सुप्रीम कोर्ट : सजा की मात्रा तय करना अपीलीय अथॉरिटी के विवेकाधीन कार्य क्षेत्राधिकार के भीतर-

Estimated read time 1 min read

Supreme Court सर्वोच्च न्यायलय की पीठ ने कहा कि नियम-52 अपीलीय अथॉरिटी को यह जांचने का अधिकार देता है कि क्या लगाया गया जुर्माना अत्यधिक, पर्याप्त या अपर्याप्त है और उसके अनुरूप दंड की बढ़ाने, घटाने या खत्म करने का अधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। पीठ ने अपीलीय अथॉरिटी द्वारा दी गई बर्खास्तगी की सजा बरकरार रखी परंतु एक बेहद जरूरी बात भी कही।

शीर्ष कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि अदालतों को अनुशासनात्मक अथॉरिटी द्वारा लगाए गए दंड की मात्रा में तब तक दखल नहीं देना चाहिए जब तक वह पूरी तरह से गैरवाजिब न हो।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा, ‘‘‘ऐसी विवेकाधीन शक्तियों में तभी न्यायिक हस्तक्षेप किया जाता है जब उनका गलती के मुकाबले अत्याधिक इस्तेमाल किया गया हो , क्योंकि संवैधानिक अदालतें न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका नहीं अपना सकती हैं।’’

मामले के अनुसार, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में एक कांस्टेबल को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। यह पाया गया था कि उसने एक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की थी।

हालांकि अनुशासनात्मक अथॉरिटी ने केवल दो चरणों में वेतन में कटौती का दंड दिया लेकिन अपीलीय अथॉरिटी ने सीआईएसएफ द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए सेवा से बर्खास्तगी का दंड दिया।

इसके बाद कांस्टेबल द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपीलीय अथॉरिटी द्वारा दी गई बर्खास्तगी की सजा को दरकिनार करते हुए अनुशासनात्मक अथॉरिटी द्वारा दिए गए दंड को बहाल कर दिया।

ALSO READ -  SC के निर्णय के विरुद्ध बैंक ने कैसे लीं रिकवरी एजेंटों की सेवाएं? इलाहाबाद HC ने ICICI बैंक के चेयरमैन को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो माँगा स्पष्टीकरण

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने सीआईएसएफ नियम, 2001 के नियम-52 के तहत अपीलीय शक्ति की तुलना सांविधानिक अदालतों के पास मौजूद न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ की है।

कोर्ट ने कहा कि नियम-52 अपीलीय अथॉरिटी को यह जांचने का अधिकार देता है कि क्या लगाया गया जुर्माना अत्यधिक, पर्याप्त या अपर्याप्त है और उसके अनुरूप दंड की बढ़ाने, घटाने या खत्म करने का अधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलीय अथॉरिटी द्वारा दी गई बर्खास्तगी की सजा को बरकरार रखा है और कहा कि कांस्टेबल निलंबन अवधि के लिए भत्ते का भी हकदार है।

You May Also Like