सेंट्रल गवर्नमेंट की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में किए जाने के वादों के खिलाफ याचिका का समर्थन किया और कहा कि इस तरह हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं।
शीर्ष अदालत Supreme Court ने कहा कि चुनाव प्रचार के राजनीतिक दलों द्वारा दौरान मुफ्त उपहार बांटने का वादा एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस मुद्दे की जांच के लिए एक निकाय की आवश्यकता है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रम्मना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों, भारतीय रिजर्व बैंक Reserve Bank of India और अन्य हितधारकों की भागीदारी वाले एक शीर्ष निकाय की आवश्यकता है। ये निकाय राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों Freebies को नियंत्रित करने के बारे में सुझाव दे सकेगी।
कोर्ट ने विशेषज्ञ निकाय के गठन पर सुझाव मांगे-
न्यायायिक पीठ ने कहा, सभी हितधारक जो मुफ्त में चीजें देना चाहते हैं और जो इसका विरोध कर रहे हैं, जिनमें आरबीआई, नीति आयोग, विपक्षी दल शामिल हैं, उन्हें कुछ रचनात्मक सुझाव देने की इस प्रक्रिया में शामिल होना होगा। अदालत ने केंद्र, चुनाव आयोग, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ताओं से सात दिनों के भीतर एक विशेषज्ञ निकाय के गठन पर अपने सुझाव देने को कहा, जो इस बात की जांच करेगा कि कैसे मुफ्त दी जाने वाली चीजों को नियंत्रित किया जाए और इस पर एक रिपोर्ट दी जाए। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल Solicitor General तुषार मेहता ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में किए जाने के वादों के खिलाफ याचिका का समर्थन किया और कहा कि इस तरह हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल बोले, हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं-
तुषार मेहता ने कहा, इन लुभावने वादों का वोटरों पर उल्टा प्रभाव पड़ता है। इस तरह से हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रम्मना ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को मुफ्त उपहार देने से फायदा मिलता है। हर कोई महसूस करता है कि करों के रूप में भुगतान किया गया पैसा विकास आदि के काम में नहीं लगाया जाता। इस तरह सभी को एक स्वतंत्र मंच का उपयोग करना चाहिए और अदालत को वह मंच नहीं होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रम्मना ने कहा कि मैं किसी एक का नाम नहीं लेना चाहता, हर राजनीतिक दल को मुफ्त चीजें देने में फायदा होता है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें चुनाव चिन्हों को जब्त करने और सार्वजनिक धन से मुफ्त उपहार बांटने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया था स्टैंड लेने का निर्देश –
पिछले हफ्ते अदालत ने केंद्र सरकार से चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त देने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों के मुद्दे को हल करने की दिशा में स्टैंड लेने के लिए कहा था। इसने केंद्र से इस पर विचार करने को कहा था कि क्या समाधान के लिए वित्त आयोग के सुझाव मांगे जा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रम्मना ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में उपहार दिए जाने के मुद्दे पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से भी राय मांगी थी, जो किसी अन्य मामले के लिए अदालत में मौजूद थे। सिब्बल ने कहा था कि यह एक गंभीर मुद्दा है लेकिन इसे राजनीतिक रूप से नियंत्रित करना मुश्किल है। वित्त आयोग जब विभिन्न राज्यों को आवंटन करता है, तो वे राज्य के कर्ज और मुफ्त की चीजों की मात्रा को ध्यान में रख सकते हैं। इससे निपटने के लिए वित्त आयोग सबसे उपयुक्त निकाय है। हम आयोग को इस पहलू पर गौर करने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। केंद्र से निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।