हज यात्रा कोई निरंकुश अधिकार नहीं, सज़ायाफ्ता अभियुक्त को नहीं मिली अस्थायी जमानत: इलाहाबाद हाईकोर्ट

हज यात्रा कोई निरंकुश अधिकार नहीं, सज़ायाफ्ता अभियुक्त को नहीं मिली अस्थायी जमानत: इलाहाबाद हाईकोर्ट

हज यात्रा कोई निरंकुश अधिकार नहीं, सज़ायाफ्ता अभियुक्त को नहीं मिली अस्थायी जमानत: इलाहाबाद हाईकोर्ट

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धारा 304 आईपीसी में दोषसिद्ध एक अभियुक्त की हज यात्रा पर जाने के लिए मांगी गई अल्पकालिक जमानत की अर्जी को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि हज यात्रा का अधिकार पूर्ण या निरंकुश नहीं है, और कारावास की स्थिति में इसे सीमित किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकलपीठ ने अपने निर्णय में कहा:

“हज यात्रा पर जाने का अधिकार कोई पूर्ण अधिकार नहीं है, और चूंकि अपीलकर्ता वर्तमान में कारावास में है, इसलिए उसे इस आधार पर जमानत देना कानून की गिरफ्त से बाहर निकलने की आशंका को बढ़ा सकता है। ऐसी कोई आपात स्थिति नहीं है जिससे उसकी हिरासत से रिहाई आवश्यक मानी जाए।”


मामले की पृष्ठभूमि:

अभियुक्त जाहिद ने अस्थायी जमानत (short-term bail) के लिए याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया कि वह हज यात्रा के लिए चयनित हुआ है। उसने यह भी कहा कि उसने अपनी सज़ा से पूर्व, अपनी पत्नी के साथ यात्रा के लिए आवेदन किया था और आवश्यक फीस भी जमा की थी।

अधिवक्ता नृपेन्द्र मिश्रा ने अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत करते हुए तर्क दिया कि हज यात्रा पर जाना एक संवैधानिक अधिकार है, जो उसे अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त है।


कोर्ट की दलीलें व टिप्पणियां:

हाईकोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के लिए हज यात्रा की धार्मिक महत्ता को मान्यता दी, परंतु स्पष्ट किया कि केवल यह तथ्य कि यात्रा के लिए आवेदन सज़ा से पूर्व किया गया था, जमानत दिए जाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है

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न्यायालय ने कहा:

“अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को कानून के अनुरूप स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह राज्य के विरुद्ध एक रोक है कि किसी को स्वतंत्रता से वंचित न किया जाए सिवाय कानून के अनुसार। सज़ा के बाद कारावास, कानून के अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता का विलोपन होता है, और इसे न तो मनमाना कहा जा सकता है, न ही अवैध।”

कोर्ट ने आगे कहा:

“जब जमानत याचिका पर विचार किया जाता है तो अभियुक्त के फरार होने की संभावना एक महत्वपूर्ण पहलू होता है, जिस पर न्यायालय को गंभीरता से विचार करना होता है।”


अंतिम निर्णय:

इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

“मैं इस अल्पकालिक जमानत अर्जी में कोई औचित्य नहीं पाता, अतः इसे खारिज किया जाता है।”

इस प्रकार, अल्पकालिक जमानत याचिका को अस्वीकार करते हुए अपील को खारिज कर दिया गया।


मामले का संक्षिप्त विवरण:

  • मामला: जाहिद बनाम राज्य बनाम उत्तर प्रदेश
  • याचिका: हज यात्रा के लिए अस्थायी जमानत
  • धारा: 304 भारतीय दंड संहिता
  • निर्णय: जमानत अर्जी खारिज
  • न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति आलोक माथुर
  • मामला संख्या: CRIMINAL APPEAL No. – 1102 of 2025
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