हाई कोर्ट: बहू अनुकंपा के आधार पर फेयर प्राइस शॉप का आवंटन पाने में पूर्ण रूप से हकदार-

लखनऊ बेंच इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बहू अनुकंपा के आधार पर उचित दर की दुकान के आवंटन की हकदार है।

न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने उच्च न्यायलय द्वारा पूर्व में दिए गए एक फैसले पर भरोसा किया है, जिसमें यह माना गया था कि एक विधवा बहू अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान के आवंटन के लिए योग्य/पात्र है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि उक्त शासनादेश मूल आवंटन के परिवार/रिश्तेदारों को उचित मूल्य की दुकान के आवंटन से संबंधित है।

प्रस्तुत मामले में कोर्ट शर्मा देवी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिसके अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान के आवंटन के लिए दायर आवेदन को सरकारी प्राधिकरण ने खारिज कर दिया था। प्राधिकरण ने इस आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया था कि वह शासनादेश दिनांक 5 अगस्त, 2019 के पैरा IV(10) में वर्णित ‘परिवार’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती है।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि अगस्त 2019 का यह शासनादेश उचित दुकान मूल्य के आवंटन से संबंधित है और पैराग्राफ IV(10) उचित मूल्य दुकान के मूल मालिक के उन रिश्तेदारों/सगे-संबंधियों को सूचीबद्ध करता है जो मूल मालिक की मृत्यु पर इस तरह का आवंटन पाने के हकदार हैं।

कोर्ट के समक्ष, मूल आवंटी की बहू के वकील ने प्रस्तुत किया कि आवंटन के लिए आवेदन गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था, क्योंकि पुष्पा देवी बनाम यूपी राज्य में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक विधवा बहू अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान आवंटित की जा सकती है।

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शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने वकील की दलील से सहमति जताई और फैसला सुनाया कि पुष्पा देवी के फैसले में इस मुद्दे को निपटाया गया है और यू.पी. पावर कॉर्पाेरेशन लिमिटेड बनाम श्रीमती उर्मिला देवी ने 2011 (3) एडीजे 432 के मामले में फुल बेंच द्वारा दिए गए फैसले से पूरी तरह कवर होता है।

कोर्ट ने कहा, ”हालांकि पूर्वाेक्त फुल बेंच का निर्णय एक विधवा बहू के अधिकार से संबंधित है और वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता विधवा बहू नहीं है, लेकिन इस न्यायालय की सुविचारित राय में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और फुल बेंच का निर्णय/तर्क वर्तमान मामले में भी लागू होगा…एक ऐसी बहू के मामले में जो विधवा नहीं हुई है, उसी तर्क को लागू करते हुए, यह देखा जा सकता है कि विधवा बहू की तुलना में उसका एक बेहतर दावा होगा क्योंकि वह विधवा बहू की तरह परिवार का एक हिस्सा बनी हुई है। ऐसे में एक बहू जिसका पति जीवित है और एक विधवा बहू के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता है।”

उक्त के प्रकाश में न्यायालय द्वारा आक्षेपित आदेश को रद्द कर गया और प्रतिवादी सरकारी प्राधिकरण को याचिकाकर्ता के आवंटन के आवेदन पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया, जो छह सप्ताह के भीतर पुनर्विचार करे।

केस टाइटल – Smt. Sharma Devi Vs State Of U.P. Through Its Additional Chief Secretary, Food
And Civil Supply Lko And Ors.
केस नंबर – WRIT – C No. – 649 of 2022
कोरम – Hon’ble Manish Mathur,J.

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