आर्य समाज का काम विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं

सुप्रीम कोर्ट: आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं, इसका प्रमाणपत्र स्वीकारणीय नहीं-

सुप्रीम कोर्ट पीठ Supreme Court Bench ने कहा कि आर्य समाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाण पत्र जारी करना नहीं है और इसका प्रमाणपत्र स्वीकारणीय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने शुक्रवार को एक नाबालिग के अपहरण और बलात्कार से संबंधित अपराधों के लिए आरोपी की जमानत अर्जी पर विचार करते हुए आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्य समाज Arya Samaj को विवाह प्रमाणपत्र Marriage Certificate जारी करने का कोई हक नहीं है। लड़की के परिवार ने युवक के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366, 384, 376(2)(एन) के अलावा 384 के तहत पोक्सो एक्ट की धारा 5(एल)/6 के तहत मामला दर्ज कराया है। देश की शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी मध्य प्रदेश में प्रेम विवाह से जुड़े एक मामले में आई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शादी का प्रमाणपत्र जारी करना आर्य समाज का काम नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने नाबालिग के अपहरण व दुष्कर्म के आरोपी की जमानत खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की हॉलीडे बेंच ने आरोपी के वकील की उस दलील को भी सिरे से खारिज कर दिया कि लड़की बालिग थी।

दोनों ने आर्य समाज मंदिर में शादी की थी और उनका शादी का प्रमाणपत्र कोर्ट के समक्ष मौजूद है। पीठ ने कहा, प्रमाणपत्र देना अधिकारियों का काम है, आर्य समाज का नहीं। कैविएट पर पेश शिकायतकर्ता के अधिवक्ता ऋषि मतोलिया ने कहा, अभियोजन पक्ष ने अपने बयान में धारा 164 के तहत दुष्कर्म के विशिष्ट आरोप लगाए हैं।

ALSO READ -  फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर प्राप्त नौकरी 'शुरू से ही शून्य' माना जाएगा, हाईकोर्ट ने दिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश-

सुनवाई के बाद पीठ ने आरोपी की राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने 5 मई को उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। आरोपी के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि उक्त मामले में एफआईआर डेढ़ साल बाद दर्ज कराई गई है और शिकायतकर्ता ने इस देरी के लिए कोई तर्क भी नहीं दिया।

सादे कागज पर धोखे से दस्तखत लिए और दुष्कर्म का वीडियो बनाया-

पीड़िता ने अपने बयान में कहा, आरोपी ने धोखे से उससे सादे कागज पर दस्तखत कराए थे और दुष्कर्म का वीडियो भी बनाया।

हाईकोर्ट के 4 अप्रैल के आदेश पर लगाई रोक-

सुप्रीम कोर्ट ने 4 अप्रैल को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई थी जिसमें अदालत ने आर्य समाज को विशेष विवाह अधिनियम 1954 के प्रावधानों के तहत शादी को मान्यता देने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने तब मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था। आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366ए, 384, 376(2)(एन), 384 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(एल)/6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी आर्य समाज की स्थापना-

मामले में अदालत का कहना है कि विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं। इसलिए, अदालत के सामने असली प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए जाने चाहिए। बता दें कि आर्य समाज एक हिंदू सुधारवादी संगठन है और इसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में की थी। इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट अप्रैल में सुनवाई के लिए तैयार हो गया था।

ALSO READ -  Masked Aadhaar Card: फ्रॉड से बचने के लिए करें मास्क्ड आधार कार्ड को डाउनलोड और प्रयोग, जानें-

ज्ञात हो की इसके पूर्व एक मामले में न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने दलीलें सुनने के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, पीठ ने आर्य प्रतिनिधि सभा को विशेष विवाह अधिनियम 1954 की धारा 5, 6, 7 और 8 के प्रावधानों को एक महीने के भीतर अपनी गाइडलाइंस में संशोधन करने का निर्देश दिया और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया।

Translate »
Scroll to Top