35 लाख से अधिक के चेक बाउंस के मामलों की पेंडेंसी को “विचित्र” करार दिया-
केंद्र सरकार से कहा कि वे ऐसे मामलों में मुकदमों की क्लबिंग सुनिश्चित करने के लिए कानूनों में संशोधन करें-
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चेक बाउंस के मामलों को जल्दी से निपटाए जाने की व्यवस्था के लिए कई निर्देश जारी किए और केंद्र से कहा कि वह कानून में संशोधन कर के ऐसे प्रावधान करे कि यदि किसी एक व्यक्ति के विरुद्ध एक साल में एक से अधिक मामले दर्ज किए गए हो तो ऐसे मामलों की सुनवाई एक साथ की जा सके।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल मार्च में चेक बाउंस के लंबित मामलों की भारी संख्या का संज्ञान लिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि 31 दिसंबर, 2019 को देश में ऐसे लंबित कुल 2.31 करोड़ आपराधिक मामलों में चेक बाउंस से जुड़े मामलों की संख्या 35.16 लाख थी।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ ने एक साझा आदेश में ‘आपराधिक अदालतों पर बोझ कम करने’ के लिए कदम उठाए।
पीठ ने उच्च न्यायालयों से कहा कि वे चेक का अनादर होने के मामलों की सुनवायी करने वाले मजिस्ट्रेटों को ‘प्रक्रिया विषयक निर्देश’ जारी करें और कहें कि वे परक्राम्य लिखित कानून की धारा 138 के तहत शिकायतों को स्पीडी सुनवाई के स्थान पर समन जारी करके सुनवाई करने के अपने निर्णय का कारण अदालत के रिकार्ड पर दर्ज करें।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, बीआर गवई, ए एस बोपन्ना और एस रवींद्र भट की पीठ ने भी केंद्र से Negotiable Instruments Act. में “उपयुक्त संशोधन” करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी व्यक्ति के खिलाफ 12 महीने में चेक बाउंस के मामलों में ट्रायल हो सके। एक समेकित मामले में एक साथ क्लब किया जाए।
केंद्र कर सकता है कानून में संशोधन
दंड प्रक्रिया संहिता (Cr P C) के तहत सरसरी सुनवाई में अभियुक्त अपना दोष नहीं मानता है, तो मजिस्ट्रेट सबूत दर्ज करके तुरंत निर्णय सुना सकता है। लेकिन Cr.P.C. के तहत समन जारी कर सुनवाई करने की प्रक्रिया में न्यायिक अधिकारी को कार्यवाही पूरी करनी और सबूत रिकॉर्ड करना होगा।
पीठ ने कहा, ‘हम सिफारिश करते हैं कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट ऐक्ट (N.I.A) की धारा 219 में विहित प्रतिबंधों के बावजूद एक व्यक्ति द्वारा 12 महीने की अवधि के भीतर अधिनियम (N.I.A) की धारा 138 के तहत किए गए एक से अधिक अपराधों की सुनवाई एक साथ किए जाने के प्रावधान हेतु अधिनियम में उपयुक्त संशोधन किए जाएं।’ पीठ ने इस मुद्दे पर अदालत के मित्र अधिवक्ता की इसी तरह की सिफारिश का उल्लेख किया।
न्यायालय ने इस इस सुझाव पर ध्यान दिया कि चेक बाउंस संबंधी कानून में केंद्र द्वारा उपयुक्त संशोधन किया जा सकता है ताकि जहां एक ही तरह के उद्देश्य के लिए चेक जारी किए गए हो वहां ‘कार्यवाही की बहुलता से बचा जा सके।’
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बोबडे ने पीठ की ओर से 27 पन्नों का आदेश लिखते हुए कहा, अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायतें मिलने पर जांच कराई जाएगी ताकि सुनवायी अदालत के न्यायिक अधिकार की भौगोलिक सीमा से बाहर रहने वाले आरोपी के खिलाफ इस तरह की एक साथ कार्रवाई का पर्याप्त आधार तय किया जा सके।
समिति करेगी विचार
आदेश में कहा गया है कि अभियुक्त को बुलाने से पहले जांच कराने के लिए शिकायतकर्ता की ओर से गवाहों के साक्ष्य को शपथ पत्र पर लेने की अनुमति दी जाएगी और ‘उपयुक्त मामलों में मजिस्ट्रेट गवाहों की गवाही दर्ज करने पर जोर दिए बिना जांच को दस्तावेजों की छान-बीन तक सीमित रख सकता है।’
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवायी अदालतों के लिए प्रक्रिया संबंधी ऐसे निर्देश जारी करने का निर्देश दिया है जिसके तहत एक व्यक्ति के खिलाफ N.I.A. धारा 138 के तहत किसी एक शिकायत की सुनवायी के सिलसिले में जारी सम्मन को उस अदालत के समक्ष उसके खिलाफ ऐसे सभी मामलों के लिए जारी सम्मन माना जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन मुद्दों से निपटा नहीं गया है, उन पर बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर सी चव्हाण की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा विचार किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने 10 मार्च को देश भर में चेक बाउंस मामलों के शीघ्र निपटान के लिए उठाए जाने वाले कदमों को निर्दिष्ट करते हुए तीन महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए समिति का गठन किया था।
ज्ञात हो की पिछले साल 05/03/2020 को शीर्ष अदालत ने एक मुकदमा दायर किया था और ऐसे मामलों के शीघ्र निपटान के लिए एक “ठोस” और “समन्वित” तंत्र विकसित करने का निर्णय लिया।