हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट को हिंदू विवाह अधिनियम Hindu Marriage Act के तहत तलाक से जुड़े प्रावधानों के अनुसार आदेश देना चाहिए।
दिल्ली उच्च न्यायलय Delhi High Court ने स्पष्ट किया कि पारिवारिक अदालतें Family Court शादी के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक नहीं दे सकती हैं।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विकास महाजन की बेंच ने कहा कि शादी का अपूरणीय टूटना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक का आधार नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने तलाक देने के फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।
उच्च न्यायलय High Court ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है। अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट को छोड़ ही दें, हाईकोर्ट के पास भी ये अधिकार नहीं है।
क्रूरता और परित्याग के आधार पर पति को तलाक की इजाजत देने के फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पत्नी ने अपील की थी। इस पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था। दोनों ने 2002 में शादी की और 2007 में उनकी एक बेटी का जन्म हुआ. जल्द ही वे अलग रहने लगे।
अदालत ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने वैवाहिक संबंध से इनकार के आधार पर तलाक को मंजूरी दे दी थी, भले ही इस पहलू से संबंधित आरोप अस्पष्ट और बिना विवरण के थे। इसमें आगे पाया गया कि कभी भी पूरी तरह से इनकार नहीं किया गया क्योंकि पति ने स्वीकार किया था कि वो उसकी पत्नी ने 30-35 बार वैवाहिक संबंध बनाए थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की का जन्म वैवाहिक अधिकारों से इनकार के आरोप को खारिज करता है।
पत्नी ने लगातार कहा था कि वो पति के साथ रहना चाहती थी, लेकिन उसने बार-बार उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि शादी टूटने के आधार पर पति को तलाक की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने ये भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने केवल इस तथ्य पर विचार किया कि दंपति 11 साल से अलग रह रहे थे और इस आधार पर तलाक दे दिया।