यक दक्षता के साथ संबंध रखता है;
(v) व्यक्तियों के एक निश्चित वर्ग की पदोन्नति के लिए कोटा शुरू करने के लिए शैक्षिक योग्यता का उपयोग किया जा सकता है; या यहां तक कि पदोन्नति को पूरी तरह से एक वर्ग तक सीमित रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है..;
(vi) उच्च पदों पर प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के लिए शैक्षिक योग्यता को पदोन्नति के लिए वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है;
(vii) हालांकि, शैक्षिक योग्यता के आधार पर किए गए वर्गीकरण को वर्गीकरण के उद्देश्य या योग्यता में अंतर की सीमा से संबंधित होना चाहिए;
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक निर्णय को बरकरार रखा-
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक निर्णय को बरकरार रखा है, जिसमें कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के 3 जुलाई, 2012 के एक सर्कुलर को वैध घोषित किया गया था। इस सर्कुलर में डिप्लोमा और डिग्रीधारक सब असिस्टेंट इंजीनियरों (एसएई) के लिए असिस्टेंट इंजीनियर (एई) पद पर प्रोन्नति की अलग-अलग शर्तें तय की गई थीं। शीर्ष अदालत ने कहा, यह मानते हुए कि केएमसी की अतिरिक्त पदों के लिए प्रोन्नति नीति तर्कहीन या मनमानी नहीं है और न ही इसकी मंशा डिप्लोमा धारक एसएई की हानि के लिए नहीं है।
कलकत्ता नगर निगम सेवा (सामान्य संवर्ग) विनियम (“विनियम”) 23 दिसंबर, 1994 को कोलकाता नगर निगम (“केएमसी”) द्वारा अधिसूचित किए गए थे, जिन्हें सभी विभागों और कार्यालयों के तहत सभी कर्मचारियों पर लागू किया गया था और सामान्य संवर्ग, वरिष्ठता और सेवा की अन्य शर्तों के साथ भर्ती प्रबंधन और नियंत्रण के प्रावधान किए गए थे।
संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं-
पीठ ने कहा, सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में, विधायिका या उसके प्रतिनिधि को अलग-अलग पदों पर नियुक्त करने वाले व्यक्तियों की गुणवत्ता तय करने के लिए पर्याप्त मौका देना चाहिए। न्यायालय को तब तक नीति के मामले में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, जब तक ये निर्णय मनमाने नहीं होते। पीठ ने शीर्ष अदालत के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए कहा, सामान्यतया, शैक्षिक योग्यता पदोन्नति के मामलों में एक ही वर्ग के व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण के लिए एक वैध आधार है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन नहीं है।
निर्णय-
यह देखते हुए कि जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम श्री त्रिलोकीनाथ खोसा (1974) 1 SCC 19 की डिप्लोमा धारी एसएई द्वारा की गई रीडिंग मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि त्रिलोकीनाथ खोसा (सुप्रा) में जिस वर्गीकरण का समर्थन किया गया था, वह शैक्षिक योग्यता पर आधारित था जो संगठन में प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से जुड़ा था। हम अपीलकर्ताओं की इस दलील से सहमत होने में असमर्थ हैं कि त्रिलोकीनाथ खोसा (सुप्रा) का निर्णय वर्तमान मामले में लागू नहीं होता है।”
पीठ ने उच्च न्यायालय के विचार को बरकरार रखते हुए आगे कहा कि, “आक्षेपित परिपत्र इंगित करता है कि ये अतिरिक्त पद एसएई के बीच ठहराव को दूर करने के लिए बनाए गए थे। हालांकि यह आक्षेपित परिपत्र का घोषित लक्ष्य हो सकता है, केएमसी ने इस न्यायालय के समक्ष आग्रह किया है कि पदोन्नति के लिए शिक्षा योग्यता में अंतर प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है। ..सुपरन्यूमेररी पदों पर पदोन्नति के लिए केएमसी की नीति तर्कहीन या मनमानी नहीं है। सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में, विधायिका या उसके प्रतिनिधि को उन व्यक्तियों की गुणवत्ता तय करने के लिए पर्याप्त जगह दी जानी चाहिए जिन्हें वह नियोजित करना चाहता है।”
Civil Appeal No 5582 of 2021 (Arising out of SLP (C) Nos. 11781 of 2019)
Chandan Banerjee & Ors Versus Krishna Prosad Ghosh & Ors.