चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डॉ डी वाई चंद्रचूड़ ने ऑनर किलिंग पर गहरी चिंता जाहिर की. उन्होंने ‘कानून और नैतिकता’ विषय पर आयोजित अशोक देसाई मेमोरियल लेक्चर हॉल में कहा कि समाज में प्रभावशाली लोगों द्वारा कमजोर तबकों पर अपने बनाए नियम थोप दिए जाते हैं और न चाहते हुए भी कमजोर लोगों को उनके नियम मानने पड़ते हैं.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को नैतिकता पर बात करते हुए कहा कि प्यार करने या अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर दूसरी जाति में शादी करने पर हर साल सैकड़ों लोग मार दिए जाते हैं. सीजेआई ने टाइम मैगजीन में प्रकाशित यूपी की 1991 में हुई ऑनर किलिंग की घटना का जिक्र करते हुए यह बयान दिया.
उन्होंने बताया कि मैगजीन के लेख में एक 15 साल की लड़की की कहानी है, जो नीची जाति के एक 20 साल के लड़के के साथ भाग गई थी. बाद में गांव के ऊंची जाति के लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी. उनको अपना यह अपराध भी न्यायसंगत लगा था क्योंकि ऐसा करना उनके समाज की परंपराओं के मुताबिक सही था लेकिन क्या ऐसे दृष्टिकोण को किसी भी तरह से तर्कसंगत ठहराया जा सकता है?
CJI ‘कानून और नैतिकता: सीमा और पहुंच’ विषय पर अपने व्याख्यान के दौरान कानून, नैतिकता और समूह अधिकारों के लिंक पर बोल रहे थे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने नैतिकता की बात करते हुए कहा कि रोजमर्रा की बातचीत में अक्सर अच्छे और बुरे, सही और गलत का जिक्र होता है. जहां कानून बाहरी संबंधों को नियंत्रित करता है, वहीं नैतिकता आंतरिक जीवन और प्रेरणा को नियंत्रित करती है. नैतिकता हमारे विवेक को आकर्षित करती है और अक्सर हमारे व्यवहार को प्रभावित करती है.
सीजेआई ने कहा-
हम सभी इस बात से सहमत हो सकते हैं कि नैतिकता मूल्यों की एक प्रणाली है जो एक आचार संहिता तैयार करती है, लेकिन क्या यह जरूरी है कि जो मेरे लिए नैतिक है, वह आपके लिए भी नैतिक हो?’ नैतिकता एक ऐसी अवधारणा है, जो हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है.
समाज के ताकतवर लोग तय करते हैं वंचितों के लिए नैतिकता की कसौटी-
CJI ने कहा कि अक्सर समाज के वंचित तबके के लिए नैतिकता की कसौटी समाज का सबसे ताकतवर तबका तय करता है और न चाहकर भी कमजोर लोगों को ऐसे लोगों के सामने झुकना पड़ता है. उन्होंने आगे कहा कि कैसे संविधान बनने के बाद भी प्रभावशाली समुदाय के गढ़े नियम लागू हैं.
संविधान में निहित मूल्यों पर चर्चा को बढ़ाने की जरूरत-
CJI ने संविधान में निहित मूल्यों पर चर्चा को बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया, ताकि परम्पराओं की आड़ में हावी समूहों के नियमों का मुकाबला किया जा सके. CJI ने कहा कि भारत के संविधान के तहत हर व्यक्ति को मौलिक अधिकार मिले हुए हैं और संवैधानिक अधिकारों को कभी भी सामाजिक नियमों से कम नहीं किया जा सकता है.
CJI के अनुसार, एक बेहतरीन संविधान के मूल्य बताते हैं कि हमारे व्यक्तिगत नियमों को हमेशा संवैधानिक नियमों के अधीन होना चाहिए. संवैधानिक नैतिकता जनता में प्रचलित नैतिकता की अवधारणा से व्यक्ति विशेष के हितों की रक्षा करती है.