सिविल कोर्ट के एक न्यायाधीश को जिलाधिकारी की तरफ से अपमानजनक टिप्पणी वाला पत्र भेज देने पर भूचाल आ गया है। Arms Act से जुड़े कोतवाली थाने में दस दिसंबर 2011 को दर्ज केस में DM का सेक्शन आदेश नहीं उपलब्ध होने पर अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विश्व विभूति गुप्ता ने पहले अपर लोक अभियोजक को DM का सेंक्शन आदेश उपलब्ध कराने को कहा था।
थानाध्यक्ष व एसएसपी को भेजा पत्र-
उसके बाद मामले में थानाध्यक्ष कोतवाली से लेकर एसएसपी तक को सेंक्शन आदेश उपलब्ध कराने को पत्र भेजा। तमाम पत्राचार बाद भी केस रिकॉर्ड में DM के सेंक्शन आदेश उपलब्ध नहीं होने पर जिले में अभियोजन पक्ष के सक्षम प्राधिकार जिलाधिकारी को पत्र भेज Arms Act के 14 साल पुराने उक्त केस में सेंक्शन आदेश उपलब्ध कराने का अनुरोध किया ताकि केस का निष्पादन किया जा सके।
लेकिन मामले में कोई जवाब नहीं आने पर न्यायाधीश ने DM को चार मार्च 2024 को पत्र भेज अभियोजन की लापरवाही की जानकारी दे याद दिलाया कि 14 फरवरी 2023 को जारी पत्र का अवलोकन करें।
न्यायाधीश ने ये कहा-
यह भी जानकारी दी थी कि अभियोजन स्वीकृति आदेश प्रस्तुत करने के संबंध में उनकी तरफ से किये गये अनुरोध के बावजूद न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया। पत्र में न्यायाधीश ने कहा था कि आपको निर्देशित किया जाता है कि इस संबंध में जांच कर इस न्यायालय में अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें ताकि उच्च न्यायालय पटना की तरफ से मांगे गए स्पष्टीकरण में प्रतिवेदन भेजा जा सके।
न्यायाधीश ने उसे अति आवश्यक बताते हुए सात दिनों के अंदर अपना स्पष्टीकरण सौंपने की बात पत्र में कही थी। उक्त पत्र के जवाब में DM डॉ. नवल किशोर चौधरी ने अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विश्व विभूति गुप्ता को जो जवाब दिया वह हैरान करने वाला है।
डीएम ने ये लिखा-
DM ने अपने पत्र में न्यायाधीश की तरफ से चार मार्च 2024 को भेजे पत्र का हवाला देते हुए लिखा कि मामले में 19 अप्रैल 2012 को तत्कालीन DM ने स्वीकृति आदेश जारी कर दिया था और इसे SSP को भेजा गया था। उक्त स्वीकृति आदेश न्यायालय में प्रस्तुत नहीं करने में जिस पुलिस पदाधिकारी की लापरवाही हो उसे चिन्हित कर उनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई का प्रस्ताव आप हमें एवं SSP को भेजें। DM ने यह भी लिखा कि आप अवगत हैं कि अभियोजन स्वीकृति का आदेश अनुसंधानकर्ता की तरफ से भेजे गए प्रस्ताव पर SSP से प्राप्त अनुशंसा के आलोक में दिया जाता है।
जिलाधिकारी से मांगा गया स्पष्टीकरण-
उक्त जानकारी के बाद आपकी तरफ से जारी उक्त पत्र में जिलाधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है जो अशोभनीय है। इस तरह का पत्र भविष्य में उन्हें नहीं भेजा जाए जो न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच आपसी संबंध को ठेस पहुंचाता हो।
यदि इस संबंध में कोई पत्राचार करना हो तो उच्च न्यायालय के आदेशानुसार जिला अभियोजन पदाधिकारी, भागलपुर से किया जाय। DM ने अपने पत्र के साथ वर्ष 2012 में तत्कालीन DM की तरफ से उक्त Arms Act के केस में जारी स्वीकृति आदेश की कॉपी भी न्यायालय में भेजी है।
जज ने डीएम का पत्र संलग्न किया-
इससे पहले, न्यायाधीश ने अभियोजन पक्ष से जुड़े डीएम और एसएसपी समेत सभी अधिकृत सदस्यों से बार-बार मंजूरी आदेश की प्रतियां जमा करने को कहा था। हालाँकि, चूँकि उन्होंने उक्त दंडात्मक आदेश की प्रति प्रस्तुत नहीं की और अदालत में कोई ठोस जवाब नहीं पा सके, इसलिए उन्हें जिला अटॉर्नी कार्यालय के सबसे शक्तिशाली प्राधिकारी डीएम को शोकाज जारी करने के लिए कहा गया।
क्योंकि इस मामले में जज को भी पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए बयान पर रिपोर्ट देनी थी, लेकिन जज ने डीएम के माध्यम से भेजे गए पत्र को केस में संलग्न कर दिया। डीएम के उक्त पत्र में वर्णित अशोभनीय भाषा आपत्तिजनक है और और भविष्य में इस तरह का पत्र उन्हें नहीं भेजा जाय जैसे शब्दों को लेकर न्यायालय के अवमानना के दायरे में आने की बात कही जा रही है।