सुप्रीम कोर्ट का हाई कोर्ट को सलाह: न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई अति उत्साह में नहीं होनी चाहिए, ये न्यायपालिका के लिए हितकारी नहीं-

पीठ ने कहा, “यदि आप ड्रॉप नहीं करना चाहते हैं, तो हम इसकी गहराई से जांच करेंगे-

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की बेंच ने पटना उच्च न्यायलय को सलाह देते हुए कहा कि जब तक भ्रष्टाचार का आरोप नहीं हो, किसी भी न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ अति उत्त्साह में कार्रवाई करने से बचना चाहिए।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की बेंच ने कहा की इससे अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन करने वाले न्यायाधीशों में बुरा संदेश जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पटना हाई कोर्ट से कहा कि वह बिहार के एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही को खत्म कर दें। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की बेंच ने सलाह देते हुए कहा कि जब तक भ्रष्टाचार का आरोप नहीं हो, न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में अति उत्साह नहीं दिखाना चाहिए। इससे अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन करने वाले न्यायाधीशों में बुरा संदेश जाएगा।

इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की बेंच ने पटना हाईकोर्ट से बिहार के निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को खत्म करने के लिए कहा। न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट की पीठ अररिया में एक अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (एडीजे) शशि कांत राय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

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जज ने सुप्रीम कोर्ट का किया रुख, दावा किया कि पटना HC ने उन्हें एक दिन में POCSO केस की सुनवाई पूरी करने के लिए निलंबित कर दिया-

पीठ ने उच्च न्यायालय की ओर से पेश वकील गौरव अग्रवाल से कहा, “हमारी ईमानदारी से सलाह है कि सब कुछ खत्म कर दें।” पीठ ने कहा, “यदि आप ड्रॉप नहीं करना चाहते हैं, तो हम इसकी गहराई से जांच करेंगे।’ राय ने अपनी याचिका में कहा है कि वह मानते हैं कि उनके खिलाफ “संस्थागत पूर्वाग्रह” है क्योंकि उन्होंने एक ही दिन में छह साल की बच्ची के बलात्कार से जुड़े पॉक्सो मामले में मुकदमे का समापन किया था और दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जब भ्रष्टाचार और दुर्भावना के आरोप हैं, तब ही अनुशासनात्मक कार्रवाई उचित है। पीठ ने यह भी कहा कि न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अति उत्साह नहीं दिखाना चाहिए क्योंकि इससे अन्य न्यायिक अधिकारियों में बुरा संदेश जाएगा जो अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन कर रहे हैं।

पीठ ने न्यायाधीश को 10 दिनों के भीतर बचाव में अपना लिखित बयान देने की अनुमति दी क्योंकि उन्हें 5 अगस्त, 2022 का ज्ञापन मिला था जिसमें आरोप के आलेख थे। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को तय की है। हाईकोर्ट के वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता की लिखित प्रकिक्रिया सहित पूरे मामले पर विचार करने के बाद उचित निर्णय दो दिनों के भीतर लिया जाएगा।

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