सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई कठोर नियम नहीं हो सकता कि दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान किसी आरोपी को तभी जमानत दी जाएगी जब उसने अपनी निर्धारित सजा का आधा हिस्सा पूरा कर लिया हो।
मामले की पृष्ठभूमि
शीर्ष अदालत एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें उत्तरदाता/अभियुक्त को दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबन और जमानत का लाभ दिया गया था।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा-
“यदि निश्चित अवधि की सजा के मामलों में न्यायालय कठोर दृष्टिकोण अपनाने लगें, तो कई मामलों में अपील की अंतिम सुनवाई होने तक अभियुक्त पूरी सजा काट चुका होगा। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन होगा। साथ ही, यह अपील के अधिकार को भी निष्प्रभावी कर देगा।”
इस मामले में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) सूर्यप्रकाश वी. राजू ने अपीलकर्ता की ओर से और अधिवक्ता अक्षय वर्मा ने उत्तरदाता की ओर से प्रस्तुतियाँ दीं।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
उत्तरदाता को 1985 के मादक द्रव्य और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे 10 वर्षों के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
अपील में, उच्च न्यायालय ने नोट किया कि उत्तरदाता ने 10 वर्षों की सजा में से 4 ½ वर्ष पहले ही कारावास में बिता दिए थे।
चूंकि अपील पर सुनवाई सजा पूरी होने से पहले संभव नहीं थी, इसलिए उच्च न्यायालय ने सजा निलंबन और जमानत का लाभ प्रदान कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एवं तर्क
शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट लीगल एड कमेटी बनाम भारत संघ (1994) के अपने पूर्व निर्णय का हवाला दिया, जिसमें लंबे समय तक विचाराधीन कैदियों की हिरासत की असाधारण स्थिति से निपटने के लिए विशेष निर्देश दिए गए थे।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया-
“उस निर्णय में जारी निर्देश एक बार की गई व्यवस्था थी। इसे इस रूप में नहीं पढ़ा जा सकता कि इससे न्यायालय के जमानत देने के अधिकार सीमित हो गए हैं।”
इसके साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी मामले में सजा निलंबन और जमानत दिए जाने के लिए उपयुक्त आधार मौजूद हैं, तो न्यायालय दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील लंबित रहने के दौरान जमानत देने के लिए स्वतंत्र है, भले ही आरोपी ने आधी सजा पूरी न की हो।
NDPS अधिनियम के तहत अपील मामलों में जमानत का अधिकार
अदालत ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत अपीलीय न्यायालय के अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध हैं, लेकिन यदि अभियुक्त ने सजा का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया हो और अपील के लंबित रहने के कारण पूरी सजा काटने की स्थिति में आ जाए, तो न्यायालय जमानत देने का अधिकार रखता है।
खंडपीठ ने कहा:
“यदि केवल धारा 37 के आधार पर जमानत से इनकार किया जाता है, तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन होगा।”
अंतिम आदेश
खंडपीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उत्तरदाता की अपील की सुनवाई उसकी पूरी सजा काटने से पहले संभव नहीं होगी और उसने पहले ही अपनी 10 साल की सजा का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया है, अपील को खारिज कर दिया।
अदालत ने आदेश दिया-
“यदि उत्तरदाता दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, तो अपीलकर्ता (सरकार) जमानत रद्द करने के लिए आवेदन कर सकता है।”
वाद शीर्षक – नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो बनाम लखविंदर सिंह
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