‘जजों से भी हो सकती है गलती’, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश वापस लेने के ED के आवेदन को अनुमति प्रदान करते हुए कहा की आदेशों में त्रुटियों को मानने में और उन्हें सुधारने से पीछे नहीं हटना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जज भी गलती कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अदालतों को अपने आदेशों में गलतियों को स्वीकार करने और मामले के बंद होने के बाद भी उन्हें सुधारने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यह मामला इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस और उसके अधिकारियों को अंतरिम सुरक्षा देने के सुप्रीम कोर्ट के एक साल पुराने आदेश से जुड़ा है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि ‘उसके आदेश में कुछ त्रुटियां रह गई थीं।’

एनफोर्समेंट डिरेक्ट्रेटे ED ने 4 जुलाई, 2023 को पारित आदेश को वापस लेने की मांग इस आधार पर की थी कि इसे पारित करने से पहले उसका पक्ष नहीं सुना गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सुनवाई का मौका दिए बिना ही उसकी कार्रवाई पर रोक का आदेश पारित कर दिया गया था। ED ने आदेश में संशोधन की मांग की थी। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय कुमार की तरफ से सुनाए गए फैसले में एक और दोष था। इसमें एक तरफ तो पक्षकारों को अपनी शिकायतें उठाने के लिए हाई कोर्ट जाने को कहा गया था, लेकिन दूसरी तरफ अंतरिम सुरक्षा दी गई थी जो हाई कोर्ट में मामले के लंबित रहने तक जारी रहती।

आम तौर पर, सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा तब तक बनी रहती है जब तक कि पक्षकार हाई कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा लेते। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम सुरक्षा पर फैसला लेने के लिए हाई कोर्ट पर छोड़ देता है।

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जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने मंगलवार को माना कि (24 सितम्बर 2024) दोनों गलतियों को स्वीकार किया और आदेश में संशोधन किया। बेंच ने कहा कि वसूली कार्यवाही में अंतरिम सुरक्षा तब तक रहेगी जब तक पक्षकार हाई कोर्ट का रुख नहीं कर लेते। इसके बाद अंतरिम आदेश पर फैसला लेना हाई कोर्ट का काम होगा।

बेंच ने कहा, ‘इस अदालत द्वारा रिट याचिका में दी गई कार्यवाही पर रोक, पहली तीन प्राथमिकी के संबंध में, हाई कोर्ट के समक्ष दायर की जाने वाली रिट याचिकाओं के निपटारे तक जारी रखने का निर्देश दिया गया था। जब किसी पक्ष को उसके उपचार के लिए हाई कोर्ट में भेज दिया जाता है, तो सामान्य स्थिति में, उक्त न्यायालय को ऐसी अदालत के समक्ष चुनौती दी जाने वाली कार्यवाही के संबंध में निर्देशों से बांधना उचित नहीं होगा। साधारण तौर पर, यह न्यायालय सभी मुद्दों को उस पक्ष के लिए खुला छोड़ देगा ताकि वह हाई कोर्ट के सामने उठा सकें।’

बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अंतिम उपाय वाला न्यायालय होता है लिहाजा वह अपने आदेशों में किसी भी गलती को स्वीकार करने से पीछे नहीं हटेगा। अगर आदेश में कोई गलती मिली तो उसे ठीक करने के लिए तैयार रहेगा। बेंच ने ED की याचिका को स्वीकार करते हुए पिछले साल 4 जुलाई को पारित अपने आदेश के उस हिस्से को वापस ले लिया जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले का जिक्र था।

सुप्रीम कोर्ट के वी के जैन बनाम दिल्ली हाई कोर्ट (2008) मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा, ‘हमारी कानूनी व्यवस्था न्यायाधीशों की गलती की संभावना को स्वीकार करती है। हालांकि यह अवलोकन जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों के संदर्भ में किया गया था, यह न्यायिक पदानुक्रम के उच्च सोपानों पर बैठे लोगों पर समान रूप से लागू होगा। रिकॉर्ड के न्यायालयों के रूप में, यह आवश्यक है कि संवैधानिक न्यायालय उन त्रुटियों को पहचानें जो उनके न्यायिक आदेशों में आ गई हों… और उन्हें सुधारें।’

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कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम दविंदर पाल सिंह भुल्लर और अन्य (2011) का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई आदेश उससे प्रभावित पक्ष को सुनवाई का अवसर दिए बिना सुनाया जाता है तो अदालत की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग ऐसे आदेश को वापस लेने के लिए किया जा सकता है।

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि आदेश में चूक के कारण कुछ त्रुटियां भी हुई थीं। हालांकि याचिकाकर्ताओं को बलपूर्वक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण दिया गया, लेकिन आदेश में यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट से अंतरिम संरक्षण मांगने के लिए स्वतंत्र होंगे।

याचिकाकर्ताओं को जब हाईकोर्ट में भेजा जाता है तो हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से बांधना अनुचित, नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर (पी) लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य का संदर्भ देते हुए पीठ ने आगे कहा,

“जब किसी पक्ष को उसके उपचारों को आगे बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट में भेजा जाता है तो सामान्य तौर पर ऐसे न्यायालय के समक्ष पेश की जाने वाली कार्यवाही के संबंध में उक्त हाईकोर्ट को निर्देशों से बांधना उचित नहीं होगा। आम तौर पर यह न्यायालय ऐसे सभी मुद्दों को ऐसे पक्ष के लिए खुला छोड़ देता है, जिसे हाईकोर्ट के समक्ष उठाया और आगे बढ़ाया जा सकता है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे निर्देशों को हाईकोर्ट द्वारा मामले के गुण-दोष पर इस न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों के रूप में गलत समझा जा सकता है, जिससे मामले के निर्णय पर असर पड़ सकता है।

उपरोक्त कारणों से न्यायालय ने 4 जुलाई, 2023 को पारित आदेश को वापस ले लिया।

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वाद शीर्षक – गगन बंगा और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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