कर्नाटक उच्च न्यायालय KERNATAKA HIGH COURT ने कहा है कि आपराधिक मुकदमे के दौरान यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO ACT) कानून के तहत एक नया आरोप सत्र न्यायालय SESSION COURT के न्यायाधीश के आदेश से जोड़ा जा सकता है।
एक नाबालिग लड़की को अगवा करने, धमकी देने और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता INDIAN PENAL CODE के तहत आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति ने कोलार के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा पॉक्सो POCSO ACT की धारा 7 के तहत अतिरिक्त आरोप को जोड़ने की अनुमति दिए जाने को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने व्यक्ति की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ”संबंधित अदालत के आदेश में कोई त्रुटि नहीं थी।” उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता Cr.P.C. की धारा 216 के तहत अपराध के स्थान पर पॉक्सो के अंतर्गत आरोप को जोड़ने के लिए इसमें बदलाव का अनुरोध किया था, जो उचित है।
पॉक्सो कानून POCSO ACT की धारा 7 नाबालिगों के यौन अंगों को यौन इरादे से छूने के कृत्यों से जुड़े अपराध से संबंधित है। यह यौन इरादे से किए गए ‘किसी अन्य कृत्य’ से भी संबंधित है।
मुकदमे के दौरान, पीड़िता ने गवाही दी थी कि आरोपी ने उसके शरीर के गोपनीय स्थानों को छुआ था जिसके कारण अभियोजन पक्ष ने पॉक्सो कानून के तहत आरोप जोड़ने की मांग की। पीड़िता एक दिसंबर 2016 को स्कूल जा रही थी, तभी बाइक सवार आरोपी ने उसे स्कूल छोड़ने की पेशकश की। लेकिन, दो अन्य आरोपियों के साथ, उसने चौथे आरोपी से लड़की की शादी कराने के लिए उसका अपहरण कर लिया।
लड़की आरोपियों के पास से भाग गई और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। आरोपियों सहित अन्य पर आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था। मुकदमे के दौरान लड़की द्वारा दिए गए बयानों के आधार पर अभियोजन पक्ष ने आरोप को बदलने और पॉक्सो कानून के तहत दंडनीय अपराध को भी शामिल करने की मांग की। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 12 दिसंबर, 2021 को इसकी अनुमति दे दी।
सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को हाल में उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने खारिज कर दिया था।