सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के वोटों का वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों से 100 फीसदी सत्यापन की मांग वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग भी खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि, “हमने ईवीएम में निहित तंत्र और सुरक्षा उपायों को स्पष्ट करने के बाद डेटा का संदर्भ दिया है, ताकि गलत कामों की जांच और रोकथाम की जा सके और ईवीएम की प्रभावकारिता और प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जा सके। हम ईवीएम के कामकाज पर सवाल उठाने के मतदाताओं के अधिकार को स्वीकार करते हैं, जो एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका चुनाव परिणामों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हालांकि, जब हम चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर संदेह करते हैं तो सावधानी और सतर्कता बरतना भी आवश्यक है। बार-बार और लगातार संदेह और निराशा, यहां तक कि बिना किसी सबूत के भी, अविश्वास पैदा करने का विपरीत प्रभाव डाल सकती है। यह नागरिकों की भागीदारी और चुनावों में विश्वास को कम कर सकता है, जो एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। निराधार चुनौतियां वास्तव में धारणाओं और पूर्वाग्रहों को प्रकट कर सकती हैं, जबकि इस न्यायालय को विवादों और चुनौतियों के मध्यस्थ और निर्णायक के रूप में साक्ष्य और डेटा के आधार पर तथ्यों पर निर्णय देना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने बैलट पेपर से चुनाव कराने और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (EVM) और VVPAT स्लिप की 100% क्रॉस-चेकिंग कराने से जुड़ी याचिकाएं खारिज कर दीं।
लेकिन एक बड़ा फैसला भी दिया। कोर्ट ने EVM के इस्तेमाल के 42 साल के इतिहास में पहली बार जांच का रास्ता खोल दिया। सुनवाई शुक्रवार को हुई और बेंच न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की थी। दोनों ने एकमत से फैसला सुनाया।
प्रस्तुत मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े पैरवी कर रहे हैं। प्रशांत भूषण एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से हैं। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से अब तक एडवोकेट मनिंदर सिंह, अफसरों और केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद रहे हैं।
देश में 1982 में पहली बार केरल में EVM से आम चुनाव हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के बाद इन्हें रद्द कर दिया गया था।
इस केस में 3 पक्ष शामिल थे…एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म यानी याचिकाकर्ता, चुनाव आयोग, सरकार और अफसर। केस चुनाव और मतदान से जुड़ा है तो राजनीतिक पार्टियां और आम जनता भी जुड़ी हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद-
- आम आदमी यानी मतदाता – सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आम आदमी की वोट देने की प्रोसेस में कोई बदलाव नहीं होगा। वोटर पोलिंग बूथ जाएगा। अंगुली पर स्याही लगेगी। चुनाव अधिकारी कंट्रोल यूनिट का बटन दबाएगा। वोटर बैलट यूनिट में कैंडिडेट के नाम के सामने का बटन दबाएगा और फिर कुछ सेकेंड तक वीवीपैट की लाइट में अपनी पर्ची देख सकेगा।
- राजनीतिक पार्टियां और कैंडिडेट्स – फैसले के बाद राजनीतिक पार्टियां और कैंडिडेट्स के लिए एक रास्ता खुला है। वे EVM की जांच करवा सकेंगे। इसे नीचे दिए पॉइंट्स से समझिए।
दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले किसी कैंडिडेट को शक है तो वह रिजल्ट घोषित होने के 7 दिन के भीतर शिकायत कर सकता है।
शिकायत के बाद EVM बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर्स इसकी जांच करेंगे।
किसी भी लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा क्षेत्रवार की टोटल EVM’s में से 5% मशीनों की जांच हो सकेगी। इन 5% EVM’s को शिकायत करने वाला प्रत्याशी या उसका प्रतिनिधि चुनेगा।
इस जांच का खर्च कैंडिडेट को ही उठाना होगा। खर्च कितना आएगा, इसका फैसले में जिक्र नहीं है। लेकिन जांच पूरी होने के बाद चुनाव आयोग बताएगा कि जांच में कुल कितना खर्च आया। आयोग इसे नोटिफाई करके बताएगा।
जांच के बाद अगर ये साबित होता है कि EVM से छेड़छाड़ की गई है तो शिकायत करने वाले कैंडिडेट को जांच का पूरा खर्च लौटा दिया जाएगा।
- याचिकाकर्ता – उनकी सभी याचिकाएं खारिज हो गईं, लेकिन EVM की जांच के आदेश से थोड़ी राहत मिली। ADR के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश दिए, जिसमें कैंडिडेट्स के लिए शिकायत और फिर जांच की बात भी है। इसके बाद सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
- चुनाव आयोग – सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 3 निर्देश दिए हैं।सिंबल लोडिंग प्रक्रिया के पूरा होने के बाद इस यूनिट को सील कर दिया जाए। सील की गई यूनिट को 45 दिन के लिए स्ट्रॉन्ग रूम में स्टोर किया जाए।इलेक्ट्रॉनिक मशीन से पेपर स्लिप की गिनती के सुझाव का परीक्षण कीजिए।यह भी देखिए कि क्या चुनाव निशान के अलावा हर पार्टी के लिए बारकोड भी हो सकता है।
- सरकार – सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सरकार के लिए कोई निर्देश नहीं है।
अगस्त 2023 में लगाई गई थी याचिका-
VVPAT पर्चियों की 100% वेरिफिकेशन को लेकर एक्टिविस्ट अरुण कुमार अग्रवाल ने अगस्त 2023 में याचिका लगाई गई थी। याचिका में कहा गया कि वोटर्स को VVPAT की पर्ची फिजिकली वेरिफाई करने का मौका दिया जाना चाहिए। वोटर्स को खुद बैलट बॉक्स में पर्ची डालने की सुविधा मिलनी चाहिए। इससे चुनाव में गड़बड़ी की आशंका खत्म हो जाएगी।
पहले भी कई बार उठा है मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में-
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, 21 विपक्षी दलों के नेताओं ने भी सभी EVM में से कम से कम 50 प्रतिशत VVPAT मशीनों की पर्चियों से वोटों के मिलान करने की मांग की थी। उस समय, चुनाव आयोग हर निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक EVM का VVPAT मशीन से मिलान करता था। 8 अप्रैल, 2019 को मिलान के लिए EVM की संख्या 1 से बढ़ाकर 5 कर दी थी।
इसके बाद मई 2019 कुछ टेक्नोक्रेट्स ने सभी EVM के VVPAT से वेरिफाई करने की मांग की याचिका लगाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
इसके अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने भी जुलाई 2023 में वोटों के मिलान की याचिका लगाई थी। इसे खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- कभी-कभी हम चुनाव निष्पक्षता पर ज्यादा ही संदेह करने लगते हैं।
वाद शीर्षक – एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत का चुनाव आयोग और अन्य।