सुप्रीम कोर्ट का मृत्युदंड पर गहन मंथन, बनाई जाएगी मौत की सजा को लेकर गाइडलाइंस, अटॉर्नी जनरल से मांगी राय-

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न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने संकेत दिया कि वह इस बारे में एक गाइड लाइन बना सकती है. फांसी सजा सुनाने की अहम गाइड लाइन बनाने में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की भी मदद मांगी है. इसके साथ ही राष्ट्रीय विधिक सहायता प्राधिकरण (NALSA) से भी जवाब मांगा है.

उच्चतम न्यायलय Supreme Court ने कहा है कि वो मृत्युदंड की सजा प्रक्रिया को लेकर विस्तृत गाइडलाइंस Detail Guideline बनाएगा. ये गाइडलाइंस फांसी की सजा के मामलों में सभी अदालतों में लागू होगी. कोर्ट ने इस पर नेशनल लीगल सर्विस ऑथोरिटी National Legal Services Authority को नोटिस जारी किया है और इस मसले पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को भी अपनी राय रखने को कहा है.

ज्ञात हो की 30 मार्च को फांसी की सजा पाए कैदियों की सुध लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड प्रक्रिया की समीक्षा के लिए स्वत: संज्ञान लेकर मामला दायर करने के बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की मदद मांगी थी.

न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने संकेत दिया कि वह इस बारे में एक गाइड लाइन बना सकती है. फांसी सजा सुनाने की अहम गाइड लाइन बनाने में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की भी मदद मांगी है. इसके साथ ही राष्ट्रीय विधिक सहायता प्राधिकरण (NALSA) से भी जवाब मांगा है.

सुप्रीम कोर्ट ने उन परिस्थितियों की व्यापक जांच करने का फैसला किया था जहां एक जज को आजीवन कारावास और मौत की सजा के बीच चयन करना था. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के मामलों में जानकारी को कम करने के आकलन की प्रक्रिया को लेकर चिंता जताई थी.

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किन मामलों में दी जा सकती है मौत की सजा-

आपराधिक प्रक्रिया के प्रावधानों के तहत मौत की सजा को आजीवन कारावास के वैकल्पिक सजा के रूप में दिया जाता है. इसे ऐसे समझ लीजिए कि ये अपराधी को दी जाने वाली ‘दुर्लभ सजा’ है. जब तक कि अपराध इतना घिनौना और बड़ा न हो, जल्दी मौत की सजा नहीं मिलती है. सजा को लेकर कहा जाता है कि इसे बहुत ही कम बार दिया जाना चाहिए. मौत की सजा केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए, जहां बहुत ही घिनौना अपराध किया गया है. आमतौर पर यह हत्या, बलात्कार, देशद्रोह आदि अत्यंत गंभीर मामलों में दिया जाता है.

मृत्युदंड के पक्ष-विपक्ष में क्या हो तर्क?

मौत की सजा देने के पक्ष में रहने वाले लोगों का कहना है कि अगर हत्या या किसी घिनौने अपराध को अंजाम देने वाला व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जीन के अधिकार को छीन लेता है. ऐसे में अपराध करने वाले व्यक्ति का भी जीवन का अधिकार समाप्त होना चाहिए. कुछ लोगों का कहना है कि मृत्युदंड एक निवारक के तौर पर भी काम करता है. अगर किसी अपराधी को मौत की सजा दी जाती है, तो सरकार या अदालत उसे भविष्य में हत्या जैसे अपराध को करने से रोक देती है. इसके अलावा, ये भी कहा जाता है कि अपराधी को मौत की सजा देने पर पीड़ित परिवारों को राहत मिल जाती है.

वहीं, मृत्युदंड के विपक्ष में रहने वाले लोगों का कहना है कि मौत की सजा मिलने के बाद भी देश में दुष्कर्म और हत्या के मामले जस से तस बढ़ रहे हैं. ऐसे में इसे निवारक के रूप में नहीं देखा जा सकता है. मृत्युदंड के खिलाफ सबसे आम तर्क ये दिया जाता है कि न्याय प्रणाली में अगर गलती या खामी हुई तो उसकी वजह से देर-सबेर निर्दोष लोग मारे जा सकते हैं. वहीं, ये भी कहा जाता है कि अगर किसी अपराधी को मौत की सजा दी जाती है, तो उसे पुनर्वास नहीं मिल पाता है.

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