सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा की दो बहुत अच्छे लोग अच्छे साथी नहीं हो सकते हैं। कई बार हमारे सामने ऐसे मामले आते हैं जहां लोग काफी समय तक साथ रहते हैं और फिर शादी टूट जाती है।
संविधान के अनुच्छेद 142 Article 142 of Indian Constitution के तहत शक्ति के प्रयोग के लिए व्यापक मानदंड क्या हो सकते हैं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बहस शुरू की ताकि सहमति देने वाले पक्षों के बीच विवाह को पारिवारिक अदालत में भेजे बिना उन्हें भंग किया जा सके।
संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के आदेशों और उसके समक्ष किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के आदेशों को लागू करने से संबंधित है।
न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक दोष सिद्धांत पर आधारित है, लेकिन विवाह का टूटना दोषारोपण के खेल के बिना स्थिति की जमीनी सच्चाई हो सकती है।
अदालत ने कहा, दो बहुत अच्छे लोग अच्छे साथी नहीं हो सकते हैं। कई बार हमारे सामने ऐसे मामले आते हैं जहां लोग काफी समय तक साथ रहते हैं और फिर शादी टूट जाती है।
मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि तलाक की याचिका दायर होने पर आमतौर पर आरोप और प्रतिवाद होते हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक दोष सिद्धांत के मुद्दे पर न्यायमूर्ति एस के कौल ने कहा, यह भी मेरे विचार से बहुत व्यक्तिपरक है। एक दोष सिद्धांत क्या है? देखिए, कोई कह सकता है कि आरोप लगाए गए हैं, वह सुबह उठकर मेरे माता-पिता को चाय नहीं देती है। क्या यह एक दोष सिद्धांत है? आप चाय को बेहतर तरीके से बना सकते थे।
सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि उनमें से बहुत से सामाजिक मानदंड से उत्पन्न हो रहे हैं, जहां कोई सोचता है कि महिला को यह करना चाहिए या पुरुषों को ऐसा करना चाहिए।
न्यायमूर्ति एस के कौल ने कहा, और वहां से हम गलती का श्रेय देते हैं। यह एक और चिंता है कि हम जो विशेषता रखते हैं वह वास्तव में एक गलती नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक मानदंड की समझ है कि किसी विशेष चीज को कैसे किया जाना चाहिए।”