सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा, ‘अभी रोहिंग्याओं को वापस भेजने की कोई योजना नहीं’-

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राज्य सरकार ने रोहिंग्या समुदाय के 72 लोगों की सूची भी अदालत को दी है और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दायर याचिका को खारिज करने की मांग की है.

कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) ने साफ कर दिया है कि राजधानी बेंगलुरु (Bengaluru) में रह रहे रोहिंग्याओं (Rohingyas) को वापस भेजने की कोई योजना नहीं है. यह जानकारी राज्य सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को दी है. राज्य सरकार ने यह भी बताया कि ऐसे 72 रोहिंग्याओं की पहचान की गई है, जो शहर में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं. शीर्ष अदालत में एक साल के भीतर रोहिंग्याओं की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने को लेकर याचिका दायर हुई थी.

अदालत में दिए हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा, ‘बेंगलुरु सिटी पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र में रोहिंग्याओं को किसी कैंप या डिटेंशन सेंटर में नहीं रखा है.

राज्य सरकार ने यह भी बताया कि 72 ऐसे रोहिंग्याओं की पहचान की गई है, जो शहर में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं. एक साल के भीतर रोहिंग्याओं की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने के लिए शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई थी.

रोहिंग्या समुदाय के 72 लोगों की सूची भी अदालत को दी

साथ ही राज्य सरकार ने रोहिंग्या समुदाय के 72 लोगों की सूची भी अदालत को दी है और एड्वोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दायर याचिका को खारिज करने की मांग की है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इन नामों में कई की उम्र 12 साल से कम है.अगस्त 2017 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद को बताया था राज्यों को रोहिंग्याओं समेत अवैध प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने के निर्देश दिए गए हैं. इसके बाद रोहिंगा समुदाय के दो लोगों ने निर्वासन के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था.

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बता दें राज्य सरकार ने कहा था कि याचिका विचार योग्य नहीं है. इसमें मेरिट का अभाव है, लिहाजा याचिका को खारिज किया जाना चाहिए. उपाध्याय ने अपनी याचिका में अदालत से केंद्र और राज्य सरकारों को एक साल के भीतर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं सहित सभी अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.

‘देश में रोहिंग्याओं का होना सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा’

दरअसल, सितंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें बांग्लादेश से आए सभी अवैध प्रवासियों को एक साल के भीतर तत्काल निर्वासित करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि देश में रोहिंग्याओं का होना सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा. याचिका में यह भी कहा गया है कि बांग्लादेशी से अवैध घुसपैठ की गई है. याचिका में अवैध प्रवास और घुसपैठ को संज्ञेय गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध बनाने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन की भी मांग की गई है.

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