सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों ELECTRONIC VOTING MACHINE के सत्यापन VERIFICATION के लिए नीति बनाने की मांग वाली याचिका पर न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ अगले साल जनवरी 2025 में सुनवाई करेगी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर हरियाणा के पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक करण सिंह दलाल और लखन कुमार सिंगला की नई याचिका पर न्यायमूर्ति दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ 20 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सुनवाई करेगी।
न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ ने अप्रैल की शुरुआत में पुराने पेपर बैलेट PAPER BALLET को वापस लाने की मांग को खारिज करते हुए फैसला सुनाया था।
शुरू में, चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि इसी तरह की राहत के लिए इसी तरह की याचिकाएं पहले भी खारिज की जा चुकी हैं।
सीजेआई ने कहा कि न्यायमूर्ति दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ अब इस पर सुनवाई करेगी।
इससे पहले 13 दिसंबर को जस्टिस विक्रम नाथ और पी बी वराले की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा था कि इसे उसी पीठ को सुनने दिया जाए जिसने इसी तरह की याचिकाओं पर सुनवाई की है। अब इसे सीजेआई की अगुआई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।
26 अप्रैल को अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम में हेरफेर के संदेह को “निराधार” करार दिया और कहा कि मतदान उपकरण “सुरक्षित” हैं और बूथ कैप्चरिंग और फर्जी मतदान को खत्म कर दिया है।
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव परिणामों में दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले पीड़ित असफल उम्मीदवारों के लिए एक रास्ता खोल दिया है, साथ ही उन्हें चुनाव आयोग को शुल्क का भुगतान करके लिखित अनुरोध पर प्रति विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम में लगे माइक्रोकंट्रोलर चिप्स के सत्यापन की मांग करने की अनुमति दी है।
दलाल और सिंगला की नई याचिका में ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया‘ के मामले में शीर्ष अदालत के 26 अप्रैल के फैसले का अनुपालन करने की मांग की गई है।
दलाल और सिंगला ने अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे सबसे अधिक वोट प्राप्त किए और चुनाव आयोग (ईसी) को ईवीएम के चार घटकों – कंट्रोल यूनिट, बैलट यूनिट, वीवीपीएटी और सिंबल लोडिंग यूनिट की मूल “बर्न मेमोरी” या माइक्रोकंट्रोलर की जांच के लिए एक प्रोटोकॉल लागू करने का निर्देश देने की मांग की।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनिवार्य किया था कि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम का ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों द्वारा सत्यापन किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनाव आयोग ऐसी कोई नीति जारी करने में विफल रहा है, जिससे बर्न मेमोरी सत्यापन की प्रक्रिया अस्पष्ट रह गई है।
याचिका के अनुसार, चुनाव आयोग द्वारा जारी वर्तमान मानक संचालन प्रक्रिया में केवल बुनियादी निदान परीक्षण और मॉक पोल शामिल हैं, जिसमें बर्न मेमोरी में छेड़छाड़ की जांच नहीं की जाती है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनकी याचिका में चुनाव परिणामों को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि ईवीएम सत्यापन के लिए एक मजबूत तंत्र की मांग की गई है।
परिणामों को चुनौती देने वाली अलग-अलग चुनाव याचिकाएं पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।
याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय से चुनाव आयोग को आठ सप्ताह के भीतर सत्यापन अभ्यास करने का निर्देश देने का आग्रह किया है।
हरियाणा में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 90 में से 48 सीटें जीतीं।