सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: तेजाब हमले के पीड़ित मुआवजा विलंब होने पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: तेजाब हमले के पीड़ित मुआवजा विलंब होने पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: तेजाब हमले के पीड़ित मुआवजा विलंब होने पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि तेजाब हमले के पीड़ित यदि मुआवजा मिलने में देरी का सामना कर रहे हैं, तो वे अपने संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority – SLSA) से संपर्क कर सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मुंबई स्थित एनजीओ एसिड सर्वाइवर्स साहस फाउंडेशन के वकील की दलीलों पर संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र में पीड़ितों को मुआवजा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

सीजेआई ने स्पष्ट रूप से कहा, “राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें।”

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को पीड़ितों की सहायता का निर्देश

पीठ ने आगे कहा, “पीड़ितों को यह स्वतंत्रता होगी कि वे यदि मुआवजा भुगतान में देरी का सामना करते हैं, तो वे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं।”

सुप्रीम कोर्ट ने SLSAs को निर्देश दिया कि वे एक चार्ट तैयार करें, जिसमें यह विवरण हो कि पीड़ित या उनके परिवार ने कब मुआवजे के लिए आवेदन किया और उन्हें भुगतान किस तिथि को प्राप्त हुआ।

इसके अलावा, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि तेजाब हमले के पीड़ितों को मुआवजा वितरण में देरी होती है, तो यह न्यायालय के संज्ञान में लाया जाएगा।

केंद्र और 11 राज्यों को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय

सुनवाई के दौरान यह भी पाया गया कि केंद्र और 11 राज्यों ने अभी तक इस याचिका पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। इस पर न्यायालय ने उन्हें चार सप्ताह का समय दिया और अगली सुनवाई मई के पहले सप्ताह में तय की।

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लक्ष्मी बनाम भारत संघ (2014) के दिशानिर्देशों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने की मांग

यह सुनवाई 2023 में दायर एनजीओ की जनहित याचिका (PIL) से संबंधित थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा लक्ष्मी बनाम भारत संघ (2014) में दिए गए निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की गई थी।

उल्लेखनीय है कि 2014 के इस ऐतिहासिक आदेश में निर्देश दिया गया था कि –

  1. तेजाब हमले के पीड़ितों को सार्वजनिक एवं निजी अस्पतालों में नि:शुल्क उपचार मिलना चाहिए।
  2. राज्य सरकार को प्रत्येक पीड़ित को न्यूनतम ₹3 लाख का मुआवजा देना चाहिए, जिससे वह पुनर्वास और इलाज करा सकें।

मुआवजा राशि बढ़ाने और फास्ट ट्रैक अदालतों में सुनवाई की मांग

याचिका, जो वकील शशांक त्रिपाठी के माध्यम से दायर की गई थी, में यह तर्क दिया गया कि –

  • तेजाब हमले के पीड़ितों को अब भी न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, भले ही अदालत ने तेजाब बिक्री को नियंत्रित करने, अपराधियों को दंडित करने और पीड़ितों के पुनर्वास हेतु प्रयास किए हैं।
  • मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए निर्देश जारी किए जाएं।
  • तेजाब हमले के मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में की जाए।

पीड़ितों को अब भी पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल रही

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के विक्टिम कंफेंसशन स्कीम के तहत न्यूनतम ₹3 लाख के अलावा ₹1 लाख अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया था, फिर भी कई पीड़ितों को अब तक समुचित वित्तीय राहत नहीं मिली है।

  • कई पीड़ित वर्षों बाद भी अपने मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति में हैं।
  • कई योजनाओं और संशोधनों के बावजूद, प्रशासनिक अक्षम्यताओं के कारण पीड़ितों को लाभ नहीं मिल पा रहा।
  • तेजाब हमले के पीड़ितों को अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए जटिल नौकरशाही प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है।
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निजी अस्पताल अदालत के आदेशों का पालन नहीं कर रहे

याचिका में यह गंभीर चिंता भी व्यक्त की गई कि –

  • निजी अस्पताल अब भी अदालत के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं और आपातकालीन उपचार से पहले अग्रिम भुगतान की मांग कर रहे हैं।
  • पुनर्निर्माण सर्जरी (Reconstructive Surgery) की ऊंची लागत कई पीड़ितों के लिए उपचार कराना असंभव बना रही है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पीड़ितों को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी और राज्य सरकारों को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

मामला अगली सुनवाई के लिए मई के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया है।

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