न्यायाधीशों के ऊपर टिप्पणी करना पड़ा महंगा, वकीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया अवमानना नोटिस

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यति नरसिंहानंद का अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर सांप्रदायिक बयान देने का इतिहास रहा है

प्रमुख बिंदु

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों के खिलाफ टिप्पणी करने वाले वकील अवमानना के लिए जिम्मेदार होंगे.
  • जस्टिस बी आर गवई और बी वी नागरत्ना की पीठ ने याचिकाकर्ता के साथ उसके वकील को नोटिस जारी किया.
  • उन दोनों को 2 दिसंबर को अदालत में मौजूद रहने का आदेश भी दिया गया है.

उच्चतम न्यायलय ने एक याचिकाकर्ता और Advocate on Record (एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड) को नोटिस जारी किया, जिसमें उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ टिप्पणियों को शामिल किया गया था, जो प्रकृति में अवमाननापूर्ण था।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने AOR Advocate on Record (एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड) और याचिकाकर्ता से जवाब मांगा कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए।

खंडपीठ के अनुसार, यहां तक कि वकील जो इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी पर हस्ताक्षर करता है, वह भी अदालत की अवमानना करने का दोषी है।

ये निर्देश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर एक एसएलपी पर सुनवाई करते हुए पारित किए गए थे जिसमें उच्च न्यायालय ने कर्नाटक राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति को चुनौती देने की याचिका खारिज कर दी थी।

उच्च न्यायालय ने उक्त अपील को यह कहने के बाद खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने साफ हाथों से उच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया और भौतिक तथ्यों को दबाने का भी दोषी है। उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

नोटिस का दो दिसंबर तक देना होगा जवाब-

जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने 11 नवंबर को याचिकाकर्ता मोहन चंद्र पी. और एडवोकेट आन रिकार्ड विपिन कुमार जय को नोटिस जारी करने का आदेश दिया, जिसका उन्हें दो दिसंबर, 2022 तक जवाब देना है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों व्यक्ति दो दिसंबर को व्यक्तिगत तौर पर अदालत में उपस्थित रहेंगे।

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वर्ष 2018 में कर्नाटक सूचना आयोग ने जारी की अधिसूचना-

इस मामले में सात अगस्त, 2018 को कर्नाटक सूचना आयोग ने एक अधिसूचना जारी की थी और मोहन चंद्र ने मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त पदों के लिए आवेदन किया था। चयन समिति ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के पदों के लिए तीन व्यक्तियों के नामों की सिफारिश की थी जिनमें मोहन चंद्र का नाम शामिल नहीं था। इसके बाद उन्होंने चयन प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

उच्च न्यायलय ने 21 अप्रैल 2022 को याचिका को किया खारिज-

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 21 अप्रैल, 2022 और खंडपीठ ने दो सितंबर को उनकी याचिका खारिज कर दी थी। यही नहीं खंडपीठ ने उन पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसमें उन्होंने जजों के विरुद्ध कटाक्ष किए और उन पर सस्ती लोकप्रियता के लिए याचिका को खारिज करने का आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एसएलपी में, याचिकाकर्ता ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों के प्रति पक्षपात किया और प्रचार हासिल करने के लिए याचिकाकर्ता को परेशान किया। यह आगे आरोप लगाया गया है कि उच्च न्यायालय ने एक गुप्त उद्देश्य के साथ एक अनुकरणीय लागत लगाई है।

केस टाइटल – मोहन चंद्र पी बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर – एसएलपी सीआरएल 19043 ऑफ 2022

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