भारत के संविधान के अंतर्गत ‘प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता’ की संरक्षण की व्याख्या। क्या इसमें ‘जीविका का अधिकार’ भी शामिल है? लैंडमार्क वादों के डिटेल्स के साथ-

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश काल समय और परिस्थिति के अनुसार इस अनुच्छेद का दायरा बढ़ता गया है। यह व्यक्तियों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 का मूल पाठ इस प्रकार है-

किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। स्पष्ट है कि यह अधिकार व्यक्ति के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करता है।

प्रश्न यह है कि प्राण और दैहिक स्वतंत्रता क्या है? सामान्यतया इसका अर्थ जीने के अधिकार से लिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार है। जीने का यह अधिकार भी एक अलग अर्थ रखता है। इसका अर्थ केवल जीवन जीने से नहीं है बल्कि सम्मानजनक अथवा मानव गरिमा युक्त जीवन जीने से है।

खड़क सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश (ए आई आर 1963 एस सी 1295) के मामले में इस अधिकार की व्याख्या करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि जीने के अधिकार से अभिप्राय केवल पशुवत्त जीने से नहीं है, बल्कि सम्मानजनक एवं मानव गरिमा युक्त जीवन जीने से है।

इसी प्रकार मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया( ए आई आर 1978 एस सी 597) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है, वरन मानव गरिमा को बनाए रखते हुए जीने का अधिकार समाहित है।

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संवैधानिक अधिकारों के व्याख्या से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि प्राण और दैहिक स्वतंत्रता की अधिकार का अभिप्राय है- सम्मानजनक अथवा मानव गरिमा युक्त जीवन जीने का अधिकार।

देश काल समय और परिस्थितियों के अनुसार इन अधिकारो में मानव गरिमा से जुड़े कई विषय सम्मिलित होते रहे जो की हमारे शीर्ष न्यायिक व्यवस्था और संसदीय प्राणाली द्वारा स्थापित किये गए है। इन सभी की चर्चा नीचे की जा रही है-

  1. चिकित्सा का अधिकार (परमानंद कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ए आई आर 1989 एस सी 2039)
  2. शिक्षा का अधिकार (कुमारी मोहिनी जैन बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक ए आई आर 1992 एस सी 1958)
  3. पर्यावरण संरक्षण का अधिकार (लाॅ सोसाइटी ऑफ इंडिया बनाम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर ए आई आर 1994 केरल 308)
  4. त्वरित विचारण का अधिकार (पुलिस आयुक्त, दिल्ली बनाम रजिस्ट्रार, दिल्ली उच्च न्यायालय ए आई आर 1997 एस सी 95)
  5. कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण के संरक्षण का अधिकार ( विशाका बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान ए आई आर 1997 एस सी 3011)
  6. निशुल्क विधिक सहायता का अधिकार (एस. एच. हासकट बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र ए आई आर 1978 एस सी 1548)
  7. लावारिस मृतकों का शिष्टता एवं शालीनता से दाह संस्कार का अधिकार (आश्रय अधिकार अभियोजन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया ए आई आर 2002 एस सी 554)
  8. भिखारियों के पुनर्वास का अधिकार (अभिप्राय वेलफेयर सोसाइटी बनाम गवर्नमेंट ऑफ आंध्र प्रदेश ए आई आर 2001 आंध्र प्रदेश 273)
  9. धूम्रपान से संरक्षण का अधिकार (मुरली एस. देवड़ा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ए आई आर 2002 ए सी 40)
  10. विद्यार्थियों का रैगिंग से संरक्षण का अधिकार (विश्व जागृति मिशन बनाम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ए आई आर 2001 एस सी 2783 तथा रमेश बनाम वेणियोया डेंटल कॉलेज ए आई आर 2002 कर्नाटक 264)
  11. सौंदर्य प्रतियोगिताओं में नारी गरिमा को बनाए रखने का अधिकार (चंद्रा राजकुमारी बनाम पुलिस आयुक्त, हैदराबाद, एआई आंध्र प्रदेश 302)
  12. बिजली एवं पानी का अधिकार (मौलवी मसूद अहमद बनाम स्टेट ऑफ जम्मू कश्मीर ए आई आर 1997 जम्मू कश्मीर 75 तथा पुटअप्पा हनप्पा तलवार बनाम डिप्टी कमिश्नर, धारवाड़ ए आई आर 1998 एस सी 1514)
  13. हथकड़ी, बेडी, एवं एकांतवास से संरक्षण का अधिकार (सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन, ए आई आर 1978 एस सी 1675 तथा चार्ल्स शोभराज बनाम दिल्ली प्रशासन, ए आई आर 1978 एस सी 1514)
  14. प्रदूषण रहित जल एवं हवा का उपयोग करने का अधिकार। (Right to Life includes Right to Enjoyment of Pollution Free Water and Air.) (राज मिनरल बनाम स्टेट ऑफ़ गुजरात, ए आई आर 2012 एनओसी 179 गुजरात)।
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उपरोक्त मामलों के अलावा भी कई मामले हैं जिनमें सम्मानजनक एवं मानव गरिमा युक्त जीवन जीने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मिलित किया गया है।

अधिवक्ता रत्नेश सिंह तोमर अधिवक्ता अमृतेष कुमार मृत्युंजय

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