हत्या आरोप की पुष्टि के लिए मर्डर का मकसद साबित होना चाहिए और परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी होनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

हत्या आरोप की पुष्टि के लिए मर्डर का मकसद साबित होना चाहिए और परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी होनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जो आईपीसी IPC की धारा 498-A, 306 के तहत दर्ज मामले से उत्पन्न हुई थी, जिसमें अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया था। और धारा 302 आईपीसी I.P.C के तहत अपराध के लिए सजा सुनाई।

प्रस्तुत मामले में मुखबिर अनिल (मृतक के भाई) द्वारा थाने में लिखित रिपोर्ट दी गई कि उसकी बहन सुंदरमती का विवाह घटना के छह वर्ष पूर्व आरोपी रामायण से हुआ था।

आरोप है कि आरोपी उसकी बहन को आए दिन प्रताड़ित करता था। जलने से उसकी बहन की मौत हो गई और मृतक का शव कमरे में पड़ा है। धारा 306 और 498-ए आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किया गया था। और जांच हुई थी।

पीठ के समक्ष विचार के लिए ये प्रश्न था की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता है या नहीं?

खंडपीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपित कोई मकसद नहीं है और जो भी मकसद लगाया गया है यानी दहेज के संबंध में जिसके लिए आरोपी-अपीलकर्ता को दोषी नहीं पाया गया है। इस मामले में कोई अन्य कोई परिस्थितिजन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जो इस निष्कर्ष पर पहुँच सके कि अपराध अभियुक्त-अपीलकर्ता द्वारा स्वयं किया जा सकता था और कोई नहीं। परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी नहीं हुई है। यह सुनिश्चित करने के लिए परिस्थितियों की श्रृंखला का मूल्यांकन करना न्यायालय का कर्तव्य है कि घटनाओं की श्रृंखला स्पष्ट रूप से स्थापित और पूर्ण हो, इस तरह से, जिससे अभियुक्त-अपीलकर्ता की निर्दोषता की उचित संभावना से इंकार किया जा सके।

कोर्ट ने कहा कि “हमारे पास आईपीसी IPC की धारा 302 के तहत आरोपी-अपीलकर्ता को बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।” क्योंकि यह बिना सबूत का मामला है। पूर्वोक्त दृष्टिकोण से, हमारी सुविचारित राय है कि अभियुक्त-अपीलार्थी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के संबंध में कोई सबूत नहीं है। न ही उन्हें बदले गए आरोपों के खिलाफ खुद का बचाव करने का उचित अवसर दिया गया था, इसलिए, हमारा विचार है कि निचली अदालत आरोपी-अपीलकर्ता को बिना किसी सबूत और खुद का बचाव करने के उचित अवसर के बिना दोषी नहीं ठहरा सकती थी, इसलिए, के निष्कर्षों को पलट दिया। ट्रायल कोर्ट और अपील की अनुमति दी जा सकती है।

अस्तु कोर्ट ने उपरोक्त हो ध्यान में लेते हुए अपील को स्वीकार किया।

केस टाइटल – रामायण बनाम यूपी राज्य
केस नंबर – अपील नंबर – 6157 ऑफ 2016

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