सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वाहन का पंजीकरण वैध नहीं है तो बीमा दावे से किया जा सकता है इनकार –

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न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अगर पॉलिसी के नियमों और शर्तों का मौलिक उल्लंघन होता है तो बीमा राशि का दावा खारिज करने योग्य है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर किसी वाहन का रजिस्ट्रेशन वैध नहीं है उस वाहन के लिए इंश्योरेंस क्लेम को अस्वीकार भी किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने अस्थाई पंजीकरण (temporary registration) वाली कार की चोरी के दावे को खारिज करते हुए गुरुवार को कहा कि अगर वाहन का वैध पंजीकरण नहीं है तो बीमा दावे से इनकार किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अगर पॉलिसी के नियमों और शर्तों का मौलिक उल्लंघन होता है तो बीमा राशि का दावा खारिज करने योग्य है.

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, ‘‘कानून के बारे में इस अदालत का मानना है कि जब एक बीमा योग्य घटना जिसके परिणामस्वरूप देयता हो सकती है, उसमें बीमा अनुबंध में निहित शर्तों का कोई मौलिक उल्लंघन नहीं होना चाहिए.’’

यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस ने अपील दायर की थी

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission) के एक आदेश को चुनौती देने वाली यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की गईं, जिसने कंपनी की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था.

पुनर्विचार याचिका में कंपनी ने राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, सर्किट बेंच, बीकानेर के आदेश को चुनौती दी थी. मामले के अनुसार, राजस्थान निवासी सुशील कुमार गोदारा ने पंजाब में कहीं, अपनी बोलेरो कार के लिए बीमाकर्ता से एक बीमा पॉलिसी प्राप्त की, हालांकि, वह राजस्थान के श्रीगंगानगर का निवासी था. जिस वाहन की बीमा राशि 6.17 लाख थी, उसका अस्थाई पंजीकरण 19 जुलाई 2011 को समाप्त हो गया था. चूंकि शिकायतकर्ता एक निजी ठेकेदार था, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उसे शहर से बाहर रहना पड़ता था.

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मामला 2011 का है यह-

28 जुलाई 2011 को शिकायतकर्ता व्यवसाय के सिलसिले में जोधपुर गया और रात में एक गेस्ट हाउस में रुका, जहां उसका वाहन परिसर के बाहर खड़ा था. सुबह उसने देखा कि कार चोरी हो गई है. उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 379 (चोरी) के तहत आरोप लगाते हुए जोधपुर में एक प्राथमिकी दर्ज कराई. हालांकि, 30 नवंबर, 2011 को पुलिस ने एक अंतिम रिपोर्ट दर्ज की थी जिसमें कहा गया था कि वाहन का पता नहीं चल पाया.

मोटर वाहन अधिनियम,1988 के खिलाफ-

शीर्ष अदालत ने कहा कि चोरी के दिन वाहन को वैध पंजीकरण के बिना चलाया/उपयोग किया गया था, जो मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 39 और 192 का स्पष्ट उल्लंघन है. न्यायालय ने कहा, ‘‘इससे पॉलिसी के मौलिक नियमों और शर्तों का उल्लंघन होता है, जिससे बीमाकर्ता पॉलिसी को अस्वीकार करने का अधिकार देता है.’’

धारा 39 मोटर वाहन अधिनियम, 1988 क्या कहती है –

39. रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकता-किसी सार्वजनिक स्थान में अथवा किसी अन्य स्थान में किसी मोटर यान को कोई व्यक्ति तभी चलाएगा और कोई मोटर यान का स्वामी तभी चलवाएगा या चलाने की अनुज्ञा देगा जब वह यान इस अध्याय के अनुसार रजिस्ट्रीकृत हो तथा यान का रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र निलंबित या रद्द न किया गया हो और यान पर रजिस्ट्रीकरण चिह्न विहित रीति से प्रदर्शित हो :

परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए किसी व्यवहारी के कब्जे में के मोटर यान को लागू नहीं होगी ।

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धारा 192 मोटर वाहन अधिनियम, 1988 क्या कहती है –

192. रजिस्ट्रीकरण के बिना यान का उपयोग

(1) जो कोई धारा 39 के उपबंधों के उल्लंघन में, किसी मोटर यान को चलाएगा अथवा मोटर यान का उपयोग कराएगा या किए जाने देगा, वह प्रथम अपराध के लिए जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु दो हजार रुपए से कम का नहीं होगा, दंडनीय होगा तथा किसी द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, किन्तु पांच हजार रुपए से कम का   नहीं होगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा –

                परन्तु न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, कोई लघुतर दण्ड अधिरोपित कर सकेगा ।

(2) इस धारा की कोई बात आपात के दौरान ऐसे व्यक्तियों को ले जाने के लिए, जो रोग से या क्षति से ग्रस्त हैं या कष्ट निवारण के लिए खाद्य या सामग्रियों के या वैसे ही प्रयोजन के लिए चिकित्सीय प्रदायों के परिवहन के लिए मोटर यान के उपयोग के संबंध में लागू नहीं होगी –

परन्तु यह तब जबकि वह व्यक्ति, जो यान का उपयोग कर रहा है, उसके बारे में रिपोर्ट प्रादेशिक परिवहन प्राधिकरण को ऐसे उपयोग की तारीख से सात दिन के भीतर दे दे ।

(3) वह न्यायालय, जिसमें उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकृति के अपराध की बाबत किसी दोषसिद्धि की अपील होती है, निचले न्यायालय द्वारा किए गए किसी आदेश को, इस बात के होते हुए भी अपास्त कर सकेगा या परिवर्तित कर सकेगा कि उस दोषसिद्धि के विरुद्ध, जिसके संबंध में ऐसा आदेश किया गया था कोई अपील नहीं होती है ।

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