वर्तमान याचिका धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर किया गया है साथ ही साथ दिनांक 25.3.2021 के आरोप पत्र को रद्द करने की मांग संज्ञान आदेश दिनांक 7.4.2021 और पूरी कार्यवाही सत्र परीक्षण संख्या 1678 2021 के अपराध संख्या 832 से उत्पन्न होने वाले 2020, धारा 307, 323, 504, 506 और 34 आईपीसी, पुलिस के तहत थाना कोतवाली नगर, जिला हरदोई, जो मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, हरदोई के न्यायालय में लम्बित है।
याचिकाकर्ता के तरफ से विद्वान अधिवक्ता श्री हरि कृष्ण वर्मा और श्री राव नरेंद्र सिंह, एजीए अभियोजन के तरफ से प्रस्तुत हुए।
याचीगण के विद्वान अधिवक्ता का निवेदन है कि जब दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हो जाने पर यह न्यायालय अपने प्रयोग में धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियां का प्रयोग कर कार्यवाही को रद्द कर सकते हैं सुप्रीम कोर्ट ने नरिंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य के मामले में (2014) 6 एससीसी 466 पूर्वोक्त निर्णय के पैरा 29 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धांत को तैयार किया है जिसमे उच्च न्यायालय को बताया गया है की पार्टियों के बीच समझौते होने की दशा में धारा 482 Cr.P.C के तहत शक्ति का प्रयोग करे और या तो समझौते को स्वीकार कर कार्यवाही को रद्द करना या स्वीकार करने से इनकार करना।
कोर्ट ने कहा की सुप्रीम कोर्ट ने नरिंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य में प्रतिपादित सिद्धांतों को पढ़ने से भी, यह होगा
स्पष्ट है कि आईपीसी की धारा 307 के तहत अपराध गंभीर और जघन्य अपराधों की श्रेणी का अपराध है और आम तौर पर समाज के खिलाफ अपराध के रूप में माना जाता है।
कोर्ट ने यह माना कि यदि पार्टियों समझौते पर पहुंचे, उच्च न्यायालय को इस रूप में जांच करनी चाहिए कि क्या धारा 307 आईपीसी को शामिल करने के लिए है इसके या अभियोजन पक्ष ने पर्याप्त सबूत एकत्र किए हैं, जो अगर साबित हो जाता है, तो भारतीय दंड संहिता धारा 307 के तहत आरोप साबित हो जाएगा।
अभियोजन के तरफ से श्री राव नरेंद्र सिंह, विद्वान एजीए ने बताया कि याचिकाकर्ता नंबर 1 का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है और उस पर दर्ज दस (10) मामलों का डिटेल कोर्ट को प्रस्तुत किया।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने शीर्ष अदालत द्वारा हल ही में दिए गए निर्णय दक्साबेन बनाम. गुजरात राज्य और अन्य, 2022 एससीसी ऑनलाइन एससी 936 को बताया जिसमे यह कहा गया है कि धारा 482 सीआर.पी.सी. के तहत एक प्राथमिकी रद्द करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले उच्च न्यायालय के लिए आवश्यक है कि वो आपराधिक शिकायत और/या आपराधिक कार्यवाही, चौकस और अपराध कि प्रकृत को देखे, अपराध के जघन्यता या गंभीर अपराध, जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और समाज पर गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता है तभी अपराधी और शिकायतकर्ता और/या पीड़िता के बीच हुए समझौते के आधार पर रद्द करने के लिए उचित सम्मान होना चाहिए।
न्यायमूर्ति डी के सिंह ने चिंता व्यक्त की है कि अगर एक समझौता के आधार पर गंभीर अपराधों को रद्द करने की अनुमति दी जाती है तो परोक्ष के लिए दर्ज शिकायतें आरोपी से पैसे निकालने के लिए कारण बनेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि गंभीर और जघन्य अपराधों को रद्द कर दिया जाता है समझौता/निपटान का आधार, आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी गंभीर और गंभीर अपराधों के मामलों में भी मुक्त हो जाएगा हत्या, बलात्कार, दुल्हन को जलाने आदि के रूप में खरीद कर मुखबिर/शिकायतकर्ता और उनके साथ समझौता करेगा।
सुप्रीम द्वारा दक्साबेन बनाम गुजरात राज्य और अन्य (सुप्रा) निर्धारित पूर्वोक्त कानून को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय ने पाया कि समझौते के आधार पर वर्तमान मामले में कार्यवाही रद्द करने का कोई आधार नहीं है।
इसके मद्देनजर,वर्तमान याचिका विफल हो जाती है, जो एतद्द्वारा बर्खास्त कि जाती है।
केस टाइटल – – राजीव कुमार गुप्ता @ राजू और अन्य बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश और अन्य
केस नंबर – APPLICATION U/S 482 No. – 5012 of 2022