वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई – गंभीर टिप्पणियाँ, अगली सुनवाई कल दोपहर 2 बजे
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कई गंभीर टिप्पणियाँ कीं और मामले की अगली सुनवाई कल दोपहर 2 बजे होगी।
🔷 मुख्य मुद्दे और याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाँ:
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की और कहा कि यह संशोधन इस्लाम धर्म के मूल धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 द्वारा संरक्षित हैं। उन्होंने कहा:
- अनुच्छेद 26 के तहत “कानून के अनुसार” (in accordance with law) का अर्थ यह नहीं हो सकता कि वह मूल धार्मिक परंपराओं को ही समाप्त कर दे।
- धारा 3(r) और उसकी प्रोविज़ो: इसके तहत ‘वक्फ बाय यूज़र’ (परंपरा से बने वक्फ) को सिर्फ तभी समाप्त किया जा सकता है जब कोई आपत्ति उठाए या सरकार उसे अपनी संपत्ति घोषित कर दे। यह प्राचीन धार्मिक स्थलों पर असर डालता है।
- धारा 3(A)(2): कहती है कि ‘वक्फ अलाल औलाद’ (वंशजों के लिए वक्फ) महिलाओं की विरासत को नहीं नकार सकती। सिब्बल ने कहा कि यह धार्मिक उत्तराधिकार व्यवस्था में हस्तक्षेप है।
- धारा 3(C): जिसके अनुसार सरकारी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी। सिब्बल ने कहा, इसमें समय सीमा नहीं दी गई और अधिकारी सरकारी होंगे – यह असंवैधानिक है।
- धारा 36: ‘वक्फ बाय यूज़र’ की अवधारणा ही समाप्त कर दी गई है, जबकि यह इस्लामी परंपरा का हिस्सा है।
- धारा 7A: जिसके तहत संपत्ति के मालिकाना हक को साबित करने में 20 वर्ष लग सकते हैं, और उसमें न्यायालयीय अपील का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
🔷 न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- CJI ने कहा: “जब मामला हमारे सामने लंबित है, तो जमीन पर हिंसा नहीं होनी चाहिए।”
- विरासत पर टिप्पणी: “इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद होता है, लेकिन यह कानून उससे पहले ही हस्तक्षेप करता है।”
- वक्फ बाय यूज़र पर: “पुरानी मस्जिदें जैसे जामा मस्जिद भी ‘यूज़र’ द्वारा स्थापित हुई हैं, अगर पुराना दस्तावेज न हो तो क्या उस पर दावा नहीं किया जा सकता?”
- सरकारी अधिकारी को वक्फ की वैधता तय करने का अधिकार देना चिंताजनक है।
- CJI ने SG से तीखा सवाल किया: “अगर आप कहते हैं कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ बोर्ड का हिस्सा बन सकते हैं, तो क्या आप कह सकते हैं कि मुस्लिम भी हिंदू मंदिर ट्रस्ट में होंगे?” SG के जवाब पर CJI ने कहा: “हम जब यहाँ बैठते हैं, तब धर्म नहीं देखते।”
🔷 सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता की दलीलें:
- यह संशोधन 38 बैठकों और लाखों सुझावों के आधार पर किया गया।
- पहले भी वक्फ पंजीकरण आवश्यक था; गैर-पंजीकृत वक्फ अवैध हैं।
- “1995 से ही अगर वक्फ रजिस्टर नहीं हुआ तो मुतवल्ली जेल जा सकता है – यह नया नहीं है।”
- Collector केवल राजस्व अधिकारी होता है, उसका निर्णय अदालत में चुनौती योग्य है।
- विकल्प दिया गया है – व्यक्ति चाहे तो वक्फ की बजाय ट्रस्ट बना सकता है।
🔷 कानून मंत्री किरन रिजिजू की संसद में टिप्पणी (पृष्ठभूमि):
- भारत ‘धर्मनिरपेक्ष’ इसलिए है क्योंकि भारत की बहुसंख्यक आबादी धर्मनिरपेक्ष है।
- यह कानून मस्जिद, मंदिर या धार्मिक स्थल के संचालन से संबंधित नहीं है – यह केवल संपत्ति प्रबंधन का विषय है।
- इससे मुस्लिम समुदाय में सभी संप्रदायों को एकजुट करने का प्रयास किया गया है।
🔷 याचिकाकर्ता:
- मोहम्मद जावेद (कांग्रेस)
- असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM)
- अमानतुल्लाह खान (AAP)
- Association for Protection of Civil Rights (NGO)
- मौलाना अरशद मदनी (जमीयत उलेमा-ए-हिंद)
- समस्ता केरल जमीयतुल उलेमा
- अंजुम कदरी
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