शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद HC के रजिस्ट्रार जनरल को प्रदेश के सभी बार एसोसिएशन द्वारा 2023-24 में वकीलों के अदालती कामकाज से दूर रहने के बारे में मांगा ब्यौरा

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में वकीलों द्वारा हड़ताल करने और अदालती कामकाज से दूर रहने के मुद्दे पर कड़ा रूख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को प्रदेश के सभी बार एसोसिएशन द्वारा 2023-24 में अदालती कामकाज से दूर रहने के बारे में ब्यौरा मांगा है।

न्यायालयों में मौजूदा स्थिति वाकई चौंकाने वाली है और विडंबना यह है कि अधीनस्थ न्यायालयों में लगभग 2.5 करोड़ मामलों के लंबित रहने का एक कारण यह भी है। सर्वोच्च न्यायालय लगातार यह घोषित करता रहा है कि अधिवक्ताओं को हड़ताल करने का अधिकार नहीं है और उसने कहा कि वकीलों की हड़ताल अवैध है और इस बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद बार एसोसिएशन से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान यह जानकारी मांगा है। पीठ ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को प्रदेश के सभी जिला न्यायाधीशों के जरिए सभी बार एसोसिएशन द्वारा कम से कम 2023-24 में अदालती कामकाज से दूर रहने की जानकारी एकत्र करने को कहा है। साथ ही, अगली सुनवाई से पहले, शीर्ष अदालत में इस जानकारी को पेश करने का आदेश दिया है। इससे पहले, फैजाबाद बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि वे अदालती कामकाज से दूर रहने के लिए कोई प्रस्ताव पारित नहीं करेंगे या किसी प्रस्ताव का पक्ष नहीं बनेंगे। इसके बाद, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इस मुद्दे का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह केवल फैजाबाद बार तक सीमित नहीं हो सकता, विभिन्न बार एसोसिएशनों के संबंध में बहुत गंभीर और चिंताजनक मुद्दे हैं और हम इन कार्यवाही के दायरे का विस्तार करना चाहते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कैप्टन हरीश उप्पल मामले में अधिवक्ताओं की हड़तालों पर विस्तार से विचार किया था। न्यायालय ने कहा था-

“वकीलों को हड़ताल पर जाने या बहिष्कार का आह्वान करने का कोई अधिकार नहीं है, यहाँ तक कि सांकेतिक हड़ताल भी नहीं। यदि किसी विरोध की आवश्यकता है, तो वह केवल प्रेस वक्तव्य देकर, टीवी साक्षात्कार देकर, न्यायालय परिसर में बैनर और/या तख्तियाँ लेकर, काले या सफेद या किसी भी रंग की बांह की पट्टियाँ पहनकर, न्यायालय परिसर के बाहर और बाहर शांतिपूर्ण विरोध मार्च निकालकर, धरना देकर या क्रमिक उपवास करके किया जा सकता है। केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही, जहाँ बार और/या बेंच की गरिमा, अखंडता और स्वतंत्रता दांव पर लगी हो, न्यायालय एक दिन से अधिक समय तक काम से दूर रहने के विरोध को अनदेखा कर सकते हैं (आँखें मूंद सकते हैं)।”

सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय 8 अगस्त, 2024 के फैसले के खिलाफ फैजाबाद बार एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन कामकाज संभालने और दिसंबर 2024 तक कार्यकारणी का चुनाव कराने के लिए एल्डर्स कमेटी का गठन किया था। याचिकाकर्ता बार एसोसिएशन द्वारा अदालती कामकाज से दूर नहीं रहने के हलफनामा देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अपील पर उत्तर प्रदेश विधिज्ञ परिषद सहित अन्य पक्षकारों को नोटिस कर जवाब मांगा है।

इससे पहले, वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर ने पीठ को बताया कि वकीलों के कामकाज से दूर रहने के चलते पिछले 2 सालों में यूपी की कुछ अदालतों में 50 फीसदी कार्य दिवस अदालती कामकाज नहीं हुए। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘यह न सिर्फ चिंताजनक है बल्कि गंभीर मुद्दा है, न्यायिक प्रणाली पंगु हो गई है। उन्होंने कहा कि यदि अधिवक्ता अदालत, अपने मुवक्किल, समाज, व्यवस्था के अधिकारी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को समझना शुरू कर दें…तो शायद उनमें से प्रत्येक को इस महत्व और जिम्मेदारी का एहसास होगा। इससे न केवल उनकी अपनी स्थिति बढ़ेगी, बल्कि व्यवस्था को भी सहायता मिलेगी।

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