शीर्ष अदालत: हवाई अड्डों पर दिव्यांगों के नकली अंग खुलवा कर नहीं करनी चाहिए जांच, ये मानवीय गरिमा के खिलाफ-

Estimated read time 1 min read

शीर्ष अदालत ने नागरिक उड्डयन महानिदेशक को निर्देश दिया है कि हवाई अड्डों पर दिव्यांग लोगों के नकली अंग खुलवाकर जांच नहीं की जानी चाहिए क्योंकि ये मानवीय गरिमा के खिलाफ है। हालांकि इस दौरान सुरक्षा जरूरतों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यम ने ये भी कहा कि हवाई यात्रा कर रहे दिव्यांग व्यक्ति को जांच के दौरान उठाया जाना अमानवीय है और संबंधित व्यक्ति की मंजूरी के बिना ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, मसौदा गाइडलाइंस में कहा गया है कि नकली अंग लगे दिव्यांग व्यक्ति की फुल बॉडी स्कैनर से जांच होगी लेकिन सुरक्षा के उद्देश्य से किस स्तर तक ऐसे व्यक्ति की जांच होनी चाहिए और वो भी इस तरह कि उसे अपने नकली अंग उतारने के लिए न कहा जाए ताकि मानवीय गरिमा बनी रहे।

पीठ सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित जीजा घोष की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें कोलकाता से गोवा की यात्रा के दौरान स्पाइस जेट से उतार दिया गया था। याची की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विज ने मसौदा गाइडलाइंस पर कई आपत्तियां दर्ज कराई जिसपर कोर्ट ने उन्हें डीजीसीए के सामने अपनी बात रखने के लिए कहा। 

यदि आप न्यायिक अधिकारियों से बदसुलूकी करें तो माफी का सवाल कहां है – सर्वोच्च नय्यालय

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आप किसी न्यायिक अधिकारी से बदसुलूकी करते हैं तो माफी मंजूर करने का सवाल कहां उठता है। दो पुलिसकर्मियों द्वारा अदालत की अवमानना मामले में दायर याचिकाकों पर कोर्ट ने ये बात कही। इन पुलिसकर्मियों पर न्यायिक कार्य में दखलंदाजी करने का आरोप है। 2017 में एक न्यायिक अधिकारी का अपमान करने और बदसुलूकी करने के आरोप में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2018 में इनके खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप तय किए थे। हाईकोर्ट के आदेश को दोनों ने अलग-अलग याचिका दायर कर चुनौती दी थी। जस्टिस एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार ने हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्होंने हाईकोर्ट के सामने बिना शर्त माफी मांगी लेकिन हाईकोर्ट ने इस माफी को मंजूर नहीं किया।

ALSO READ -  सुप्रीम कोर्ट का इलाहाबाद हाईकोर्ट से सवाल, अपराधिक अपीलों को सूचीबद्ध करने का बताये तरीका -

2011 जनगणना डाटा: महाराष्ट्र की अर्जी पर 13 को सुनवाई

सर्वोच्च नय्यालय ने बताया कि वह 2011 की सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना (एसईसीसी 2011) के अन्य पिछड़ा वर्ग के कच्चे डाटा की मांग वाली महाराष्ट्र सरकार की अर्जी पर 13 दिसंबर को सुनवाई करेगा। महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष अदालत से केंद्र सरकार को ओबीसी जाति का यह डाटा उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की है। राज्य सरकार ने अर्जी में कहा कि बार बार मांगने के बाद भी उसे यह डाटा नहीं दिया जा रहा। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष महाराष्ट्र के वकील ने बताया कि उन्होंने मामले में प्रत्युत्तर दाखिल किया है। इसके बाद पीठ ने सुनवाई की अगली तारीख 13 दिसंबर तय कर दी। केंद्र सरकार इससे पहले सितंबर में हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को बता चुकी है कि पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन व बोझिल काम है। इसलिए नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर रखा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

इस बीच सर्वोच्च नय्यालय ने बिहार सरकार से पूछा कि कैसे एक हिस्ट्रीशीटर जिसके खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मामले हैं वह प्रदेश की ही जेल में बंद है। उसे दिल्ली की जेल में क्यों नहीं भेजा जा सकता और उसके खिलाफ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई क्यों नहीं की जा सकती। शीर्ष अदालत ने कहा, अगर वह वहां रहता है तो उसके खिलाफ लंबित मुकदमों में गवाहों के प्रभावित होने की आशंका है।

ALSO READ -  सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला: चार्जशीट दायर करने के बाद भी रद्द हो सकती है FIR-

जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने बिहार के गृह विभाग के सचिव को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बक्सर जेल में बंद सतीश पांडेय से किसी को भी नहीं मिलने दिया जाए। साथ ही यह भी देखा जाए कि उसके पास किसी तरह से मोबाइल फोन न पहुंचे। इसके अलावा पांडेय के खिलाफ लंबित सभी मुकदमों उसे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये ही सुनवाई में पेश किया जाए। बिहार सरकार को 4 जनवरी को अगली सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट को बताना होगा कि हिस्ट्रीशीटर को बक्सर जेल में आगे क्यों रखा जाना चाहिए।

You May Also Like