पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक न्यायिक पदाधिकारी को अफेयर होने के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और न्यायिक अधिकारी को पद पर दोबारा बहाल करने का निर्देश दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद उसकी सेवाओं को बहाल नहीं किया गया। अदालत ने हाईकोर्ट के ऐसे रवैये को निराशाजनक करार दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत 20 अप्रैल, 2022 को हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर चुकी है। 25 अक्टूबर, 2018 को आदेश पारित हाईकोर्ट ने पुरुष न्यायिक अधिकारी को राहत देने से इन्कार कर दिया था। पदाधिकारी को न्यायिक सेवा में ही कार्यरत किसी महिला से अफेयर रखने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
15 साल से जारी है कानूनी लड़ाई, निराश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था यह निर्देश–
फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने वाले पदाधिकारी की याचिका खारिज कर दी गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 29 महीने पहले हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए पुरुष न्यायिक अधिकारी की सेवाओं को दोबारा बहाल करने का निर्देश दिया था। हैरान करने वाली बात यह भी है कि यह मुद्दा 2009 से ही हाईकोर्ट और शीर्ष अदालत के बीच घूम रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की पूर्ण अदालत को न्यायिक अधिकारी को बर्खास्त करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।
2018 में आया हाईकोर्ट का फैसला, इसके बावजूद कर्मचारी बहाल नहीं किया गया-
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में इस बात को भी रेखांकित किया था कि 26 अक्तूबर, 2018 को हाई कोर्ट की उसी खंडपीठ ने अवैध संबंध के आरोपों को बेबुनियाद माना था। हाईकोर्ट की बेंच में महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका स्वीकार कर ली गई थी। साथ ही बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया गया था। इसके बावजूद कर्मचारी को सेवा में वापस नहीं लिया जाना निराशाजनक है। गौरतलब है कि अगर अदालत एक बार बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर देती है तो कर्मचारी को सेवा में बहाल माना जाता है।
कोर्ट ने कहा-
“जब सेवा समाप्ति आदेश को रद्द कर दिया जाता है और उक्त सेवा समाप्ति आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज करने वाला हाईकोर्ट का फैसला भी रद्द कर दिया जाता है, तो स्वाभाविक परिणाम यह है कि कर्मचारी को सेवा में वापस ले लिया जाना चाहिए। उसके बाद निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। जब सेवा समाप्ति आदेश रद्द कर दिया जाता है तो कर्मचारी को सेवा में माना जाता है। हमें 20.04.2022 के आदेश के बाद अपीलकर्ता को सेवा में वापस न लेने में हाईकोर्ट और राज्य की निष्क्रियता में कोई औचित्य नहीं दिखता। अपीलकर्ता को सेवा में वापस लेने के बारे में हाईकोर्ट या राज्य द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया और सेवा समाप्ति आदेश पारित होने की तारीख से लेकर बहाली की तारीख तक पिछले वेतन के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया, जो इस न्यायालय के निर्णय की तारीख होनी चाहिए।”
इस पूरे घटनाक्रम पर शीर्ष अदालत ने कहा, ‘जब बर्खास्तगी आदेश को साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुकी है और उक्त बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज करने वाले हाई कोर्ट का फैसले भी निरस्त कर दिया गया है, तो स्वाभाविक है कि कर्मचारी को सेवा में वापस ले लिया जाना चाहिए। बहाली के बाद ही अदालत के निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, 20 अप्रैल, 2022 के आदेश के बाद अपीलकर्ता (न्यायिक अधिकारी) को सेवा में वापस नहीं लिया गया। अदालत को हाई कोर्ट और राज्य सरकार की निष्क्रियता के पीछे कोई उचित कारण नहीं दिखता है।
जहां तक 18.12.2009 यानी 17.12.2009 के समाप्ति आदेश के बाद से लेकर इस न्यायालय के निर्णय और आदेश से पहले की तारीख 19.04.2022 तक की अवधि का सवाल है, न्यायालय का मानना है कि यह निर्देश देकर न्याय की पूर्ति होगी कि अपीलकर्ता को निरंतर सेवा में मानते हुए पिछले वेतन का 50 प्रतिशत पाने का हकदार होगा। ऐसे पिछले वेतन की गणना अपीलकर्ता को कानून के तहत स्वीकार्य सभी लाभों के साथ की जाएगी जैसे कि वह सेवा में था।
हाईकोर्ट के दिनांक 03.08.2023 के प्रस्ताव के आधार पर दिनांक 02.04.2024 के नए समाप्ति आदेश के संबंध में न्यायालय ने कहा कि अधिकारी को नई रिट याचिका के माध्यम से इसे चुनौती देने की स्वतंत्रता होगी।
वाद शीर्षक – अनंतदीप सिंह बनाम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ तथा अन्य।