“लास्ट सीं” थ्योरी एवं एक्स्ट्रा-जुडिशियल कबूलियों पर कड़ा प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह निर्णय सुनाया कि आपराधिक मुकदमों में परिस्तिथि-साक्ष्य (circumstantial evidence) का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, विशेषकर जब कथित तौर पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 और “लास्ट सीं” थ्योरी पर निर्भर किया जाता है। यह फैसला मौलिक सिद्धांतों को पुनः स्थापित करता है कि गिरफ्तारी या अपराध सिद्धि में संदेह की स्थिति में आरोपी को बरी करना आवश्यक है, चाहे अन्य न्यायिक आदेश, जैसे कि रिमांड या चार्जशीट दाखिल किए जाने, उस मौलिक संवैधानिक त्रुटि को सुधार न सकें।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में, आरोपी को सत्र न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (सबूत गायब कराने) के तहत दोषी ठहराया गया था। आरोपी पर लगाई गई सजा का आधार मुख्य रूप से उन अतिरिक्त न्यायिक कबूलियों पर था, जो गवाहों के समक्ष दी गई थीं, साथ ही परिस्तिथि-साक्ष्य से यह भी सिद्ध किया गया कि आरोपी को मृतक के साथ आखिरी बार देखा गया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन कबूलियों की विश्वसनीयता और परिस्तिथि-साक्ष्य की शृंखला का गहन अध्ययन किया। अदालत ने पाया कि:
- आरोपी द्वारा गवाहों के समक्ष दी गई कबूलियाँ विश्वसनीय प्रमाण के रूप में पर्याप्त नहीं थीं।
- “लास्ट सीं” थ्योरी पर आधारित साक्ष्य में भी कई विरोधाभास और पुष्टि की कमी पाई गई।
- अभियोजन पक्ष ने दोष सिद्ध करने के लिए आवश्यक साक्ष्यों का वह मजबूत आधार प्रस्तुत नहीं किया, जिसके कारण आरोपी के खिलाफ “बिल्कुल निश्चित संदेह से ऊपर” के मानक को पूरा नहीं किया जा सका।
निर्णय सारांश
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन के पीठ ने सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में:
- आरोपी पर दिए गए दोषसिद्धि के फैसले को रद्द कर दिया।
- यह ठहराया कि अभियोजन पक्ष का साक्ष्य, विशेषकर एक्स्ट्रा-जुडिशियल कबूलियाँ और “लास्ट सीं” साक्ष्य, अपर्याप्त और विरोधाभासी है।
- आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, यदि उसे किसी अन्य मामले में शामिल न किया गया हो।
विधिक विश्लेषण और तर्क
- धारा 27 का सीमित दायरा:
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 केवल उन कबूलियों को स्वीकार करती है जो सीधे नए तथ्यों या वस्तुओं की खोज का कारण बनें। इस मामले में, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत कबूलियाँ और संबंधित साक्ष्य में आवश्यक प्रक्रियात्मक मानदंडों का पालन नहीं हुआ। - “लास्ट सीं” थ्योरी की विश्वसनीयता पर प्रश्न:
- अदालत ने पाया कि आरोपी के आखिरी बार मृतक के साथ देखा जाने का प्रमाण स्पष्ट नहीं है।
- गवाहों के बयान में समय, स्थान एवं अन्य विवरणों में विरोधाभास मौजूद थे, जिससे इस साक्ष्य की विश्वसनीयता पर गहरा संदेह उठता है।
- साक्ष्य की शृंखला में विफलता:
- अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिस्तिथि-साक्ष्य की शृंखला में कमजोरियाँ और विरोधाभास थे, जिसके कारण आरोपी के खिलाफ “बिल्कुल निश्चित संदेह से ऊपर” के मानक को पूरा नहीं किया जा सका।
- अदालत ने इस बात पर बल दिया कि यदि कोई साक्ष्य पूरी तरह से विफल रहता है, तो उसके आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।
- उद्धृत नजीरें:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में पूर्व के कई महत्वपूर्ण नजीरों का हवाला दिया, जिनमें यह सिद्ध किया गया कि एक्स्ट्रा-जुडिशियल कबूलियाँ स्वाभाविक रूप से कमजोर होती हैं और उन्हें मजबूत, स्वतंत्र साक्ष्यों द्वारा पुष्ट किया जाना चाहिए।
प्रभाव और महत्व
इस landmark निर्णय का प्रभाव भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में निम्नलिखित है:
- साक्ष्य का कठोर मानक: अभियोजन पक्ष अब यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होंगे कि परिस्तिथि-साक्ष्य की शृंखला में कोई भी कमी न हो और सभी साक्ष्य विश्वसनीयता से परिपूर्ण हों।
- गिरफ्तारी के बाद की सुनवाई: “लास्ट सीं” थ्योरी पर आधारित साक्ष्यों के लिए अदालतों द्वारा उच्च मानदंड अपनाया जाएगा।
- अभियुक्त के मौलिक अधिकार: इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि संदेह की स्थिति में आरोपी के अधिकारों को सर्वोपरि माना जाएगा और कमजोर साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जाएगा।
निष्कर्ष
Raja Khan बनाम State of Chhattisgarh मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्थापित किया कि एक्स्ट्रा-जुडिशियल कबूलियाँ और “लास्ट सीं” साक्ष्य पर पूर्ण भरोसा नहीं किया जा सकता, जब तक कि उन्हें अन्य विश्वसनीय साक्ष्यों द्वारा पुष्ट न किया जाए। यह निर्णय न केवल अभियोजन पक्ष के लिए साक्ष्य की कटु आवश्यकताओं को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया कि संदेह, चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य के विकल्प के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
यह landmark निर्णय भविष्य में इसी प्रकार के मामलों में नियोक्ताओं, न्यायालयों और कानूनी विशेषज्ञों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बनेगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि आपराधिक न्याय प्रक्रिया में साक्ष्यों की पूर्ण और निर्बाध शृंखला को ही दोष सिद्ध करने के लिए मान्यता दी जाए।
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