एमराल्ड केस: 2005 से 2012 तक के नोएडा प्राधिकरण अफसरों की खंगाली जा रही कुंडली-

एमराल्ड केस: 2005 से 2012 तक के नोएडा प्राधिकरण अफसरों की खंगाली जा रही कुंडली-

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी 2005 से लेकर 2014 तक की ग्रुप हाउसिंग से संबंधित करीब 20 बिल्डरों के कागजी दस्तावेजों में अनियमितता के खिलाफ आपत्ति दायर की थी-

सुपरटेक के इन दोनों 40-40 मंजिला टावर के बनने के लिए बिल्डर के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इनको बनाने की अनुमति दी. ऐसे में इनके खिलाफ भी कार्रवाई होना तय माना जा रहा है-

सुपरटेक बिल्डर के एमराल्ड कोर्ट मामले में नोएडा प्राधिकरण की उच्च स्तरीय कमेटी ने जांच शुरू कर दी है. 2005 से 2012 तक ग्रुप हाउसिंग और नियोजन विभाग में तैनात अधिकारियों की कुंडली खंगालने का काम किया जा रहा है.

वर्ष 2005 से 2012 तक नियोजन विभाग द्बारा ग्रुप हाउसिंग पास किए गए नक्शों की एक सूची भी तैयार की जा रही है. साथ ही यह भी जांच की जा रही है कि किस आधार पर बिल्डरों को नियमों में छूट व राहत दी गई.

गौरतलब है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी 2005 से लेकर 2014 तक की ग्रुप हाउसिंग से संबंधित करीब 20 बिल्डरों के कागजी दस्तावेजों में अनियमितता के खिलाफ आपत्ति दायर की थी.

नोएडा प्राधिकरण की जांच में सबसे पहले नंबर पर है नियोजन विभाग. नोएडा प्राधिकरण का वह विभाग जहां से बिल्डिंग बनाने के लिए नक्शे तैयार करने की अनुमति प्रदान की जाती है. ऐसा माना जा रहा है कि इसी नियोजन विभाग की सुपरटेक के साथ मिलीभगत के बाद ट्विन टावर बनाने की इजाजत और नक्शे पास किए गए.

नियोजन विभाग में 2004-06 तक त्रिभुवन सिंह और 2006 से 2012 तक राजपाल कौशिक तथा मुकेश गोयल वास्तुविद थे. उस दौरान की अधिकांश फाइलों पर इन्हीं अधिकारियों के हस्ताक्षर मौजूद हैं. इसके अलावा आला अधिकारियों की भी एक सूची तैयार की जा रही है. जिनकी शह पर इस तरह का भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया.

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मिलीभगत से नक्शे पास किए गए-

दरअसल, सन 2005 से 2006 तक नोएडा प्राधिकरण के चेयरमैन मोहिंदर सिंह और सीईओ संजीव सरन थे और 2011-12 कैप्टन एस के द्विवेदी नोएडा प्राधिकरण के सीईओ बनाए गए थे. जबकि 2011-12 में भी चेयरमैन मोहिंदर सिंह थे. उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ निर्देश जारी किए हैं कि ऊपर से लेकर नीचे तक जिन अधिकारियों की मिलीभगत से इस तरह के बिल्डिंग और उनके नक्शे पास किए गए उन सब की जांच की जाए.

नोएडा प्राधिकरण के सीईओ (CEO) रितु माहेश्वरी ने बताया कि इस प्रकरण की गहन जांच कराकर दोषी अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई कर आपराधिक केस दर्ज किया जाएगा. नोएडा के अधिकारियों की एक कमेटी बनाकर जांच शुरू कर दी गई है. बिल्डर को जमीन का आवंटन करने से लेकर उसके नक्शे पास कराने तक का काम नोएडा प्राधिकरण के ग्रुप हाउसिग व नियोजन विभाग करते हैं. इस मामले में भी नियोजन विभाग में रिवाइज्ड नक्शे को अनुमति देने से लेकर कई बिदुओं पर बिल्डर का साथ दिया है.

सुपरटेक के इन दोनों 40-40 मंजिला टावर के बनने के लिए बिल्डर के साथ-साथ नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इनको बनाने की अनुमति दी. ऐसे में इनके खिलाफ भी कार्रवाई होना तय माना जा रहा है.

अधिकारिक सूत्रों की मानें तो मंगलवार को कोर्ट का आदेश आते ही उस समय तैनात रहे संबंधित अधिकारियों की सूची नोएडा प्राधिकरण में बनानी शुरू कर दी गई और इनकी विभागीय जांच के लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं. प्रदेश सरकार को संबंधित की सूची भी भेजी जा रही है.

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ग्रुप हाउसिंग नीतियों पर लगाई आपत्ति-

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने प्राधिकरण की ग्रुप हाउसिग आवंटन नीतियों को कटघरे में खड़ा कर दिया था. करीब 20 बिल्डर परियोजनाओं में प्रत्येक पर पांच से छह पेज की आपत्ति लगाई गई थी. प्राधिकरण ने वर्ष 2005 से 2015 के बीच तमाम ग्रुप हाउसिग भूखंडों का आवंटन किया था. बिल्डरों को विशेष छूट दी गई. नियमों में बदलाव किया गया.

मात्र दस फीसद धनराशि पर भूखंडों का आवंटन कर दिया गया. बिल्डरों ने बकाया धनराशि का अभी तक भुगतान अब तक नहीं किया. इस बिंदु पर सीएजी ने आपत्ति दर्ज की है. नियम बदलने के कारण बिल्डरों को तो फायदा हुआ, लेकिन प्राधिकरण को करोड़ों रुपये की राजस्व हानि उठानी पड़ी है.

साल 2005 में निकाली गई ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं में कुल भूखंड की लागत का 30 फीसद पैसा लेकर आवंटन किया जाता था. लेकिन 2007 में बिल्डर को लाभ पहुंचाते हुए नियमों में बदलाव किया गया और 30 फीसद के स्थान पर कुल लागत का 10 फीसद कर दिया गया. इसका फायदा बिल्डरों ने खूब उठाया और बिल्डरों ने खरीदारों से जमकर कीमत भी वसूली.

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