शीर्ष कोर्ट Supreme Court ने शुक्रवार को कहा कि कोई बीमा कंपनी Insurance Company इस आधार पर किसी दावे को खारिज नहीं कर सकती कि उसे वाहन चोरी की सूचना देने में देरी हुई।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा, “जब शिकायतकर्ता ने वाहन चोरी के तुरंत बाद प्राथमिकी FIR दर्ज करवायी थी, और जब पुलिस ने जांच के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था और संबंधित अदालत के समक्ष चालान भी दायर किया था, और जब बीमाधारक का दावा वास्तविक नहीं पाया गया, तो बीमा कंपनी केवल इस आधार पर दावे को अस्वीकार नहीं कर सकती थी कि चोरी की घटना के बारे में बीमा कंपनी को सूचित करने में देरी हुई थी।” पीठ ने कहा कि आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया, हालांकि वाहन का पता नहीं चल सका।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश को किया रद्द-
सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसे ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड Oriental Insurance Company Limited द्वारा टाटा ऐवा ट्रक की चोरी के संबंध में जैन कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड को बीमित राशि का भुगतान करने के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर पारित किया गया था।
मामले में बीमा कंपनी Insurance Company ने यह कहते हुए दावा देने से पल्ला झाड़ लिया था कि इसमें पॉलिसी की शर्त नंबर-एक का उल्लंघन गया था। इस शर्त के अनुसार बीमाकर्ता को आकस्मिक नुकसान या क्षति के लिए तत्काल नोटिस देना होता है। लेकिन उसने पांच महीने के बाद चोरी के बारे में बीमा कंपनी सूचित किया था।
बीमा कंपनी Insurance Company की इस दलील को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत Supreme Court ने कहा कि मामले में भी शिकायतकर्ता द्वारा वाहन चोरी की घटना के अगले दिन तत्काल प्राथमिकी FIR दर्ज करायी गयी।
याचिका सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि गुरशिंदर सिंह बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और एक अन्य, 2020 (11) एससीसी 612 में तीन जजों की पीठ के समक्ष यह मुद्दा विचार के लिए मौजूद था, जिसमें माना गया था- जब एक बीमाधारक ने वाहन चोरी के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज की है और जब पुलिस ने जांच के बाद वाहन का पता नहीं चलने के बाद अंतिम रिपोर्ट दर्ज की है और जब सर्वेयर /बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त जांचकर्ताओं ने चोरी के दावे को वास्तविक पाया है, तो चोरी की घटना के बारे में बीमा कंपनी को सूचित करने में देरी बीमाधारक के दावे को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा, ”अदालत की राय है कि एनसीडीआरसी (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) को जिला फोरम District forum और राज्य आयोग State Commission के आदेशों को यह कहते हुए रद्द नहीं करना चाहिए था कि बीमा कंपनी द्वारा बीमा दावे को अस्वीकार करना उचित था। आक्षेपित आदेश त्रुटिपूर्ण होने और कानून की निर्धारित स्थिति के विरुद्ध होने के कारण, निरस्त किए जाने योग्य है, और तदनुसार, रद्द किया जाता है।”
जिला उपभोक्ता District Forum ने शिकायतकर्ता को 10,000 रुपये मुआवजा और 5,000 रुपये मुकदमेबाजी खर्च का भुगतान करने का आदेश दिया था। इस आदेश को बीमा कंपनी ने राज्य आयोग में चुनौती दी थी, जिसने उसकी अपील खारिज कर दी थी। बाद में बीमा कंपनी ने एनसीडीआरसी का रुख किया, जिसने उपभोक्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। एनसीडीआरसी (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) के आदेश को चुनौती देते हुए जैन कंस्ट्रक्शन कंपनी ने शीर्ष अदालत Supreme Court का रुख किया।
केस टाइटल – जैन कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
केस नंबर – CA 1069 of 2020
कोरम – न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी