सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय : दो भाई-बहनों व एक भतीजे के हत्यारे के फांसी की सजा को उम्रकैद में बदली-

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोषी ने नृशंस अपराध किया है। लेकिन राज्य सरकार ने यह नहीं बताया कि आरोपी के सुधार की गुंजाइश नहीं है। याची ने अपराध किया है लेकिन वह दुर्दांत अपराधी नहीं है। उसका यह पहला अपराध था।

सर्वोच्च अदालत में मध्य प्रदेश में संपत्ति विवाद को लेकर अपने दो भाई-बहनों व एक भतीजे की हत्या के दोषी को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा को 30 साल की उम्रकैद में बदल दिया है। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने आरोपी को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। 

सुप्रीम कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदलते हुए कहा कि अदालतों का कर्तव्य है कि केस पर विचार करते समय अपराधी की मानसिक स्थिति और उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर भी विचार करें।

शीर्ष न्यायलय के न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अदालतों का दायित्व है कि वे आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना पर विचार करें। पीठ ने कहा कि स्थापित कानूनी स्थिति को देखते हुए आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना को ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है। 

यह देखना जरूरी कि क्रिमिनल का दिमाग किस स्थिति में था

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह हमारी ड्यूटी है कि आरोपी के रिफॉर्म (सुधार) और पुनर्वास की संभावनाओं पर विचार किया जाए। न सिर्फ क्राइम बल्कि क्रिमिनल की स्थिति पर विचार करना हमारी ड्यूटी है। यह देखना जरूरी है कि क्रिमिनल का दिमाग किस स्थिति में था और उसका सामाजिक और आर्थिक कंडीशन क्या है। मृतक और आरोपी दोनों गांव की पृष्ठभूमि के थे। दोनों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद था। याची ने अपने दो भाई और एक भतीजे की हत्या की थी।

ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आरोपी के सुधार की गुंजाइश नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसने नृशंस अपराध किया है। लेकिन राज्य सरकार ने यह नहीं बताया कि आरोपी के सुधार की गुंजाइश नहीं है। याची ने अपराध किया है लेकिन वह दुर्दांत अपराधी नहीं है। उसका यह पहला अपराध था। उसकी जेल से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसका कंडक्ट ठीक है और ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि उसके सुधार और पुनर्वास की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में हम वैकल्पिक सजा देते हैं। हम इस मामले में फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील करते हैं। चूंकि आरोपी ने अपने दो भाई और भतीजे की हत्या की है ऐसे में इस मामले में उम्रकैद की सजा 30 साल कैद की होगी

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपराध देखा अपराधी की स्थिति पर विचार नहीं किया

मौजूदा मामला मध्य प्रदेश का है। भागचंद्र ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जबलपुर बेंच के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने हत्या मामले में भागचंद्र को फांसी की सजा दी थी और 19 दिसंबर 2017 को हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को कंफर्म किया था जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था। पेश मामले के मुताबिक मृतक देवकी प्रसाद की पत्नी ने बयान दिया कि 11 अक्टूबर 2015 को जब वह शौच से वापस आई तो देखा कि घर में तेज धारदार हथियार से उनके पति के भाई ठाकुर दास की हत्या कर दी गई है। बाद में उसने अपने बेटे अखिलेश का भी शव देखा। अंदेशा होने पर वह खेत की तरफ भागी तो वहां उसने देखा कि आरोपी भागचंद्र ने उसके पति देवकी दास पर गड़ासे से वार किया है और उनकी भी मौत हो गई। इस मामले में देवकी की पत्नी पुलिस की पहली गवाह बनी।

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प्रॉपर्टी विवाद के कारण इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से फांसी की सजा के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जिस दिन दोषी करार दिया उसी दिन उसे फांसी की सजा सुनाई और सजा पर बहस का पर्याप्त मौका नहीं मिला। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने सिर्फ अपराध को देखा लेकिन अपराधी के दिमागी स्थिति और आर्थिक और सामाजिक पहलू पर विचार नहीं किया।

पीठ ने कहा कि मध्य प्रदेश पुलिस ने ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह पता चले कि दोषी व्यक्ति में सुधार की कोई संभावना नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सामाजिक व आर्थिक रूप से अक्षम है। उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है। इसलिए उसे दुर्दात अपराधी नहीं माना जा सकता। उसका यह पहला व जघन्य अपराध है। जेल अधीक्षक के प्रमाणपत्र से पता चलता है कि कैद के दौरान उसका आचरण संतोषजनक रहा।

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